बांग्लादेश / pexels
शेख हसीना की लंबे समय से चली आ रही सरकार को छात्रों और आम लोगों के आंदोलनों के दबाव में सत्ता छोड़नी पड़ी। तब देश-दुनिया के कई विश्लेषकों को लगा था कि अब बांग्लादेश में लोकतंत्र लौटेगा और मानवाधिकार बहाल होंगे, लेकिन सत्ता में आई डॉ. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने अगले 16 महीनों में ऐसा माहौल बना दिया जो लोकतंत्र के वादे के बिल्कुल उलट था।
यह सरकार ऐसा शासन मॉडल लेकर आई जिसमें संविधान लगभग निष्क्रिय हो गया, कानून राजनीतिक बदले का हथियार बन गया, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दबा दी गई और न्यायपालिका सड़क पर विरोध करने वालों के दबाव में काम करने लगी। देश आज लोकतांत्रिक संकट नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के अस्तित्व का संकट झेल रहा है।
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IPU और ACHR की गंभीर रिपोर्टें
अंतर-संसदीय संघ (IPU) ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया के कई देशों में सांसदों के मानवाधिकारों का उल्लंघन बढ़ा है, लेकिन बांग्लादेश को लेकर विशेष चिंता जताई गई है। पूर्व सांसद फ़ज़ले करीम चौधरी, जो कभी IPU मानवाधिकार समिति के प्रमुख थे — आज खराब स्वास्थ्य और अन्य मानवीय कारणों की परवाह किए बिना जेल में हैं।
23 अक्टूबर 2025 के IPU प्रस्ताव में कहा गया कि बांग्लादेश में राजनीतिक गिरफ्तारियाँ, अपारदर्शी मुकदमे, अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की रोकथाम और मानवाधिकार उल्लंघन अब “सामान्य” स्थिति बन चुके हैं, जिससे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था और मूल अधिकारों पर गंभीर खतरा पैदा हो गया है। एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स (ACHR) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पिछले 16 महीनों में लगभग हर संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है और कानून का राज खत्म होकर राज्य संचालित डर और बदले की राजनीति हावी है।
फर्जी मामलों की बाढ़
संविधान के अनुच्छेद 27 और 31 में दिए गए समानता और सुरक्षा के अधिकार अब लगभग खत्म हो चुके हैं। अक्टूबर 2025 तक 5,19,089 लोगों पर राजनीतिक रूप से प्रेरित मामले दर्ज हुए, जिनमें 80,000 से अधिक नामजद और 4 लाख से ज्यादा अज्ञात आरोपी शामिल हैं। 344 पूर्व सांसदों पर हत्या के आरोप लगाए गए हैं, जिनमें शेख हसीना भी हैं। कई मामलों के वादी मौजूद ही नहीं, और बहुत से लोगों को तो यह भी नहीं पता कि उनके नाम पर केस दर्ज कर दिया गया है—यह राजनीतिक डर और पुलिस हिंसा का सबसे भयावह रूप है। अगस्त 2024 से जुलाई 2025 के बीच 40 क्रॉसफायर और 88 न्यायिक हिरासत में मौतें हुईं, जो दिखाती हैं कि राज्य हिंसा और अत्याचार किस हद तक बढ़ चुका है।
ये केवल आंकड़े नहीं, बल्कि गंभीर मानवाधिकार संकट के दस्तावेज़ हैं।
दहशत फैलाने के लिए आतंकवाद कानून का इस्तेमाल
आतंकवाद कानून का इस्तेमाल खुले तौर पर दहशत फैलाने और विरोधियों को चुप कराने के लिए किया गया, जिसके तहत 44,000 से अधिक लोगों को “फासीवाद में शामिल” होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया, जिनमें कई बुजुर्ग लेखक, प्रोफेसर और पत्रकार भी शामिल हैं। किसी बैठक या चर्चा में मौजूद होना तक “आतंकवादी गतिविधि” माना गया, जिससे साफ हो गया कि उद्देश्य अपराध रोकना नहीं, बल्कि असहमति की हर आवाज़ को दबाना है। इसी दौर में अल्पसंख्यकों और आदिवासी समुदायों पर हमले भी बढ़े और अगस्त 2024 से जुलाई 2025 के बीच 2,485 हमले दर्ज किए गए, जो राज्य की लगातार विफलता और बढ़ते भय के माहौल को उजागर करते हैं।
दुर्गा पूजा के दौरान मंदिरों और घरों पर हमले
दुर्गा पूजा के दौरान मंदिरों और घरों पर हमले किए गए और 28 सितंबर 2025 को मरमा समुदाय के तीन युवकों को गोली मारकर हत्या कर दी गई तथा दस अन्य घायल हुए। ये घटनाएँ स्पष्ट करती हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय अब भी असुरक्षित हैं और राज्य अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में पूरी तरह विफल रहा है।
न्यायपालिका का पतन
संविधान के अनुसार जज को हटाने के लिए केवल संसद में दो-तिहाई वोट आवश्यक है, लेकिन अंतरिम सरकार ने मुख्य न्यायाधीश सहित 21 जजों को बिना किसी जांच या महाभियोग के इस्तीफा देने पर मजबूर किया, जिससे अब फैसले अदालतों में नहीं बल्कि सड़क पर प्रदर्शन करने वालों के दबाव से तय होते हैं। इसी बीच, मई 2025 में आवामी लीग को आतंकवाद कानून के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया, जबकि अदालत पहले ही ऐसी मांग वाली याचिका को खारिज कर चुकी थी। इस तरह सरकार ने राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को दबा कर बहुदलीय लोकतंत्र के अस्तित्व को गंभीर खतरे में डाल दिया।
पत्रकारिता पर हमला
पत्रकारों पर भी बुरी तरह हमला हुआ है। 1,087 पत्रकारों पर मुकदमे, हमले और गिरफ्तारियाँ हुईं, जबकि 44 पत्रकार साइबर सिक्योरिटी एक्ट के तहत बंद किए गए। सरकार की आलोचना करना अब “अपराध” बन गया है। डॉ. यूनुस की अंतरिम सरकार ने शुरू में जवाबदेही, स्वतंत्रता और चुनाव करवाने का वादा किया था, लेकिन 16 महीनों में ये वादे बदलकर मनमानी गिरफ्तारियों, सेंसरशिप और टूटती न्यायपालिका में बदल गए, जिससे देश में लोकतंत्र का गंभीर क्षरण हुआ।
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