अमेरिकी ध्वज की तस्वीर। / Unsplash
अमेरिका में जन्मे और पले-बढ़े भारतीय मूल के युवाओं यानी दूसरी पीढ़ी के भारतीय अमेरिकियों के लिए जिंदगी अक्सर दो दुनियाओं के बीच झूलती रहती है। एक तरफ पश्चिमी समाज की आधुनिक सोच और जीवनशैली, दूसरी तरफ परिवार द्वारा सौंपी गई भारतीय परंपराएं। इन दोनों को संतुलित रखने की कोशिश उनके अस्तित्व का सबसे बड़ा संघर्ष बन जाती है।
न्यू इंडिया अब्रॉड ने कुछ दूसरी पीढ़ी के भारतीय अमेरिकियों से बात की और जाना कि वे अपनी पहचान कैसे साध रहे हैं,कभी दबाव झेलते हुए और कभी अपनी राह बनाते हुए।
शादी को लेकर सबसे बड़ा टकराव
भारतीय प्रवासी माता-पिता के लिए आज भी अरेंज मैरिज एक महत्वपूर्ण परंपरा है। लेकिन दूसरी पीढ़ी, जो अमेरिकी समाज में पली-बढ़ी है, अपने जीवनसाथी को खुद चुनने की स्वतंत्रता को अधिक महत्व देती है।
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मियामी की मार्केटिंग कंसल्टेंट प्रिया पी. बताती हैं, “20 साल की हुई तो घर में बायोडाटा दिखाए जाने लगे। मुझसे पूछा गया कि मैं परिवार द्वारा चुने ‘अच्छे लड़के’ को क्यों नहीं मिल रही। मुझे समझाना पड़ा कि मैं अपनी पसंद से शादी करना चाहती हूं। ऐसा लगा जैसे मैं उनकी पूरी संस्कृति को ठुकरा रही हूं, जबकि मैं बस अपनी पहचान जीना चाहती हूं।”
करियर को लेकर भारी दबाव
पढ़ाई और करियर को लेकर दूसरी पीढ़ी पर सबसे ज्यादा अपेक्षाएं रहती हैं। कई भारतीय माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर या वकील बनाने का सपना देखते हैं। लॉस एंजिलिस के मार्केटिंग एग्जिक्यूटिव निखिल एस. बताते हैं, “मैंने सिर्फ इसलिए प्री-मेड लिया क्योंकि घर पर यही एक विकल्प माना जाता था। जब मैंने मार्केटिंग में स्विच किया तो गुस्सा नहीं आया, बस गहरी निराशा दिखी। कहा गया कि मैं 'अपनी क्षमता बर्बाद कर रहा हूं'। उस बात ने मुझे तोड़ा भी और आगे बढ़ने की प्रेरणा भी दी। आज जब मेरे करियर में सफलता दिख रही है, तब जाकर परिवार खुश हुआ है।”
अपनी ‘दोहरी पहचान’ को अपनाने की कोशिश
दूसरी पीढ़ी के युवाओं के सामने सबसे बड़ा सवाल यह होता है कि क्या वे भारतीय हैं या अमेरिकी? कई युवा इस तनाव से निकलकर अब बाइकल्चरल आइडेंटिटी को अपनाने लगे हैं—एक ऐसी पहचान, जो भारतीय भी है और अमेरिकी भी। न्यूयॉर्क की रेखा पी. कहती हैं, “ये किसी एक को चुनने का सवाल नहीं है। मैं शादी में साड़ी पहनकर उसके इतिहास पर बात कर सकती हूं और अगले दिन ऑफिस में बिज़नेस सूट में प्रेजेंटेशन दे सकती हूं। मैं कार चलाते हुए बॉलीवुड सुनती हूं और बाद में हिप-हॉप क्लास में नाचती हूं। मुझे भारतीय और अमेरिकी दोनों होने पर गर्व है—और यह मेरी ताकत है।”
एक नई भारतीय-अमेरिकी पहचान का निर्माण
दूसरी पीढ़ी के भारतीय अमेरिकी आज एक ऐसे नए सांस्कृतिक स्वरूप को गढ़ रहे हैं, जो न पूरी तरह भारतीय है, न पूरी तरह अमेरिकी, बल्कि दोनों का सुंदर मिश्रण है। वे अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए आधुनिकता को भी अपनाते हुए दो दुनिया के बीच पुल का काम कर रहे हैं।
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