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नया दिल, पुराना मकसद ...और रमेश भुटाडा की अमेरिकी यात्रा

जो मायने रखता है, वह है सद्भाव - परिवारों, कार्यस्थलों और समाजों में। केवल हिंदू धर्म ही दुनिया को सद्भाव से रहना सिखा सकता है। श्रेष्ठता नहीं - सद्भाव।

Ramesh Bhutada / Special arrangement

ह्यूस्टन में दिसंबर की एक सुबह... 75 वर्षीय रमेश भुटाडा अस्पताल के एक कमरे में मॉनिटर से चिपके, अपने दिल की धड़कन कम होते देख रहे थे। डॉक्टरों ने उन्हें बताया था कि अब उनके पास केवल दो ही विकल्प हैं। एक यांत्रिक पंप या प्रत्यारोपण। उन्होंने मन ही मन प्रार्थना की। फिर, एक दिन, एक फोन आया। एक युवक की मृत्यु हो गई थी... और उसका दिल बिल्कुल सही जगह पर था।

भुटाडा ने याद किया मैं अकेला व्यक्ति था जिसके दिल में वह दिल फिट हो सकता था, क्योंकि मैं दुबला-पतला था। वह लड़का छोटा था। मैं बाद में उसके माता-पिता से मिला। मैं अब भी उनके संपर्क में हूं।

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