भारत के हिमालयी राज्य उत्तराखंड की शांत वादियों से निकला एक युवा वैज्ञानिक आज अमेरिका की प्रयोगशालाओं में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहा है। डॉ. शैलेश उप्रेती लिथियम-आयन बैटरियों के क्षेत्र में दुनिया भर में चर्चित नाम है। उन्होंने अपनी रिसर्च और खोजों से न केवल ऊर्जा तकनीक में नई क्रांति की है बल्कि भारत का नाम भी वैश्विक मंच पर रोशन किया है।
शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
डॉ. शैलेश उप्रेती का जन्म 25 सितंबर 1978 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मनान क्षेत्र में पूरी की और रसायन विज्ञान में एमएससी की डिग्री गोल्ड मेडलिस्ट के रूप में प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने IIT दिल्ली से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। फरवरी 2007 में अमेरिका में न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी से पोस्ट-डॉक्टरेट फैलोशिप के लिए चुने गए।
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उपलब्धियां और वैज्ञानिक योगदान
डॉ. उप्रेती की कंपनी C4V ने 2016 में अमेरिका में 176 कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा कर पांच लाख डॉलर का पुरस्कार जीता, जो न्यूयॉर्क के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर कैथलीन होचूल ने उन्हें दिया। उन्होंने ऐसी बैटरी विकसित की है, जो 20 साल तक टिकाऊ है और 20-22 घंटे का बैकअप देती है। यह बैटरी सौर ऊर्जा संग्रहण और इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग के लिए बेहद कारगर साबित हो रही है। उनकी तकनीक लिथियम आयन बैटरियों की क्षमता, शक्ति और सुरक्षा में सुधार करती है, साथ ही आग और शॉर्ट सर्किट की स्थिति में बैटरियों का तापमान नियंत्रित रखती है। C4V कंपनी ने अमेरिका में लगभग 200 लोगों को रोजगार दिया है और वैश्विक स्तर पर कई कंपनियों को अपनी इस तकनीक का लाइसेंस भी दिया है।
रोचक तथ्य और प्रेरणा
डॉ. उप्रेती नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर स्टेनली विटिंगम के शिष्य हैं, जिनका योगदान भी लिथियम-आयन बैटरियों के विकास में रहा है। उनका पहाड़ों से गहरा लगाव है, उन्होंने अपनी सांस्कृतिक और प्राकृतिक जड़ों से जुड़े रहने के लिए 'बेडूपाको डॉट कॉम' नाम की एक वेबसाइट भी बनाई है। वे उत्तराखंड राज्य में कुमाऊं विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर भी हैं और शोध कार्यों के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान करते हैं। डॉ. शैलेश उप्रेती ने भविष्य में भारत में उन्नत बैटरी उत्पादन की योजना बनाई है, जो मेक इन इंडिया अभियान को मजबूती देगा और देश के ऊर्जा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा।
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