हिमालय की बर्फीली चोटियों और विशाल पर्वत श्रृंखलाओं को देखकर कभी-कभी लोग भूल जाते हैं कि इन्हें वैज्ञानिक रूप से मापना किसी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहली बार हिमालय की ऊंचाई मापने वाले भारतीय वैज्ञानिक थे—राधानाथ सिकदर? और उस समय इन ऊंचे पहाड़ों को ज्वालामुखी समझा जाता था।
राधानाथ सिकदर कौन थे?
राधानाथ सिकदर (1813–1870) बंगाल के गणितज्ञ और सर्वेयर थे। उन्होंने ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिक सर्वे ऑफ इंडिया में काम किया और गणित और सर्वेक्षण की दुनिया में अपनी अद्भुत क्षमताओं के लिए प्रसिद्ध हुए। वे ब्रिटिश अधिकारियों के साथ मिलकर हिमालयी चोटियों की ऊंचाई की गणना करने वाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे।
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माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई मापने की कहानी
19वीं सदी के मध्य में ब्रिटिश वैज्ञानिक हिमालय के विभिन्न चोटियों को मापने की कोशिश कर रहे थे। उस समय कई यूरोपीय मानते थे कि हिमालय की चोटियों में लावा और धुआं निकलता है, यानी ये ज्वालामुखी हैं। राधानाथ सिकदर ने इस भ्रम को दूर किया। 1852 में उनके कैलकुलेशन के अनुसार, उस समय पीक XV (अब माउंट एवरेस्ट) दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत था, जिसकी ऊंचाई लगभग 29,002 फीट (8,840 मीटर) थी। यह आधुनिक माप (8,848.86 मीटर) के बेहद करीब था।
क्यों महत्वपूर्ण है यह तथ्य?
उस समय न तो सैटेलाइट थे और न ही आधुनिक डिजिटल उपकरण। केवल ट्रिगोनोमेट्रिक सर्वेक्षण और गणितीय कैलकुलेशन से इतनी सटीक ऊंचाई निकालना असाधारण था। ब्रिटिश अधिकारियों के नाम इतिहास में दर्ज हैं, लेकिन असली गणना और श्रेय राधानाथ सिकदर को ही जाता है। उनके काम ने हिमालय को ज्वालामुखी मानने वाले पुराने भ्रम को खत्म किया और वैज्ञानिक समुदाय में सटीक जानकारी दी।
रोचक किस्सा
बताया जाता है कि सिकदर की गणना इतनी सटीक थी कि ब्रिटिश सर्वेक्षण अधिकारियों ने भी उनके निष्कर्षों को देखकर हैरानी जताई। इससे यह भी साबित हुआ कि भारतीय वैज्ञानिकों ने उस समय भी वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण योगदान दिया। हिमालय और माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई मापने में राधानाथ सिकदर की भूमिका आज भी भारतीय विज्ञान और सर्वेक्षण के इतिहास में एक मिसाल मानी जाती है।
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