हिमालयी राज्य उत्तराखंड की तीन प्रमुख भाषाओं गढ़वाली, कुमाउनी और जौनसारी को डिजिटल युग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) से जोड़ने की ऐतिहासिक पहल हो रही है। अमेरिका में रहने वाले प्रवासी भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर सच्चिदानंद सेमवाल ऐसा करने जा रहे हैं। 29 अक्टूबर को कनाडा के वैंकूवर में देवभूमि उत्तराखंड कल्चरल सोसायटी के आयोजन में इस डिजिटल पोर्टल का लोकार्पण होगा, जिसमें चार हजार से अधिक प्रवासी उत्तराखंडी शामिल होंगे। यह पोर्टल एआई के माध्यम से इन क्षेत्रीय बोली भाषाओं और उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को नई पीढ़ी तथा विश्व मंच तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण माध्यम बनेगा।
इस पहल के तहत भाषाई और सांस्कृतिक विद्वानों के सहयोग से प्रमाणिक डेटा सेट तैयार किया गया है, जिसमें पद्मश्री और उत्तराखंड के लोकगायक डॉ. प्रीतम भरतवाण जैसे दिग्गज भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। सच्चिदानंद सेमवाल बताते हैं कि यह केवल एक तकनीकी परियोजना नहीं, बल्कि उत्तराखंड की जड़ों, भाषा और संस्कृति को आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रखने का भी संकल्प है। आज की तेज़ी से बदलती डिजिटल दुनिया में यदि हमारी मातृभाषाएं एआई के साथ संगठित न हों, तो भविष्य में ये बोलियां और उनकी सांस्कृतिक धरोहर खत्म हो सकती हैं।
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इस पोर्टल की सहायता से आगामी पीढ़ियां एआई टूल्स जैसे चैटजीपीटी, ग्रोक और जेमिनाई पर गढ़वाली, कुमाउनी और जौनसारी भाषा में बोलना, लिखना और सीखना संभव होगा। यह उस प्रकार होगा जैसे आज अंग्रेजी और हिंदी भाषाओं का तकनीकी क्षेत्र में व्यापक उपयोग होता है। इस पहल से दुनियाभर के उत्तराखंडी अपने शब्दों, कहावतों और सांस्कृतिक अनुभवों को साझा कर सकेंगे, जिससे उनकी भाषाएं डिजिटल माध्यम में सशक्त रूप से संरक्षित और प्रोत्साहित होंगी।
सच्चिदानंद सेमवाल अमेरिका के सिएटल में निवासरत हैं और इस परियोजना के प्रमुख आर्किटेक्ट भी हैं। उनका कहना है कि यह सिर्फ तकनीकी परियोजना नहीं है, बल्कि पूरे उत्तराखंडी समाज के लिए एक मील का पत्थर है। यह कदम उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को एआई युग में सुरक्षित रखने और उसकी समृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास साबित होगा। आने वाली पीढ़ियां अपनी मातृभाषा को गर्व से उपयोग कर सकें, यही इस पहल का उद्देश्य है।
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