पंडित छन्नूलाल मिश्र नहीं रहे। यह खबर पढ़ते ही सबसे पहले एक सोहर ध्यान में आई... सखी सब गावेली सोहर, रतिया मनोहर। यह सोहर गीत अपनी गर्भावस्था के दिनों में मैं खूब सुना करती थी। मन थोड़ा उदास हुआ कि इनसे मिलने की आस थी, वह भी अब टूट गई। इन दिनों बुद्ध को पढ़ रही हूं पर जीवन-मरण के खेल से मुक्त हो पाऊं अभी वैसी अवस्था तक नहीं पहुची।
बीते दिनों ही बेटे का जन्मदिन रहा और इनका गाया सोहर फिर से सुना। तब कहां मालूम था कि ये अस्पताल के बिस्तर पर लेटे, दिगम्बर को याद कर रहे होंगें। श्याद मन ही मन गुनगुना रहे होंगे... खेले मसान में होरी दिगंबर, खेले मसान में होरी।
मैं इनके गायन को याद करती हूं तो कोयल की एक कूक कान से गुजरती है। कोयल तोरी बोलिया... गाते हुए वे कितना समझाते हैं कि कोयल की मीठी आवाज से भी प्रेमी जाग सकता है। कई बार गीतों के बीच मुझे उनका यह समझना अखरता था। सोचती थी की बिना लय तोड़े ये गाते क्यो नहीं?
आकांक्षा लगातार सुनने की होती। फिर बाद में लगा यह भी ठीक है। सार्वजनिक स्थल पर गायन हो रहा है। हर तरह के श्रोता मौजूद हैं। और फिर जिस तरह से संगीत की दुनिया बदल रही है, संगीत का ककहरा तो नई पीढ़ी को समझ में आना चाहिए। तभी तो वे रुचि ले पाएंगे। वे संगीत के एक पूर्वज की तरह लोकगीतों की धरोहर को आने वाली पीढ़ी को सौंपना चाहते थे।
आपकी गाई गंगा स्तुति की मां गंगा से प्रार्थना है कि आपकी आत्मा को शांति दें,
जय जय भगीरथ-नंदिनी, मुनि-चय चकोर-चन्दिनी
नर-नाग-बिबुध-वंदिनी, जय जह्नुबालिका।
जय जय भगीरथ-नंदिनी...
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