हजारों साल पुराने कुंभ मेले में लाखों हिंदू तीर्थयात्री आते हैं। इनकी यात्रा का मकसद होता है पवित्र नदियों के संगम पर स्नान करना। लोगों की जितनी दूर तक याददाश्त जाती है तो एक बात सामने आती है कि निषाद समाज के नाविक ही श्रद्धालुओं को नदियों के संगम स्थल तक नाव से ले जाते रहे हैं।
52 साल के नाविक छोटे लाल निषाद ने कहा, 'हम अपनी नाव में श्रद्धालुओं को पवित्र स्थान पर ले जाते हैं।' सुबह-सुबह अपनी छोटी सी लकड़ी की नाव में छह तीर्थयात्रियों को नदी में घुमा कर वापस आते हुए उन्होंने ये बात कही। उन्होंने कहा कि हम श्रद्धालुओं को प्यार और खुशी से स्नान करने देते हैं और फिर उन्हें सुरक्षित वापस ले आते हैं। वह कहते हैं कि उन्हें ये पेशा विरासत में मिला है। वे न सिर्फ तीर्थयात्रियों को ले जाते हैं, बल्कि उन्हें पानी के महत्व और कुंभ मेले के धार्मिक इतिहास के बारे में भी बताते हैं। वर्षों के अनुभव के साथ वे अक्सर स्नान करने करने के दौरान डूबने वालों को बचाने में भी मदद करते हैं।
हिंदुओं का मानना है कि जो लोग इस संगम में डुबकी लगाते हैं, उनके पाप धुल जाते हैं। वे पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाते हैं और आखिरकार मोक्ष प्राप्त करते हैं।
निषाद समाज के नाविक साल भर तीर्थयात्रियों को नाव से ले जाते हैं। लेकिन कुंभ मेले के दौरान उनका काम बहुत बढ़ जाता है। कुंभ मेला छह हफ्ते तक चलने वाला हिंदुओं का एक बड़ा त्योहार है। इस दौरान ध्यान, प्रार्थना और स्नान किया जाता है। ये मेला हर 12 साल में लगता है। इस बार प्रयागराज में यह 26 फरवरी तक चलेगा। उत्तरी भारत के प्रयागराज शहर में इस मेले में करोड़ों लोग शामिल हो रहे हैं।
छोटे लाल निषाद के ही समाज से ताल्लुक रखने वाले 23 साल के विराज निषाद नई पीढ़ी के नाविकों में से एक हैं। वे अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
आमतौर पर नाविक तीर्थयात्रियों को गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम के मुख्य स्थान पर ले जाते हैं। हिंदुओं का मानना है कि यहां पौराणिक सरस्वती नदी भी बहती है। लेकिन इस साल अधिकारियों ने सुरक्षा कारणों से त्योहार के दौरान नाविकों को सबसे व्यस्त इलाकों में जाने से रोक दिया है। छोटे लाल निषाद ने कहा, नदी ही निषाद समुदाय का सहारा है। अगर नदी नहीं होगी तो हम भूख से मर जाएंगे।
उन्होंने आगे कहा, मुझे बहुत उम्मीद थी कि मैं बच्चों के लिए कुछ पैसे कमा पाऊंगा। वह उम्मीद टूट गई है। आयोजकों का कहना है कि कुंभ मेले का आकार एक अस्थायी देश जैसा है और इसमें 400 मिलियन से भी ज्यादा तीर्थयात्रियों के आने की उम्मीद है।
दरअसल, पिछले महीने भीड़ के जोर से पुलिस की घेराबंदी पार करने और भगदड़ से कुछ तीर्थयात्रियों की मौत हो गई और कई घायल हो गए थे। नाविक अब भी तीर्थयात्रियों को पवित्र स्नान स्थलों पर ले जा रहे हैं, लेकिन भीड़भाड़ वाले संगम से थोड़ी दूर। इन प्रतिबंधों के बावजूद उनका काम चल रहा है। कई तीर्थयात्रियों का कहना है कि वे बड़े आधुनिक जहाजों की बजाय पारंपरिक नावों को ही तरजीह देते हैं।
दिल्ली की 60 साल की अजीत कौर प्रजापति ने कहा, 'लकड़ी की नाव धीरे-धीरे चलती है और उससे मिलने वाला आनंद और अनुभव...आधुनिक नावों में नहीं मिलता। उन्होंने कहा, मां के हाथ का बना खाना खाने का जो मजा है, वही मजा लकड़ी की नाव में यात्रा करने में है।'
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
Comments
Start the conversation
Become a member of New India Abroad to start commenting.
Sign Up Now
Already have an account? Login