पिछले 25 सालों से अमेरिका ने भारत को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मानते हुए अपनी विदेश नीति का केंद्र बनाया था। यह साझी वैल्यूज, मिलते-जुलते हित और चीन के खिलाफ संतुलन बनाने के दृष्टिकोण पर आधारित था। लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में यह रिश्ता टकराव की ओर बढ़ गया है। भारतीय निर्यात और तेल खरीद पर लगाए गए टैरिफ ने इस संबंध को 1998 के परमाणु प्रतिबंधों के बाद के सबसे बड़े संकट में डाल दिया है।
कार्नेगी एंडोवमेंट में स्ट्रैटेजिक अफेयर्स की टाटा चेयर पर कार्यरत ऐशली जे. टेलिस ने एक पॉडकास्ट में कहा कि ट्रम्प बड़ी पावर प्रतियोगिता की दृष्टि से दुनिया को नहीं देखते, और इसलिए भारत की अहमियत उनकी रणनीति में कम हो गई। हाल ही में लागू किए गए 25 प्रतिशत टैरिफ और रूसी तेल पर शुल्क ने रिश्ते को और खट्टा कर दिया। टेलिस का कहना है कि ये कदम रणनीति से कम और ट्रम्प की व्यक्तिगत पसंद से ज्यादा प्रभावित थे।
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भारत ने इस पर संयम दिखाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में चीन और रूस के नेताओं के साथ तस्वीरों के बावजूद भारत ने अमेरिका के साथ संवाद खुला रखा। टेलिस के अनुसार, भारत ने टैरिफ कटौती, अधिक अमेरिकी ऊर्जा खरीदने और परमाणु दायित्व कानून में संशोधन जैसे प्रस्ताव दिए हैं।
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