भारतीय व्यापार विशेषज्ञों के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और चीन के बीच 14 मई से लागू होने वाले 90 दिवसीय व्यापार युद्धविराम से वैश्विक व्यापार तनाव में कमी आएगी, लेकिन इससे भारत की प्रमुख निर्यात केंद्र बनने की महत्वाकांक्षा के लिए बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा।
जिनेवा में उच्च स्तरीय चर्चा के बाद हुए इस समझौते के तहत वाशिंगटन चीनी वस्तुओं पर टैरिफ वापस लेगा, जिससे कुल टैरिफ दर 106% से घटकर लगभग 40% हो जाएगी। बीजिंग भी अमेरिकी आयात पर टैरिफ को 145% से घटाकर लगभग 25% कर देगा और गैर-टैरिफ बाधाओं को खत्म कर देगा।
वहीं वैश्विक स्तर पर तनाव कम करने की दिशा में उठाए गए कदम का व्यापक रूप से स्वागत किया जा रहा है, लेकिन भारतीय विश्लेषक देश की निर्यात संभावनाओं पर पड़ने वाले इसके प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अजय श्रीवास्तव ने चेतावनी देते हुए कहा, "अमेरिका-चीन समझौते का भारत पर प्रभाव - भारत की आपूर्ति श्रृंखला का क्षण जोखिम में है क्योंकि अमेरिका चीन की ओर फिर से झुक रहा है"
उन्होंने कहा, "भले ही भारतीय वस्तुओं पर अमेरिकी टैरिफ 10% पर बना हुआ है, जो चीनी आयात पर अभी भी लगाए गए 30% से काफी कम है, लेकिन भारत के पक्ष में जो विशाल टैरिफ अंतर था, वह तेजी से कम हो रहा है।" उन्होंने कहा कि चीनी वस्तुओं पर पिछले उच्च टैरिफ ने भारत को स्थानांतरित कंपनियों को आकर्षित करने में बढ़त दी थी, यह लाभ अब काफी कम हो गया है क्योंकि वाशिंगटन बीजिंग के साथ फिर से जुड़ रहा है।
आगे श्रीवास्तव ने चेतावनी देते हुए कहा कि, यह बदलाव "चीन प्लस वन" रणनीति को कमजोर कर सकता है, जिसने भारत जैसे देशों की ओर विनिर्माण विविधीकरण को प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, "हालांकि कम निवेश वाली असेंबली गतिविधियां अभी भारत में जारी रह सकती हैं, लेकिन गहन विनिर्माण-जिस तरह से वास्तविक औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होता है- रुक सकता है या यहां तक कि चीन में वापस लौट सकता है।"
इसी के साथ बता दें, भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (FIEO) ने भी चिंता जताई। अध्यक्ष एस.सी. रल्हन ने सकारात्मक वैश्विक प्रभाव को स्वीकार किया, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी जैसे क्षेत्रों में अमेरिका-चीन द्विपक्षीय व्यापार में संभावित उछाल के कारण तीसरे बाजारों में भारतीय निर्यातकों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ने की आशंका जताई।
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