पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर कूटनीतिक और जल-संबंधी दबाव बढ़ा दिया है। अब भारत ने जम्मू-कश्मीर में चार प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं की निर्माण प्रक्रिया को तेज कर दिया है, जिससे पाकिस्तान की चिंता और गहरा गई है। यह कदम सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद उठाया गया है, जो अब एक बड़े टकराव की ओर इशारा कर रहा है।
भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में चार जलविद्युत परियोजनाओं — पाकल डुल (1000 मेगावाट), कीरू (624 मेगावाट), क्वार (540 मेगावाट) और रतले (850 मेगावाट) — के निर्माण की समय-सीमा को आगे बढ़ा दिया है। ये सभी परियोजनाएं चिनाब नदी पर हैं, जिसकी धारा मुख्य रूप से पाकिस्तान की ओर जाती है।
इन परियोजनाओं को अब जून 2026 से अगस्त 2028 के बीच शुरू करने की योजना है। यह निर्णय ऐसे वक्त में लिया गया है जब भारत ने हाल ही में सिंधु जल संधि को निलंबित कर पाकिस्तान को बड़ा झटका दिया है।
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भारत का यह कड़ा रुख 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद सामने आया है, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे। भारत का दावा है कि हमलावर पाकिस्तान से आए थे। इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है और सीमा पर लगातार गोलीबारी हो रही है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान की सिंधु नदी प्रणाली प्राधिकरण (IRSA) ने चिनाब नदी में जल प्रवाह में अचानक आई 90% तक की गिरावट पर गहरी चिंता जताई है। पाकिस्तान का कहना है कि भारत की जल परियोजनाओं के कारण जल आपूर्ति अस्थिर हो गई है, जिससे खेती और बिजली उत्पादन दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
IRSA के मुताबिक रविवार को चिनाब का प्रवाह 31,000 क्यूसेक था, जो सोमवार को गिरकर मात्र 3,100 क्यूसेक रह गया, हालांकि बाद में यह 25,000 क्यूसेक तक लौट आया। पाकिस्तान ने इसे ‘जल युद्ध’ करार दिया है और चेतावनी दी है कि यदि भारत ने जल प्रवाह को रोका या मोड़ा, तो इसे युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा।
भारत की रणनीति
प्रधानमंत्री मोदी सरकार ने इन परियोजनाओं की राह में आने वाली तमाम बाधाओं को हटाने के निर्देश दिए हैं। एक उच्चस्तरीय सरकारी सूत्र के अनुसार, भारत केवल मौजूदा परियोजनाओं को ही नहीं, बल्कि 7 गीगावाट क्षमता की कुल 7 नई परियोजनाओं पर भी काम तेज करना चाहता है।
भारत की ओर से सिंधु जल संधि में संशोधन की मांग पहले से ही उठती रही है। सरकार का तर्क है कि देश की जनसंख्या वृद्धि और स्वच्छ ऊर्जा की जरूरतों को देखते हुए अब इस संधि की शर्तों की पुनर्समीक्षा जरूरी है।
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