हम भारतीयों में आदिकाल से श्रावण मास का बहुत महत्त्व रहा है। इसके पीछे धार्मिक मान्यता तो है ही साथ ही साथ प्राकृति का भी उत्सव समय है। कई लोक कथाएं इसके साथ जुड़ी हैं। धार्मिक कथा के अनुसार जब देव-दानव ने मिलकर अमृत की खोज में समुद्र मंथन किया तो उससे अमृत के साथ-साथ विष भी निकला। एक ओर जहां अमृत पान के लिए दोनों लड़ रहे थें, वहीं दूसरी ओर विष कौन पीए की भी चिंता थी। ऐसे में सभी विष लेकर महादेव के पास पहुंचे और विष का हल पूछा।
महादेव ने विष का पात्र लिया और खुद ही पान कर गए। कहते हैं यह घटना श्रावण मास में हीं हुई थी। विष की जलन को कम करने के लिए उन्होंने नाग को अपने गले में लपेट लिया और तब से उनका जल से अभिषेक हर श्रावण मास में जरूर किया जाता है। दूसरी मान्यता है कि इसी मास में माता पार्वती ने शिव को वर रूप में पाने के लिए तपस्या की थी।
धार्मिक मान्यताओं से इतर यह मास बारिश का होता है। खेतों में धान लगाने का होता है तो वहीं फलों के पकने का होता है। धान के लिए बारिश अमृत है। ऐसे में इससे प्रेम होना मनुष्य स्वाभाव ही है। साथ ही बारिश से जब पृथ्वी उपजाऊ बन रही होती है तो इसके गर्भ में निवास कर रहे जीव-जंतु बिलों में पानी भरने से बाहर निकलने लगते हैं। ऐसे समय में हम नागपंचमी का त्योहार मानते हैं ताकि किसी जिव-जंतु को हानि न पहुंचे। कारण... ये सभी जीव हमरे ईको सिस्टम के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
अमेरिका में भी इस मास में मंदिरों में अभिषेक और शिवलिंग की पूजा होती है। कई जगह यहां शिव मंदिर हैं। इंडिआना के हिन्दू मंदिर में बहुत बड़ा शिवलिंग स्थापित है। और इस बार कावंड़ की भी व्यवस्था की गई है। वही नार्थ कैरोलिना में श्री सोमेश्वरा टेम्पल है।
यह मंदिर एक तरह से पहाड़ पर बना हुआ है। जाने का रास्ता मानो आप स्विटजरलैंड की राहों पर जा रहें हों। मंदिर प्रांगण से इतर एक छोटा सा ट्रेल है जो आपको एक छोटे से झरने तक ले जाता है। और इस जगह का नाम दिया है गंगाधाम। कई छोटी-छोटी जलधाओं के बीच दो-चार, बड़े-छोटे शिवलिंग रखें हैं।
लोग इसी झरने से जल लेकर शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं। इस रमणीक जगह के सौंदर्य में मैं खोई हुई थीं कि कानों में आवाज पड़ी- अरे मम्मी, यह पानी बोतल में क्यों भर रहीं हैं? यह कोई गंगा जल थोड़े ही है।
उस बुजुर्ग महिला ने झरने के जल से भरी बोतल बंद की और एक बार फिर अंजुलि में झरने का पानी लेकर अपने माथे से लगाया और कहा- बेटा जी ऐसा नहीं कहते। भोलेनाथ जहां बैठे हों और जो जल उन पर अर्पित हो वह गंगा से कम नहीं।
वह परिवार वहां से चला गया पर मैं वहीं पत्थर पर बैठी उस बुजुर्ग महिला की बात सोचती रही। सोचा मैं भी थोड़ा पानी भर कर घर लेती आऊं पर मनुष्य का दिमाग गणना- मनना में लग गया।
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