भारत इस समय अभूतपूर्व भूजल संकट से जूझ रहा है। सरकारी और विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, देश के लगभग 85% ग्रामीण पेयजल और 60% सिंचाई की ज़रूरतें भूजल पर निर्भर हैं, लेकिन पानी का स्तर तेज़ी से गिर रहा है। कृषि में अंधाधुंध दोहन, बेतरतीब शहरीकरण और अस्थिर मानसून ने देश के बड़े हिस्से को जल-संकटग्रस्त क्षेत्र में बदल दिया है।
हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्य जो कभी हरित क्रांति की मिसाल माने जाते थे। आज सूखते कुओं और खाली होते नलकूपों से जूझ रहे हैं। सरकार की वर्षा जल संचयन और वाटरशेड मैनेजमेंट योजनाएं ज़रूर चल रही हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इनका असर सीमित है। शहरी क्षेत्रों में रोज़ाना लाखों लीटर पानी बर्बाद होता है, जबकि ग्रामीण इलाक़ों में लोग सुरक्षित पेयजल के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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जलवायु परिवर्तन ने स्थिति और गंभीर बना दी है। recharge (पुनर्भरण) का समय घट रहा है और लोग गहराई तक के, अक्सर दूषित, जलस्रोतों पर निर्भर होते जा रहे हैं। विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि अगर यही रफ़्तार रही, तो 21 भारतीय शहर जल्द ही भूजल से खाली हो सकते हैं।
‘आईसीए’ की पहल
ऐसे संकट में Indians for Collective Action (ICA) — जो 1968 में कैलिफोर्निया में स्थापित हुआ था — ने अपने वार्षिक फंडरेज़र में इस साल जल संरक्षण को केंद्र में रखा। संगठन का Ponds for Farming प्रोजेक्ट सूखा प्रभावित इलाक़ों में खेत तालाब बनाकर भूजल को रिचार्ज करने की दिशा में काम कर रहा है।
आईसीए का मानना है कि स्थानीय समुदायों को आत्मनिर्भर बनाकर ही टिकाऊ समाधान संभव है। संगठन भारत में काम करने वाले कई गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के साथ साझेदारी करता है जो ग्रामीण आजीविका, महिलाओं के सशक्तिकरण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन पर कार्यरत हैं।
इस साल आईसीए के कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं मित्तल पटेल, जिन्होंने गुजरात की घुमंतू और विमुक्त जनजातियों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए एक नई राह दिखाई। सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उन्होंने 2005 में Vicharata Samuday Samarthan Manch (VSSM) की स्थापना की, ताकि बिना घर, दस्तावेज़ और पहचान वाले लोगों को मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड और आधार कार्ड दिलाए जा सकें।
मित्तल पटेल के अनुसार, विकास सड़कों और इमारतों से नहीं, बल्कि पहचान और स्वीकृति से आता है। जब कोई महिला अपना पहला राशन कार्ड हाथ में लेती है या कोई बच्चा पहली बार अपना नाम लिखता है, वहीं असली विकास दिखता है।
युवाओं का अनुभव: जमीनी भारत से साक्षात्कार
इस साल आईसीए के युवा कार्यक्रम के तहत अमेरिकी-भारतीय छात्र महाराष्ट्र के आनंदवन और हेमलकसा जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में गए, जहां उन्होंने कुष्ठ रोगियों, दृष्टिहीन और श्रवण बाधित लोगों के पुनर्वास केंद्रों में काम किया। एक छात्रा ने साझा किया कि उसने वहाँ लगातार दो बच्चों के जन्म में सहायता की, जो उसके लिए एक अविस्मरणीय अनुभव रहा।
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