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म्यांमार में राहत से ज्यादा जरूरी है पुनर्निर्माण, भारत की भूमिका अहम : एडम कैस्टिलो

म्यांमार में आए विनाशकारी भूकंप के बाद तबाही का मंजर है। देश की प्रमुख सिक्योरिटी और रिस्क मैनेजमेंट कंपनी के चेयरमैन एडम कास्टिलो का मानना है कि भारत इस संकट में अहम भूमिका निभा सकता है, खासकर बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण में। उन्होंने कहा कि म्यांमार को खाने के पैकेट नहीं, इंजीनियर चाहिए।

सिक्योरिटी और रिस्क मैनेजमेंट कंपनी AGS म्यांमार के चेयरमैन एडम कैस्टिलो / Courtesy Photo

म्यांमार की सबसे बड़ी सिक्योरिटी और रिस्क मैनेजमेंट कंपनी AGS म्यांमार के चेयरमैन एडम कैस्टिलो का मानना है कि हाल के भूकंप से हुई तबाही के बाद म्यांमार की मदद के लिए भारत आगे आ सकता है। कैस्टिलो ने कहा, 'मैं भारत को शायद सबसे अच्छा मददगार मानता हूं... क्योंकि वह म्यांमार के काफी करीब है। मेरा मानना है कि भारत के जरिए बुनियादी ढांचे के फिर से निर्माण में सहयोग बढ़ सकता है। इसमें अमेरिका और क्वॉड देश समर्थन दे सकते हैं।'

म्यांमार से मिल रही रिपोर्ट्स चौंकाने वाली हैं। स्थानीय राहत टीमों ने अब तक करीब 4,000 लोगों की मौत की पुष्टि की है। कैस्टिलो को डर है कि असली संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी चुनौती सिर्फ तबाही नहीं, बल्कि सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों तक पहुंच नहीं हो पाना है। जैसे सागांग क्षेत्र में पुल और सड़कें टूट जाने के कारण अब भी राहत टीमें नहीं पहुंच पा रही हैं।

कैस्टिलो ने कहा, 'इस वक्त सबसे जरूरी है बुनियादी ढांचे को ठीक करना। दो पुल बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं। एक तो पूरी तरह ढह गया है, दूसरा भी लगभग बेकार हो चुका है। ये पुल मुख्य रसद मार्ग, खासकर मांडले को भूकंप के केंद्र सागांग से जोड़ते हैं।'

इन पुलों के टूटने से राहत कार्यों में भारी अड़चन आई है। जरूरी सामान की आपूर्ति भी अटकी हुई है। कैस्टिलो ने जोर देकर कहा, 'अगर लॉजिस्टिक्स (रसद व्यवस्था) ठीक नहीं हुई, तो चाहे दुनिया भर से कितनी भी मदद आ जाए, वह प्रभावित इलाकों तक नहीं पहुंच पाएगी।'

अमेरिका समेत कई देशों ने मदद के लिए फंड का ऐलान किया है। वाशिंगटन ने 90 लाख डॉलर (करीब 75 करोड़ रुपये) की राहत राशि देने की बात कही है। लेकिन कैस्टिलो का कहना है कि अगर इस पैसे को सही जगह नहीं पहुंचाया गया, तो यह नौकरशाही के चक्कर में गायब हो सकता है। उन्होंने बताया, 'स्थानीय एनजीओ और स्वयंसेवी समूह चाहते हैं कि यह फंड सीधे प्रभावितों तक पहुंचे, न कि बड़े मानवीय संगठनों के पास जमा हो जाए, जहां यह पैसा सिर्फ 'खातों में जमा' रह जाता है।'

कैस्टिलो ने म्यांमार के प्राइवेट सेक्टर की उस भूमिका पर भी जोर दिया जिसके रोल को आपदा के तुरंत बाद अक्सर कम आंका जाता है। उन्होंने कहा, 'निजी क्षेत्र, खासकर स्थानीय कंपनियों और बैंकों ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। उन्होंने अपने संसाधनों से राहत शिविर, अस्पताल बनाए। यह सब उन्होंने अपने खर्चे से किया है।'

लेकिन इन सामूहिक प्रयासों के बावजूद, जमीनी स्तर पर अव्यवस्था ने नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। कैस्टिलो ने कहा, 'राहत कार्यों की सबसे बड़ी कमजोरी असंगठित होना है। सभी को अपने संसाधनों को एक साथ लाना होगा, नहीं तो यह अराजकता बनी रहेगी।' उन्होंने दान को लेकर होने वाले झगड़ों की ओर भी इशारा किया।

भारत और चीन जैसे देशों की भूमिका के सवाल पर कैस्टिलो ने कहा, 'दोनों ने बचाव दल भेजे थे। लेकिन चीन समेत कई अंतरराष्ट्रीय टीमें वापस जा चुकी हैं।' उन्होंने कड़वी सच्चाई बताते हुए कहा, 'अब बचाव कार्य लगभग खत्म हो गए हैं, क्योंकि बचाने के लिए ज्यादा कुछ बचा ही नहीं है।'

कैस्टिलो ने कहा कि म्यांमार को अब खाने के पैकेट्स नहीं, बल्कि जमीन पर काम करने वाले लोगों की जरूरत है—खासकर इंजीनियरों की। उन्होंने कहा, 'खाना भेजने की बजाय, ऐसी टीमें भेजें जो पुनर्निर्माण में मदद कर सकें। मेरी राय में इंजीनियरों की जरूरत है, लेकिन अब तक किसी देश ने इस पर ठोस कदम नहीं उठाए हैं।'

पुल टूटने और सड़कें बर्बाद होने के कारण, कैस्टिलो का मानना है कि मदद का असर दिखाने के लिए सबसे पहले म्यांमार के बुनियादी ढांचे को ठीक करना होगा। उन्होंने कहा, 'नावों या फेरियों से सामान पहुंचाने की कोशिश व्यावहारिक नहीं है। खस्ताहाल पुल पर छोटे वाहनों से सामान ले जाना भी जोखिम भरा है। अगर हम वाकई मदद करना चाहते हैं, तो यह तरीका काम नहीं करेगा।'

उन्होंने तात्कालिक त्रासदी के पीछे एक और गहरा संकट मंडरा रहा है—नकदी, कंक्रीट और ट्रकों की कमी। कैस्टिलो ने बताया, 'देश में कंक्रीट की किल्लत हो रही है। राहतकर्मियों के पास सामान खरीदने के लिए पैसे भी नहीं हैं।' उत्तरी म्यांमार में निजी बैंकों को नुकसान ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।

कैस्टिलो ने चेतावनी दी कि इतनी जटिल जरूरतों के बीच, मदद को सिर्फ औपचारिकता पूरी करने का जरिया नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'अगर हम सिर्फ सैन्य सरकार को पैसा दे दें, या यूएन जैसे बड़े संगठनों के हवाले कर दें, तो यह गर्म आलू को आगे थमाने जैसा होगा। फिर यह उनकी समस्या बन जाएगी।'

उनके मुताबिक, अमेरिका और क्वॉड के साझेदार देशों, खासकर भारत, को ऐसी मदद पर फोकस करना चाहिए जो स्थानीय एनजीओ नहीं दे सकते। जैसे देश के बुनियादी ढांचे को फिर से खड़ा करना। कैस्टिलो ने कहा, 'अमेरिका को राहत के नाम पर पैसा बांटने की बजाय पुनर्निर्माण में योगदान देना चाहिए। यूएन या अमेरिकी एजेंसियों के पास बुनियादी ढांचा बनाने की क्षमता नहीं है। यह उनके काम का हिस्सा नहीं है।'

 

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