ओपिओइड संकट अब अगली पीढ़ी पर हावी होने का संकट है। ऐसे में इससे निपटने के लिए स्कूली शिक्षा पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। खासकर उस स्तर पर विचार करने की अधिक आवश्यकता है, जब बच्चे Opioid के लिए भावनात्मक रूप से तैयार होते हैं। ऐसे में जरूरत है स्कूली शिक्षा को अकादमिक ढांचे से बाहर निकालकर, उसे बच्चों की आंतरिक स्थिरता और मानसिक संतुलन को मजबूत करने के लिए बदलना होगा। अगर ऐसा हुआ तो यह पहल ओपिओइड संकट से निपटने की दिशा में एक निर्णायक कदम साबित हो सकता है।
अमेरिका और भारत दोनों देश ओपिओइड संकट से जूझ रहे हैं। ऐसे में इस दिशा में गंभीर दृष्टि की आवश्यकता है। यह इसलिए भी आवश्यकता है, क्योंकि ये नशे की लत भावी पीढ़ी को निरंतर कमजोर किए जा रही है।
भारत में ओपिओइड संकट: अनदेखा लेकिन गंभीर
जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ओपिओइड उपयोग की दर वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक है। लगभग 2.1% भारतीय आबादी ओपिओइड का उपयोग करती है। हालांकि आर्थिक नुकसान का कोई स्पष्ट मूल्यांकन नहीं है, फिर भी यह संकट अरबों डॉलर का नुकसान पहुंचा रहा है।
जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ, ऑक्सफोर्ड इंडिया सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट का एक प्रकाशन है। भारत में ओपिओइड संकट की लागत का अनुमान आसानी से उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह अरबों डॉलर का होना चाहिए।
अमेरिका में संकट की स्वीकारोक्ति
अमेरिका ने 2017 में ही ओपिओइड संकट को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया था। 2025 में भी यह आपातकाल जारी है। 2020 में अकेले अमेरिका को इस संकट के कारण 1.5 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ, जो 2017 की तुलना में 37% अधिक है। आंकड़ों से स्पष्ट है कि यह सिर्फ कहने लिए बल्कि वास्तविक रूप से गंभीर संकट का रूप ले चुका है।
अक्टूबर 2017 में, राष्ट्रपति ट्रम्प ने ओपिओइड संकट को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया। अमेरिकी स्वास्थ्य एवं मानव सेवा विभाग ने घोषणा की कि सचिव रॉबर्ट एफ. कैनेडी जूनियर ने 18 मार्च, 2025 को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा को अपडेट किया है।
28 सितंबर को, संयुक्त आर्थिक समिति ने अनुमान लगाया कि ओपिओइड महामारी से अकेले 2020 में संयुक्त राज्य अमेरिका को लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है, जो 2017 की तुलना में 37% अधिक है।
क्या शिक्षा दिला सकती है इस संकट से मुक्ति?
स्कूली बच्चे बड़े होते हैं और उनमें से कुछ नेता बन जाते हैं, लेकिन अज्ञानता के कारण समस्याएं बनी रहती हैं। ओपिओइड संकट से निपटने का शिक्षा एक कारगर हल हो सकती है। लेकिन इसके लिए मौजूदा स्ट्रक्चर के साथ थोड़ा बदलाव की जरूरत होगी। जिसके तहत शिक्षा को सिर्फ ज्ञान का माध्यम नहीं, बल्कि आत्म-प्रबंधन और भावनात्मक उत्कृष्टता के साधन के रूप में भी अपनाना होगा।
इसकी वजह यह है कि मौजूदा शिक्षा प्रणाली बच्चों को करियर की तैयारी तो सिखाती है, लेकिन जीवन की जटिलताओं से जूझने का हुनर विकसित करने का अवसर उपलब्ध नहीं कराती। जब बच्चे बड़े होकर नेता भी बनते हैं, लेकिन उनमें अक्सर भावनात्मक रूप से खालीपन रहता है और यही स्थिति उन्हें नशे की लत की ओर धकेलती है।
क्या है भावनात्मक उत्कृष्टता?
भावनात्मक उत्कृष्टता का अर्थ है: नकारात्मक भावनाओं को पहचानना और उन्हें नियंत्रित करके सकारात्मक भावनाओं को सक्रिय करना। इसमें क्रोध, भय और निराशा जैसे तत्वों को छोड़कर करुणा, सहानुभूति और आत्म-संयम को प्राथमिकता देना शामिल है।
दरअसल, यह कोई बौद्धिक सिद्धांत नहीं, बल्कि मानसिक तौर पर आंतरिक प्रक्रिया है, जिसे सक्रिय करने का रास्ता योग और ध्यान है।
योग: शिक्षा का अनदेखा स्तंभ
योगिक अभ्यास और ध्यान बच्चों में सिर्फ मानसिक स्पष्टता नहीं लाते, बल्कि उनकी भावनात्मक समझ और आत्मनियंत्रण को भी गहरा करते हैं। इनसे मेलाटोनिन स्तर बढ़ता है, यह एक ऐसा हार्मोन है जो जागरूकता, अंतर्ज्ञान और एकाग्रता को प्रभावित करता है।
स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव क्यों जरूरी?
यूएस न्यूज़ एंड वर्ल्ड रिपोर्ट्स ने कुछ समय पहले राष्ट्रपति ट्रम्प की इस टिप्पणी पर रिपोर्ट दी थी कि अमेरिका शिक्षा के मामले में सबसे पीछे है। ऐसे में स्कूली शिक्षा में बदलाव लाने का एक नया तरीका प्रस्तुत किया गया है जो ओपिओइड संकट को कम करेगा और दोनों देशों में अरबों डॉलर की बचत करेगा, साथ ही कई अन्य लाभ भी प्रदान करेगा, और यह पाठ्यक्रम संशोधन के बारे में नहीं है।
भावनात्मक उत्कृष्टता पर हो फोकस
सबसे बड़ी बात भावनात्मक उत्कृष्टता है। मनुष्य दो प्रकार की भावनाओं से संपन्न है: सकारात्मक भावनाएं और नकारात्मक भावनाएं। सकारात्मक भावनाओं में बिना शर्त प्यार, दया, सहानुभूति, करुणा शामिल हैं, जबकि नकारात्मक भावनाओं में क्रोध, घृणा, शत्रुता, आक्रोश, निराशा, भय, दुःख आदि शामिल हैं। भावनात्मक उत्कृष्टता, जीवन के अभिन्न अंग, विकट परिस्थितियों में भी व्यक्ति की केंद्रित रहने की क्षमता को दर्शाती है।
क्योंकि भावनाओं को समझा जा सकता है। दूसरी ओर सकारात्मक परिवर्तन लाने की प्रक्रिया ध्यान है, जो हजारों वर्षों से ज्ञात है। इसके मायने ये हैं कि बदलाव लाने के लिए इन दोनों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।
उदाहरण-1
गुरु महान द्वारा स्थापित यूनिवर्सल पीस फाउंडेशन, 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए एक सात दिवसीय योग कार्यक्रम आयोजित करता है, जिसे 'अहा धारणा' (तमिल में आंतरिक एकाग्रता) कहा जाता है, जो अंतर्ज्ञान और भावनात्मक उत्कृष्टता में जबरदस्त वृद्धि लाता है।
मैंने 2018 में इस कार्यक्रम का एक लाइव प्रदर्शन देखा है। अभिभावकों ने मुझे बताया है कि कार्यक्रम के बाद बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन और पारस्परिक संबंधों दोनों में सुधार हुआ है।
गुरु महान का सुझाव है कि 'अहा धारणा' प्रशिक्षण कार्यक्रम बच्चों के लिए अपेक्षित परिणाम देगा क्योंकि उनके मेलाटोनिन का स्तर उच्च होता है। योगिक चिंतन में, मेलाटोनिन के स्तर को बढ़ाने से तीसरी आँख, अंतर्ज्ञान की आँख, खुलती है।
उम्र के साथ मेलाटोनिन का स्तर कम होता जाता है और इसलिए वयस्कों में इन परिणामों को दोहराना मुश्किल हो सकता है। गुरुमहान का सुझाव है कि ये बच्चे वयस्कता में नशे की लत के शिकार होने की कम संभावना रखते हैं।
उदाहरण 2
इसी तरह, ग्यारह वर्षीय वंशी चौहान ने बॉलीवुड सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को उनके बेहद लोकप्रिय टीवी कार्यक्रम "कौन बनेगा करोड़पति विद अमिताभ बच्चन" में दिखाया कि वह सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन टीम द्वारा प्रदान की गई एक किताब को आँखों पर पट्टी बांधकर पढ़ सकती है।
उदाहरण 3
प्रसिद्ध योग गुरु, श्री श्री रविशंकर, आर्ट ऑफ़ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक, "छठी इंद्रिय" पर प्रवचन देते रहे हैं।
वीडियो "शी कैन रीड माइंड? रियल इंटरव्यू विद एन इंट्यूटिव चाइल्ड" में, पुर्तगाली पॉडकास्टर रोड्रिगो कैनेलस एक बच्चे को आँखों पर पट्टी बांधकर काम करने के लिए कहते हैं और फिर आर्ट ऑफ़ लिविंग की प्रशिक्षक और उसकी माँ, श्रेया चुघ से मूल बातें समझाने के लिए कहते हैं।
उदाहरण 4
सुहानी शाह को सबसे ज्यादा सब्सक्राइब की गई मानसिक विशेषज्ञ कहा जाता है वे किसी का भी मन पढ़ सकती हैं। यूट्यूब पर मौजूद कई वीडियो क्लिप्स में से एक अंग्रेज़ी में है जिसमें वह शतरंज के विश्व चैंपियन गुकेश से शतरंज की बिसात पर एक चाल सोचने को कहती हैं, और दूसरी, किसी का नाम सोचने को कहती हैं और वह दोनों का सही अनुमान लगाती हैं। उनका ये वीडियो हमें देखना चाहिए।
ये योग कार्यक्रम बच्चों की भावनात्मक उत्कृष्टता को बढ़ाएंगे साथ ही इसके कई अन्य लाभ भी हैं। बशर्ते वे नियमित रूप से योगाभ्यास किया जाए। नियमत योग से निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित होती है। दरअसल, नेताओं से त्वरित निर्णय की अपेक्षा की जाती है।
लेखक लुइसविले विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एमेरिटस और केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के पूर्व अध्यक्ष हैं। वे लुइसविले, केंटकी स्थित सिक्स सिग्मा एंड एडवांस्ड कंट्रोल्स के अध्यक्ष भी हैं।
नोट: लेखक विषयों पर शोध और कंटेंट में सुधार के लिए ChatGPT का प्रयोग करते हैं।
(इस लेख में व्यक्त किए गए विचार और राय लेखक के अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे न्यू इंडिया अब्रॉड की आधिकारिक नीति या स्थिति को दर्शाते हों)
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