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क्यों चर्चा में भारतीय संविधान की 6वीं अनुसूची? हिमालयी राज्यों के लिए जोर पकड़ रही मांग

भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत जनजातीय क्षेत्रों को भूमि पर अधिकार, स्थानीय संसाधनों पर नियंत्रण, सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा और स्थानीय प्रशासन चलाने का अधिकार दिया गया है।

हिमालय / pexles

हिमालयी पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को हाल ही में भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताकर गिरफ्तार किया है। उनकी गिरफ्तारी उस मांग से जुड़ी है, जिसकी पिछले लंबे समय से हिमालयी राज्यों में मांग जोर पकड़ रही है। वो है- भारतीय संविधान की 6वीं अनुसूची। सोनम भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से आते हैं। इस आर्टिकल में हम समझेंगे कि आखिर यह छठी अनुसूची है क्या और यह हिमालयी राज्यों के लिए क्यों अहम है?

6वीं अनुसूची क्या है?
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची (अनुच्छेद 244 और 275) पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय क्षेत्रों को विशेष अधिकार और स्वायत्तता प्रदान करती है। वर्तमान में यह असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के आदिवासी इलाकों पर लागू है, जहां स्थानीय जनजातीय लोगों को स्वायत्त जिला परिषदों (Autonomous District Councils - ADCs) के माध्यम से भूमि, संसाधनों, संस्कृति और प्रशासन से जुड़े मामलों पर स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति दी गई है, ताकि उनकी पहचान, अधिकार और पारंपरिक जीवनशैली सुरक्षित रह सके।

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भूमि पर अधिकार
छठी अनुसूची के तहत जनजातीय क्षेत्रों को भूमि पर अधिकार, स्थानीय संसाधनों पर नियंत्रण, सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा और स्थानीय प्रशासन चलाने का अधिकार दिया गया है, ताकि इन समुदायों की पारंपरिक जीवनशैली, पर्यावरण और स्वशासन प्रणाली सुरक्षित रह सके। इसका मतलब यह है कि इन क्षेत्रों के लोग अपने हिसाब से जमीन, वन, पानी और संसाधनों से जुड़े फैसले ले सकते हैं, ताकि उनकी संस्कृति और पर्यावरण संरक्षित रहे।

क्यों उठ रही मांग
2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग होकर केंद्र शासित प्रदेश बने लद्दाख में स्थानीय लोग अपनी पहचान, भूमि अधिकार और रोजगार सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। उनका मानना है कि बड़े कॉरपोरेट और बाहरी लोगों के दबाव से लद्दाख की जमीन और पर्यावरण खतरे में हैं। इसी कारण सोनम वांगचुक समेत कई संगठन मांग कर रहे हैं कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए, ताकि स्थानीय जनजातियों की ज़मीन पर बाहरी कब्ज़ा न हो, पारिस्थितिकी सुरक्षित रहे और पारंपरिक संस्कृति बची रहे। विशेषज्ञों का कहना है कि लद्दाख समेत पूरे हिमालयी क्षेत्र पहले से ही जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियर पिघलने, अनियंत्रित पर्यटन, खनन और बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की वजह से गंभीर संकट का सामना कर रहा है, जिससे इन इलाकों की नाजुक पारिस्थितिकी और समुदाय दोनों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है।

हिमालयी राज्यों को खतरा
विशेषज्ञों का मानना है कि हिमालयी राज्यों में ग्लेशियर पिघलने, जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित पर्यटन और बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स तेजी से प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ रहे हैं। इन चुनौतियों के बीच स्थानीय समुदाय अपनी जमीन और संसाधनों पर नियंत्रण की मांग कर रहे हैं, ताकि वे पर्यावरण और संस्कृति की रक्षा करते हुए अपने भविष्य की सुरक्षा खुद सुनिश्चित कर सकें।

 

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