गुड़गांव के एक युवक का अनुभव इस बेरहम सच्चाई को बयान करता है। वह रोज़ की तरह सुबह 9 बजे लॉगिन हुआ। 11 बजे कंपनी की एक मीटिंग कॉल आई—सिर्फ चार मिनट चली। कैमरे और माइक बंद। सीओओ ने सीधे कह दिया, 'हमने कठिन फैसला लिया है, भारतीय टीम का बड़ा हिस्सा अब हमारे साथ नहीं रहेगा। यह परफॉर्मेंस का मामला नहीं, बल्कि संगठनात्मक ढांचे में बदलाव है।' 11:04 पर कॉल खत्म और महीनों की मेहनत तीन मिनट में मिट्टी हो गई।
लेकिन यह कहानी अकेली नहीं। Reddit पर इस पोस्ट के नीचे दर्जनों लोगों ने अपनी-अपनी आपबीती साझा की। किसी ने लिखा, 'मेरे साथ भी यही हुआ, दो मिनट का कॉल और सब खत्म।' किसी ने कहा, 'पांच साल में चार बार नौकरी गई, अब दर्द भी नहीं होता।' किसी और ने बताया, 'आज सुबह कोड पुश किया, शाम को एक्सेस बंद कर दिया गया।'
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यह अनुभव सिर्फ भारत का नहीं, बल्कि अमेरिका में भी वही हाल है। थकान, अविश्वास और डर—यह भावनाएं अब हर जगह छंटनी का स्थायी हिस्सा बन गई हैं। कंपनियां कहती हैं, 'यह बिज़नेस डिसीजन है।' लेकिन कर्मचारियों के लिए यह सिर्फ अचानक टूटी पहचान है।
लोग महीनों तक नौकरी खोजते हैं, बार-बार इंटरव्यू देते हैं, और हर बार छंटनी का जख्म ताज़ा हो उठता है। एक ने लिखा-अब भी वो आवाज़ें कानों में गूंजती हैं। दूसरा बोला-आज भी डर लगता है, एक पल आप टीम का हिस्सा होते हैं, अगले पल बाहरवाले।”=
फिर भी, इस निराशा के बीच जीवटता भी झलकती है। किसी ने प्रार्थना और धैर्य से नए मौके तलाशे। एक कंटेंट प्रोफेशनल ने कहा, 'अब उम्मीद नहीं बची, लेकिन मैं अपने असली शौक—गायन—की ओर लौट रहा हूx।'
आज इंटरनेट ही कर्मचारियों के लिए सहारा बन गया है। कंपनियां जब बेरहमी से निकाल देती हैं, तो अनजान लोग ऑनलाइन हौसला बंधाते हैं, 'खुद पर भरोसा रखो, सकारात्मक रहो।' कोई प्रार्थना करता है, कोई गुस्सा जताता है, तो कोई नौकरी के लिंक शेयर करता है।
दरअसल, पेशेवर दुनिया की परिभाषा बदल गई है। निष्ठा और स्थिरता की जगह अब हिम्मत और एक-दूसरे का सहारा ही नया प्रोफेशनलिज़्म है। शायद नौकरी सिर्फ तीन मिनट में छिन जाती है—लेकिन नया सफर, नए भरोसे और नई शुरुआत इन्हीं साझा अनुभवों और ऑनलाइन समर्थन से शुरू होता है।
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