भारतीय-अमेरिकी हृदय रोग विशेषज्ञ बिंदुकुमार कंसुपाड़ा का कहना है कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में रहने वाले दक्षिण-पूर्व एशियाई और भारतीय लोगों में गैर-संचारी रोग (non-communicable diseases- NCD) होने की काफी ज्यादा संभावना होती है।
कंसुपाड़ा के मुताबिक, इसकी एक वजह ये है कि हम अप्रवासी प्रिवेंटिव हेल्थकेयर पर कम ध्यान देते हैं। पिछले 50 वर्षों में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा आदि में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों में हृदय रोग काफी तेजी से बढ़ा है। अब तो कम उम्र के भारतीयों को भी दिल का दौरा पड़ने लगा है।
व्हील्स ग्लोबल फाउंडेशन की हेल्थ काउंसिल के वाइस चेयरमैन डॉ. कंसुपाड़ा ने कहा कि दक्षिण पूर्व एशियाई भारतीयों में हार्ट डिजीज के अलावा डायबीटीज की आशंका भी बहुत अधिक रहती है। यही वजह है कि भारत में इसके मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। अनुमान है कि 2045 तक भारत के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले हर चार में से एक व्यक्ति मधुमेह का शिकार हो जाएगा। संख्या में देखें तो लगभग 12.5 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित होंगे।
उन्होंने कहा कि व्हील्स ग्लोबल फाउंडेशन का उद्देश्य विश्व स्तर पर स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को लेकर जागरूकता फैलाना, अपने ज्ञान, समय व संसाधनों को साझा करके लोगों को लाभ पहुंचाना और प्रौद्योगिकी संचालित मीडिया व टेलीहेल्थ कार्यक्रमों के जरिए ग्रामीण भारत में सुविधाएं प्रदान करना है।
कंसुपाड़ा ने बताया कि संस्था का उद्देश्य अगले पांच वर्षों में गैर संक्रामक रोगों और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता लाना है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार को जैविक एवं प्राकृतिक खाद्य पदार्थों तक पहुंच को सुविधाजनक बनाकर और प्राकृतिक जीवन को बढ़ावा देकर स्वास्थ्य कल्याण में अहम भूमिका निभानी चाहिए।
डॉ. कंसुपाड़ा इंटरनल मेडिसिन, कार्डियोलॉजी, इको कार्डियोग्राफी और न्यूक्लियर कार्डियोलॉजी में बोर्ड सर्टिफाइड डॉक्टर हैं। उन्हें अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी, अमेरिकन कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजिशियन और अमेरिकन सोसाइटी ऑफ न्यूक्लियर कार्डियोलॉजी से फैलोशिप मिली हुई है। उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस के बाद मेडिकल कॉलेज ऑफ पेंसिल्वेनिया से इन्वेसिव और नॉन इन्वेसिव कार्डियोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट किया है।
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