छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में नक्सलियों के खिलाफ चल रही सबसे बड़ी सैन्य कार्रवाई अब एक नई दिशा ले चुकी है। सरकार द्वारा गठित ‘डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड’ (DRG) फोर्स में शामिल आदिवासी युवा और पूर्व माओवादी लड़ाके ही अब बस्तर के जंगलों में नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए हैं।
DRG में कई ऐसे युवा हैं, जिनके परिजन कभी नक्सलियों के हाथों मारे गए थे। 21 वर्षीय एक DRG जवान ने AFP से बातचीत में कहा, "वे कहते हैं कि वे हमारे लिए लड़ते हैं, लेकिन असल में वे हमें ही मारते हैं।" यह फोर्स जंगल और इलाके की गहराई से जानकार है, जिससे ऑपरेशन को तेज गति मिली है। गृहमंत्री अमित शाह ने ऐलान किया है कि अगले अप्रैल तक नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा।
नक्सलियों की जगह निर्दोष ग्रामीण निशाने पर?
यह सैन्य अभियान विवादों से भी घिरा है। स्थानीय ग्रामीणों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि कई बार सुरक्षा बल निर्दोष ग्रामीणों को नक्सली बताकर फर्जी मुठभेड़ों में मार देते हैं। पेडिया गांव में हुई 12 मौतों को लेकर DRG के एक जवान ने खुद स्वीकारा कि "वह एक गलती थी।"
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पुलिस प्रमुख पी. सुंदरराज का कहना है कि सभी ऑपरेशन कानून के दायरे में होते हैं और सुरक्षा बल केवल आत्मरक्षा में कार्रवाई करते हैं। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने कहा, "अब आदिवासी ही आदिवासियों को मार रहे हैं। नक्सलियों की हिंसा में भी आम लोग ही मारे जाते थे, अब फोर्स की कार्रवाई में भी वही हो रहा है।"
विकास या खनन की तैयारी?
बस्तर में तेजी से बनाए जा रहे सुरक्षा कैंपों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। पुलिस का दावा है कि ये कैंप विकास के केंद्र बनेंगे, जहां से सड़कों और मोबाइल टावरों जैसे बुनियादी ढांचे का निर्माण होगा। लेकिन आदिवासी समाज को आशंका है कि यह सब जंगलों में बड़े पैमाने पर खनन की तैयारी है। 2022 में रोघाट खदान की मंजूरी के बाद से विरोध की लहर और तेज हो गई है।
खत्म होगा नक्सलवाद?
हाल ही में माओवादी संगठन ने संघर्षविराम के बदले शांति वार्ता की पेशकश की थी, जिसे सरकार ने ठुकरा दिया। कार्यकर्ताओं का मानना है कि सिर्फ सैन्य कार्रवाई से स्थायी समाधान नहीं निकल सकता। DRG के एक जवान ने खुद कहा, "अगर ये सब खनन के लिए हो रहा है और लोग उजाड़े गए तो वे कहेंगे कि नक्सली ही बेहतर थे।"
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