आजकल वैश्विक सियासत ऐसी हो गई है कि पता ही नहीं चल पा रहा किस देश के साथ किसके कैसे संबंध हैं। या जैसे भी संबंध हैं वे लंबे समय तक वैसे ही बने रहेंगे। क्योंकि उन संबंधों को प्रभावित करने वाले मुल्क अपने हिसाब से चीजों को आकार दे रहे हैं। या कि रिश्तों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। महाशक्तियों के अपने स्वार्थ या पूर्वाग्रह हैं। यूरोप से लेकर एशिया तक 'शांति के नाम पर' शक्ति और वर्चस्व का द्रुतगामी खेल चालू है। विडंबना यह है कि शांति की बात करते-करते ही दुनिया में युद्ध और टकराव के कई मोर्चे खुल चुके हैं। बकौल अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प सात महीने में सात युद्ध तो वे ही रुकवा चुके हैं। सियासत ऐसी चल रही है या चलाई जा रही है कि आपको किसी न किसी 'गुट' में घसीटने की पूरी कोशिश होगी। इसका सीधा अर्थ हुआ कि अगर आप एक महाशक्ति के साथ हैं तो अन्य महाबलियों के खिलाफ। हालांकि यह अर्थ निकाला नहीं जाना चाहिए, लेकिन जमीनी स्तर पर होता यही है। ऐसे में 'गुटनिरपेक्ष' जैसे शब्द या स्थितियां अपने मायने खो रहे हैं। तभी तो भारत को 'गुटनिरपेक्ष' जैसे शब्द की संशोधित परिभाषा दुनिया के सामने रखनी पड़ी।
खैर, मुद्दे पर आते हैं कि राष्ट्रपति ट्रम्प अपनी दूसरी पारी में जिस तरह से संबंधों को निर्धारित, नियंत्रित अथवा परिभाषित करने की कोशिश कर रहे हैं क्या उनकी उम्र लंबी हो सकती है। इसका सीधा उत्तर तो 'न' ही है क्योंकि उनका कार्यकाल भी अंतत: खत्म होना है और उसके बाद चीजें या संबंध फिर आकार लेंगे। लेकिन सवाल व्यवस्था का है। व्यवस्था के बदल जाने से हालात पूरी तरह बदल जाते हैं और आजकल अमेरिका जो व्यवस्था बना रहा है वही संबंधों और विचारों के परिवर्तन का निर्धारण बिंदू है। मिसाल के तौर पर टैरिफ है। अमेरिका ने जिस देश के लिए जो टैरिफ निर्धारित किया है, वही संबंधों की भी तस्वीर है। कम टैरिफ का मतलब अच्छे संबंध और ज्यादा टैरिफ का अर्थ सामान्य से 'असामान्य' संबंध। 'असामान्य' को आप एक तरह से 'शत्रु' श्रेणी में भी डाल सकते हैं। लेकिन ट्रम्प एक के बाद एक ऐसी व्यवस्था का ऐलान कर रहे हैं जिसके नतीजे न केवल दूरगामी होंगे बल्कि अमेरिका के लिए भी नकारात्मक साबित हो सकते हैं या होने लगे हैं। जो प्राथमिक नतीजा भारत पर अधिक टैरिफ लगाने को लेकर सामने आया कमोबेश वैसी ही स्थिति H-1B वीजा की नई फीस को लेकर बनती दिख रही है। अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी दंडात्मक टैरिफ लगाया तो उसने नए बाजारों की खोज शुरू कर दी। इसी तरह के हालात पहली बार H-1B वीजा के लिए 1 लाख डॉलर की फीस को लेकर होने लगे हैं।
खबर है कि जर्मनी ने कुशल भारतीय पेशेवरों के लिए दरवाजे खोलने की घोषणा की है। भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन का कहना है कि उच्च कौशल वाले भारतीयों का जर्मनी में स्वागत है। उन्होंने जर्मनी में मौजूद अवसरों की जानकारी देने के लिए एक लिंक भी साझा किया है। दुविधा से जूझ रहे अथवा मोहभंग से उबरने की कोशिश कर रहे भारतीयों के लिए ऐसे आमंत्रण सच में राहतकारी साबित हो सकते हैं। आने वाले समय में भारत समेत दुनिया के अन्य देशों के सामने भी ऐसे विकल्प बढ़ेंगे।
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