भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को और अधिक समावेशी बनाने के उद्देश्य से कई परिवर्तनकारी पहल शुरू की हैं। ऐसी ही एक पहल भारत के 10 करोड़ से अधिक दिव्यांगों से संबंधित है, जो उनकी सहानुभूति को सशक्तता में बदल रही है।
इस सफर में एक महत्वपूर्ण पल दिसंबर 2013 को गुजरात के गांधी नगर में उस समय आया, जब प्रधानमंत्री मोदी की वॉयस ऑफ स्पेशली एबल्ड पीपुल (VOSAP) के संस्थापक प्रणव देसाई से मुलाकात हुई। यह मुलाकात दिव्यांगों को सशक्त बनाने की मेरी दृष्टि पर केंद्रित थी। इसके परिणामस्वरूप सितंबर 2014 में न्यूयॉर्क में पीएम मोदी को एक प्रस्ताव सौंपा गया। प्रस्ताव में दिव्यांगों की आर्थिक मजबूती के उद्देश्य से उनके लिए सुगमता बढ़ाने, सहायक टेक्नोलोजी से मदद देने और उनकी क्षमताओं से लोगों को अवगत कराने पर जोर दिया गया था।
इस ब्लूप्रिंट के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में सुगम्य भारत अभियान (एक्सेसिबल इंडिया कैंपेन) शुरू किया। इसका उद्देश्य दिव्यांगों के लिए सुगमता के मानक तय करना, कानूनी प्रावधानों को अपडेट करना और फिजिकल व डिजिटल संपर्क के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। यह भारत के पब्लिक प्लेस, ट्रांसपोर्ट सिस्टम और डिजिटल प्लेटफार्मों को सभी नागरिकों के लिए सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
साल 2016 में देश ने विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (RPwD) के रूप में अहम पड़ाव पार किया। यह कानून वैश्विक मंच पर भारत की प्रगति का एक उदाहरण है। इसके तहत विकलांगता की 7 मान्यता प्राप्त श्रेणियों को बढ़ाकर 21 तक किया गया और उद्योगों में दिव्यांगों के लिए सुगमता मानक पेश किए गए। इस कानून को आगे बढ़ाने और इसका मसौदा तैयार करने में मैंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह मेरा ही विजन था कि भारत को अपनी दिव्यांग आबादी को सशक्त बनाने के लिए विकसित देशों की तरह सुविधाएं देनी चाहिए। इस उद्देश्य से तैयार कानून को पीएमओ ने उसी दिन मंजूरी दे दी थी, जब मैंने 28 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी से उनके संसदीय कार्यालय में मुलाकात की थी।
ब्लूप्रिंट का एक और एजेंडा विशिष्ट विकलांगता पहचान (यूडीआईडी) संख्या जारी करना था। इसके तहत एक करोड़ से अधिक विशिष्ट आईडी जारी करके सेवाओं की डिलीवरी और वेलफेयर योजनाओं में क्रांति ला दी है। इसने सुनिश्चित किया है कि योजनाओं की लाभ राशि सीधे प्राप्तकर्ताओं के बैंक खाते में पहुंचे।
पीएम मोदी की प्रतिबद्धता एक और सुखद उदाहरण पैरा-एथलीटों के साथ उनके व्यक्तिगत जुड़ाव में दिखता है। उनकी सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी सेंटर फॉर डिसएबिलिटी स्पोर्ट्स की स्थापना की जो खासतौर से दिव्यांग एथलीट्स के लिए ट्रेनिंग की देश की पहली हाई-टेक फैसिलिटी है। पीएम के प्रोत्साहन से उत्साहित पैरा-एथलीट्स की उपलब्धियों और क्षमताओं ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया है, जो उनकी अपार क्षमताओं को प्रदर्शित करता है।
प्रधानमंत्री मोदी का विजन न केवल नीतियों को बल्कि दिव्यांगता के नैरेटिव को बदलना भी रहा है। विकलांग व्यक्तियों को "दिव्यांगजन" (दिव्य शरीर वाले इंसान) कहने का उनका आह्वान सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव को दर्शाता है और उनकी विशेषताओं पर गौर करने के लिए प्रेरित करता है।
VOSAP ने सहायक उपकरण प्रदान करने के महत्व से लोगों को अवगत कराया है। हालांकि इसके प्रभाव को असल विस्तार मोदी सरकार ने दिया है। पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार ने दिव्यांगजनों की क्षमताओं और उनकी एबिलिटी का उपयोग करने के लिए इतने अधिक असिस्टिव उपकरण वितरित किए हैं, जितने पिछले 70 वर्षों में नहीं बांटे गए।
दिव्यांगों के लिए भारत सरकार की कई योजनाएं हैं। इनमें से वीओएसएपी ने ऐसी ही एक योजना निरामया को बढ़ावा देने के लिए प्रोजेक्ट हितार्थ लॉन्च किया है। इसके तहत 31 राज्यों में हितार्थ सहायक (सामाजिक कार्यकर्ताओं) की नियुक्ति की गई है, जो (बौद्धिक रूप से विकलांगों के लिए) निरामया योजना को जन-जन तक पहुंचाने का काम करते हैं।
आने वाले समय में असम में विकलांगता अध्ययन एवं पुनर्वास विज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है। यह विश्वविद्यालय विकलांगता अध्ययन में शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रशिक्षण का वैश्विक केंद्र बनने जा रहा है। इस तरह की पहल समावेशी और सशक्त समाज बनाने की पीएम मोदी के दीर्घकालिक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। एक ऐसा समाज, जहां कोई भी पीछे नहीं छूट पाए।
प्रधानमंत्री मोदी की लीडरशिप में भारत ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण स्थापित किया है कि दिव्यांग समुदाय भी बिना अपवाद के 'सबका साथ, सबका विकास' के व्यापक दृष्टिकोण के साथ अन्य नागरिकों के साथ ही फलें-फूलें। इतना ही नहीं, उन्होंने अन्य देशों के लिए विकलांगों की क्षमताओं का उपयोग करने और सशक्तिकरण के "भारत मॉडल" को अपनाने का मार्ग भी प्रशस्त किया है।
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