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सहज दूरी... संयम की रणनीति

नेताओं का तर्क है कि थरूर जैसे भारतीय नेता जिसे चुप्पी समझते हैं, वह वास्तव में संयम की एक रणनीति है। कानून के दायरे में काम करना, शोरगुल से बचना और शांत संवाद के माध्यम से प्रभाव बनाना।

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अमेरिका-भारत संबंधों में प्रवासी भारतीयों की भूमिका पर न्यू इंडिया अब्रॉड के संवाद ने एक बापर्दा सत्य को फिर से उजागर किया है कि सफलता से प्रभाव आसानी से बढ़ता है, लेकिन शायद ही कभी आवाज में तब्दील हो पाता है। जब भारतीय सांसद थरूर ने पूछा कि ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारतीय वस्तुओं पर वीजा शुल्क और टैरिफ बढ़ाए जाने पर भारतीय-अमेरिकी समुदाय चुप क्यों रहा, तो यह सवाल उसकी राजनीति के चलते नहीं, बल्कि उससे जो उजागर हुआ उसके लिए गूंज उठा। यानी संबद्धता और भागीदारी के बीच की दूरी।

भारतीय-अमेरिकी समुदाय ने दोनों देशों को जोड़ने के लिए बहुत कुछ किया है। धन प्रेषण, प्रौद्योगिकी और नागरिक कार्यों के माध्यम से इसने विश्वास के ऐसे रास्ते बनाए हैं जो सरकारें अक्सर नहीं बना पातीं। इसके नेताओं का तर्क है कि थरूर जैसे भारतीय नेता जिसे चुप्पी समझते हैं, वह वास्तव में संयम की एक रणनीति है। कानून के दायरे में काम करना, शोरगुल से बचना और शांत संवाद के माध्यम से प्रभाव बनाना। उनका तर्क है कि वीजा नियम और व्यापार जैसे मुद्दे अमेरिका की घरेलू राजनीति से प्रभावित होते हैं, भारत के प्रति शत्रुता से नहीं। और उनका काम शिक्षित करना है, उत्तेजित करना नहीं।

यह आत्म-जागरूकता एक बदलाव का प्रतीक है। समुदाय उदासीन नहीं है, बल्कि अपने तरीकों पर चिंतनशील है। उसकी खामोशी अनुपस्थिति नहीं; बल्कि एक 'गणित' है। फिर भी, यह सावधानी यह भी दर्शाती है कि कैसे सहजता सामूहिक ऊर्जा को मंद कर सकती है। स्थिरता प्राप्त करने के बाद प्रवासी समुदाय के कई लोग इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि व्यक्तिगत सफलता को सार्वजनिक उपस्थिति में कैसे बदला जाए।

भारत की चुनौती भी इसी को दर्शाती है। उसने उन संस्थानों में बहुत कम निवेश किया है जो साझेदारी को बनाए रखते हैं। मसलन विश्वविद्यालय (अध्यक्ष), अनुसंधान केंद्र, सांस्कृतिक कार्यक्रम। जो अमेरिकियों को व्यापार और भू-राजनीति से परे भारत को समझने में मदद करते हैं। यह अंतर संस्थागत है, भावनात्मक नहीं।

थरूर और प्रवासी नेताओं के बीच बातचीत एक ही समस्या के दो पहलुओं को उजागर करती है। भारत और उसका वैश्विक समुदाय अभी भी सीख रहा है कि संबंधों को प्रभाव में कैसे बदला जाए। प्रवासी नेताओं ने न्यू इंडिया अब्रॉड वेबिनार में इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया कि प्रवासी समुदाय की भूमिका सरकारों की प्रतिध्वनि करना नहीं है, बल्कि दो महान लोकतंत्रों के बीच समझ को बढ़ावा देना है।

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