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UCLA में भारतीय मूल के वैज्ञानिक को मिला प्रतिष्ठित पद

यह पद उनकी प्लाज्मा फिजिक्स और एक्सेलेरेटर साइंस में दशकों की अहम वैज्ञानिक उपलब्धियों को मान्यता देता है।

भारतीय मूल के प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी चंद्रशेखर जोशी / Courtesy: UCLA Samueli

भारतीय मूल के प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी चंद्रशेखर जोशी को अमेरिका की UCLA सैमुएली स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में एक अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है। उन्हें मुखुंद पद्मनाभन टर्म चेयर इन एक्सीलेंस का पहला धारक नियुक्त किया गया है।

यह पद उनकी प्लाज्मा फिजिक्स और एक्सेलेरेटर साइंस में दशकों की अहम वैज्ञानिक उपलब्धियों को मान्यता देता है। यह चेयर UCLA के पूर्व छात्र मुखुंद पद्मनाभन द्वारा दिए गए 5 लाख अमेरिकी डॉलर के दान से स्थापित की गई है।

UCLA सैमुएली स्कूल की डीन आह-ह्युंग एलिसा पार्क ने कहा कि जोशी का काम भविष्य के कण त्वरकों को छोटा, सुलभ और कम खर्चीला बनाने में मदद करेगा।

चंद्रशेखर जोशी पिछले चार दशकों से प्रयोगात्मक प्लाज्मा फिजिक्स में अग्रणी रहे हैं। वह UCLA के प्लाज्मा एक्सेलेरेटर ग्रुप का नेतृत्व करते हैं। उनका शोध अगली पीढ़ी के हाई-एनर्जी एक्सेलेरेटर सिस्टम विकसित करने पर केंद्रित है।

अब तक वह 600 से अधिक वैज्ञानिक शोध पत्र प्रकाशित कर चुके हैं। उन्हें कई बड़े अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं।

इनमें जेम्स क्लर्क मैक्सवेल पुरस्कार, मैरी क्यूरी अवॉर्ड और मेडल और गोथेनबर्ग लीसे माइटनर अवॉर्ड शामिल हैं।

साल 2014 में उन्हें अमेरिका की नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग का सदस्य चुना गया था। वहीं 2025 में उन्हें इंडियन नेशनल साइंसेज एकेडमी का विदेशी फेलो बनाया गया। शोध के साथ-साथ जोशी को एक उत्कृष्ट शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने अब तक 35 पीएचडी छात्रों का मार्गदर्शन किया है। उन्होंने स्नातक छात्रों के लिए फास्ट ट्रैक ऑनर्स प्रोग्राम भी शुरू किया।

इंजीनियरिंग शिक्षा में योगदान के लिए उन्हें इंजीनियरिंग एजुकेटर ऑफ द ईयर अवॉर्ड भी मिल चुका है। पीएचडी पूरी करने के बाद जोशी ने 1978 से 1980 के बीच कनाडा की नेशनल रिसर्च काउंसिल में रिसर्च एसोसिएट के रूप में काम किया। उन्होंने 1978 में ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ हल से एप्लाइड फिजिक्स में पीएचडी की। इससे पहले उन्होंने 1974 में यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से न्यूक्लियर इंजीनियरिंग में स्नातक डिग्री हासिल की।

यह नियुक्ति भारतीय मूल के वैज्ञानिकों की वैश्विक पहचान और विज्ञान के क्षेत्र में भारत की मजबूत उपस्थिति को एक बार फिर दर्शाती है।

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