अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रविवार को संकेत दिया है कि वे अपने कट्टर सहयोगी स्टीफन मिलर को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Adviser) नियुक्त कर सकते हैं। ट्रम्प ने कहा कि वे अगले छह महीनों में माइक वॉल्ट्ज़ के उत्तराधिकारी की घोषणा करेंगे और मिलर इस अहम पद के लिए उनके शीर्ष विकल्पों में हैं। मिलर की वापसी भारतीयों के लिए मुश्किल बढ़ा सकती है, इसलिए भी क्योंकि ट्रम्प के पिछले कार्यकाल में मिलर के रणनीतिक सहयोगी रहते हुए कई फैसलों से विवाद खड़ा हुआ था।
मिलर की वापसी से H-1B की सख्ती?
स्टीफन मिलर का नाम भारत और खासतौर पर H-1B वीज़ा पर काम करने वाले पेशेवरों के लिए किसी बुरे संकेत से कम नहीं है। ट्रम्प के पहले कार्यकाल में मिलर ही थे जिन्होंने इमिग्रेशन नीतियों को बेहद सख्त बना दिया था। उन्होंने एक ऐसा प्रस्ताव भी तैयार किया था जिसमें मास्टर्स और बैचलर्स डिग्री रखने वाले विदेशी छात्रों को 10 साल तक H-1B वीज़ा नहीं देने की बात कही गई थी।
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मिलर का भी ग्रेट अमेरिका फर्स्ट का नारा
हाल ही में न्यूयॉर्क की एक रैली में मिलर ने खुलकर कहा, "अमेरिका सिर्फ अमेरिकियों के लिए है। हमें इसे असली अमेरिकियों को वापस देना होगा।" ट्रम्प प्रशासन के कार्यकाल में H-1B वीजा रिजेक्शन रेट 2015 के 6% से बढ़कर 2018 में 24% तक पहुंच गया था। अब मिलर की वापसी से ऐसा माना जा रहा है कि यह स्थिति फिर से लौट सकती है।
सिर्फ इमिग्रेशन ही नहीं, भारत के लिए भी संदेश
स्टीफन मिलर की राष्ट्रीय सुरक्षा में भूमिका का मतलब सिर्फ इमिग्रेशन सख्ती नहीं, बल्कि विदेश नीति में भी कठोर रुख हो सकता है। भारत जैसे रणनीतिक साझेदार के लिए यह एक जवाबदेह और चुनौतीपूर्ण माहौल तैयार कर सकता है — खासकर जब सीमा पार आतंकवाद और व्यापार को लेकर भारत अमेरिकी समर्थन चाहता है।
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