अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा प्रिस्क्रिप्शन दवाओं की कीमतों में 80 फीसदी तक की कटौती की घोषणा से भारतीय दवा उद्योग में हड़कंप मच गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे न केवल तत्काल राजस्व में भारी गिरावट आएगी, बल्कि दीर्घकालिक रूप से भारत की मजबूत पेटेंट नीति पर भी अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ेगा।
घोषणा के बाद सन फार्मा, सिप्ला और बायोकॉन जैसी प्रमुख भारतीय फार्मा कंपनियों के शेयरों में तेज गिरावट दर्ज की गई। अमेरिका, जो भारतीय दवा कंपनियों के लिए सबसे बड़ा बाजार है, से मिलने वाले निर्यात राजस्व में भारी गिरावट की आशंका जताई जा रही है।
नुवामा इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के विश्लेषक श्रीकांत अकोलकर ने कहा, "अगर दवाओं की कीमतें 50 फीसदी या उससे ज्यादा घटती हैं, तो अमेरिकी बाजार में ब्रांडेड दवाओं पर तात्कालिक प्रभाव पड़ेगा और मध्यम अवधि में यह जेनेरिक दवाओं के बाजार को भी प्रभावित करेगा।"
इसके अलावा भारत की पेटेंट नीति को लेकर भी चिंता गहराती जा रही है।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अजॉय श्रीवास्तव ने कहा, "ट्रम्प का आदेश भारत के लिए एक चेतावनी है। जैसे-जैसे पश्चिमी देश कीमतों पर सख्ती कर रहे हैं, कंपनियां भारत जैसे बाजारों में दवाओं के दाम बढ़ाने का प्रयास करेंगी। अब लड़ाई सिर्फ अदालतों में नहीं, व्यापार समझौतों में भी लड़ी जा रही है।"
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भारत की मौजूदा पेटेंट नीति सार्वजनिक स्वास्थ्य और सस्ती दवाओं को प्राथमिकता देती है। भारत ने अब तक विकसित देशों द्वारा थोपे जा रहे TRIPS-प्लस प्रावधानों—जैसे डेटा एक्सक्लूसिविटी, पेटेंट अवधि विस्तार और एवरग्रीनिंग—का विरोध किया है। इन्हीं नीतियों के चलते भारत को "दुनिया की फार्मेसी" कहा जाता है।
हालांकि, हालिया भारत–यूके एफटीए में कुछ रियायतें देने से चिंता बढ़ी है कि भविष्य में अमेरिका और यूरोपीय संघ के दबाव में भारत अपनी नीति में नरमी दिखा सकता है।
अजॉय श्रीवास्तव ने चेताया, "अगर भारत ने पेटेंट विस्तार या डेटा एक्सक्लूसिविटी जैसे प्रावधान स्वीकार किए, तो इससे जेनेरिक दवाओं की एंट्री में देरी होगी और लाखों लोगों के लिए दवाएं महंगी हो जाएंगी।"
ट्रम्प के आदेश की अस्पष्टता ने भी अनिश्चितता को और बढ़ा दिया है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि आदेश किन दवाओं पर लागू होगा और क्या इसमें जेनेरिक दवाएं भी शामिल हैं।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के फार्मा विश्लेषक तुषार मनुधने ने कहा, "अभी साफ नहीं है कि यह कदम अंतरराष्ट्रीय मूल्य तुलना पर आधारित है या जेनेरिक दवाएं भी इसके दायरे में आएंगी।" विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के लिए यह एक रणनीतिक मोड़ है, जहां सरकार को सख्त और दूरदर्शी नीति अपनानी होगी।
अजॉय श्रीवास्तव ने कहा, "भारत–यूके समझौता भविष्य की नजीर नहीं बनना चाहिए। भारत का जेनेरिक दवा मॉडल सिर्फ हमारे लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए जरूरी है।"दवाओं पर लागू होगा—क्या यह केवल ब्रांडेड पर है या जेनेरिक पर भी असर डालेगा?
"हमें अभी तक नहीं पता कि यह अंतरराष्ट्रीय मूल्य तुलना से जुड़ा है या नहीं, और जेनेरिक दवाएं भी दायरे में आएंगी या नहीं," मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के तुषार मनुधने ने कहा।
रणनीतिक मोड़ पर भारत
अब विशेषज्ञ सरकार से अपेक्षा कर रहे हैं कि वह स्पष्ट और दृढ़ नीति अपनाए। श्रीवास्तव ने कहा, "यह क्षण भारत के लिए एक रणनीतिक टर्निंग प्वाइंट है।" "भारत–यूके समझौता भविष्य के लिए मिसाल नहीं बनना चाहिए। भारत के जेनेरिक मॉडल की रक्षा केवल हमारे लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए आवश्यक है।"
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