भारत के महाराष्ट्र राज्य में एक छोटे से खेत पर काम करने वाली मीराबाई खिंदकर ने बताया कि सूखे के कारण फसलें खराब होने और उनके पति द्वारा आत्महत्या कर लेने के बाद उनकी जमीन पर केवल कर्ज ही पैदा हुआ।
भारत में किसानों की आत्महत्या का एक लंबा इतिहास रहा है, जहां कई किसान एक फसल खराब होने के बाद भी संकट में फंस जाते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले चरम मौसम ने नए दबाव को और बढ़ा दिया है।
पानी की कमी, बाढ़, बढ़ते तापमान और अनियमित वर्षा के कारण घटती पैदावार और साथ ही भारी कर्ज ने उस क्षेत्र पर भारी असर डाला है, जो भारत के 1.4 बिलियन लोगों में से 45 प्रतिशत को रोजगार देता है।
मीराभाई के पति अमोल पर तीन एकड़ (एक हेक्टेयर) सोयाबीन, बाजरा और कपास की फसल भीषण गर्मी में सूख जाने के बाद कर्ज हो गया, जो उनके खेत की वार्षिक आय से सैकड़ों गुना अधिक था। पिछले साल उन्होंने जहर खा लिया था।
मीराबाई (30) ने रुंधे गले से कहा कि जब वह (उसके पति) अस्पताल में थे तो मैंने सभी देवताओं से उनको बचाने की प्रार्थना की। अमोल की मृत्यु एक सप्ताह बाद हो गई। अमोल अपने पीछे मीराबाई और तीन बच्चों को छोड़ गया। उसके साथ उसकी अंतिम बातचीत कर्ज के बारे में थी।
अमोल की व्यक्तिगत त्रासदी महाराष्ट्र के करीब 1 करोड़ 80 लाख की आबादी वाले मराठवाड़ा क्षेत्र में प्रतिदिन दोहराई जाती है। मराठवाड़ा कभी उपजाऊ कृषि भूमि के लिए जाना जाता था।
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट रिसर्च ग्रुप के अनुसार पिछले साल भारत भर में चरम मौसम की घटनाओं ने 32 लाख हेक्टेयर (79 लाख एकड़) फसल भूमि को प्रभावित किया। यह क्षेत्र बेल्जियम से भी बड़ा है। इसमें से 60 प्रतिशत से अधिक महाराष्ट्र में था।
अमोल के भाई और साथी किसान बालाजी खिंदकर ने कहा कि गर्मी बहुत ज्यादा होती है और अगर हम जो भी ज़रूरी है, वह करते हैं, तो भी उपज पर्याप्त नहीं होती है। खेतों की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। ठीक से बारिश भी नहीं होती।
जोखिम का सबब
भारत के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के अनुसार 2022 और 2024 के बीच मराठवाड़ा में 3,090 किसानों ने आत्महत्या की, जो औसतन प्रतिदिन लगभग तीन है। सरकारी आंकड़े यह स्पष्ट नहीं करते कि किसानों ने आत्महत्या क्यों की, लेकिन विश्लेषक कई संभावित कारकों की ओर इशारा करते हैं।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में विकास अध्ययन के प्रोफेसर आर. रामकुमार ने बताया कि भारत में किसानों की आत्महत्याएं आय, निवेश और उत्पादकता के संकट का परिणाम हैं, जो कृषि में हैं।
कई भारतीय छोटे किसान बड़े पैमाने पर सदियों से पारंपरिक खेती करते हैं। और यह सही समय पर सही मौसम पर अत्यधिक निर्भर है।
रामकुमार ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और इसकी कमजोरियों और परिवर्तनशीलता ने खेती में जोखिम बढ़ा दिया है। इससे फसलों की विफलता, अनिश्चितताएं बढ़ रही हैं जो छोटे और सीमांत किसानों के लिए खेती के अर्थशास्त्र को और कमजोर कर रही हैं।
रामकुमार ने कहा कि सरकार चरम मौसम की घटनाओं से निपटने के लिए बेहतर बीमा योजनाओं के साथ-साथ कृषि अनुसंधान में निवेश करके किसानों का समर्थन कर सकती है। कृषि और मानसून के बीच जुआ नहीं होना चाहिए।
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