अमेरिका में विदेशी कर्मचारियों को लेकर जारी H-1B वीज़ा विवाद अब वॉल स्ट्रीट तक पहुंच गया है। फ्लोरिडा की इन्वेस्टमेंट कंपनी अजो़रिया कैपिटल के CEO जेम्स टी. फिशबैक ने अमेरिकी वित्तीय नियामक संस्था SEC (Securities and Exchange Commission) और वॉल स्ट्रीट के बड़े बैंकों पर राजनीतिक बदले की कार्रवाई करने का आरोप लगाया है।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब अजो़रिया कैपिटल के Azoria 500 Meritocracy ETF नामक निवेश फंड को डीलिस्ट की तैयारी शुरू हुई। ठीक कुछ दिन बाद, जब कंपनी ने ऐलान किया था कि वह अब ऐसी कंपनियों में निवेश नहीं करेगी जो अमेरिकी कर्मचारियों को हटाकर विदेशी H-1B वीज़ा धारकों को नौकरी देती हैं।
फिशबैक ने SEC प्रमुख पॉल एस. एटकिंस को पत्र लिखकर इस डीलिस्टिंग को तुरंत रोकने की मांग की। उन्होंने कहा कि ट्रस्टी बोर्ड ने बिना किसी कारण बताए फंड को बंद करने का फैसला किया और शेयरधारकों से कोई सलाह नहीं ली। उनका दावा है कि यह फंड जुलाई में लॉन्च हुआ था और अब तक 7.12% का रिटर्न दे चुका है।
फिशबैक ने इसे राजनीतिक प्रतिशोध बताते हुए कहा, यह वही ‘डिबैंकिंग’ है जो पहले ट्रम्पऔर उनके परिवार के साथ की गई थी। अब वॉल स्ट्रीट उन कंजरवेटिव कंपनियों को निशाना बना रही है जो विदेशी सस्ते मजदूरों के खिलाफ आवाज उठा रही हैं।
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H-1B वीज़ा प्रोग्राम अमेरिकी कंपनियों को यह अनुमति देता है कि वे जब देश में योग्य कर्मचारी नहीं मिलते, तो भारत और चीन जैसे देशों से कुशल विदेशी पेशेवरों को नौकरी पर रख सकें। हालांकि, ट्रम्प समर्थक बिज़नेस समूहों का आरोप है कि बड़ी टेक कंपनियां इस वीज़ा का दुरुपयोग कर अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियां छीन रही हैं और वेतन घटा रही हैं।
ट्रम्प प्रशासन ने हाल ही में इस वीज़ा पर $100,000 की वार्षिक फीस लगाने और नवीनीकरण के नियम सख्त करने की घोषणा की है। इससे अमेरिकी टेक इंडस्ट्री में चिंता और भारत में नाराज़गी दोनों बढ़ गई हैं। फिशबैक का कहना है कि उनकी कंपनी के अमेरिकन वर्कर्स फर्स्ट रुख के कारण ही यह कार्रवाई हुई है। उन्होंने SEC से जांच की मांग की है कि क्या Tidal Trust III के ट्रस्टीज़ ने अपने कानूनी दायित्वों का उल्लंघन किया है।
Azoria 500 Meritocracy ETF अमेरिकी कंपनियों में निवेश करने वाला ऐसा फंड था जो ‘मेरिट-बेस्ड हायरिंग’ और अमेरिकी कर्मचारियों को प्राथमिकता देने वाली कंपनियों को चुनता था। अब इसका डीलिस्ट होना H-1B वीज़ा नीति पर चल रहे राजनीतिक विवाद को सीधे वॉल स्ट्रीट तक ले आया है।
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