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एक परिचित दूरी

ये विरोधाभास अब एक गहरी सच्चाई को उजागर करते हैं कि जुड़ाव का मतलब उम्मीदों पर खरा उतरना नहीं है, बल्कि हर उस परत को अपनाना है जो आपको संपूर्ण बनाती है।

सांकेतिक तस्वीर / CANVA

भारतीय त्योहारों का मौसम खत्म हो चुका है। कई भारतीय-अमेरिकी अपनी वार्षिक यात्राओं से लौट आए हैं। उनके सूटकेस मिठाई, उपहारों और कुछ 'संवेदनशील' चीजों से भरे हैं। यहां पर कुछ अपनेपन के सवाल। भारत की हर यात्रा पहचान को लेकर पुरानी बातचीत को फिर से जीवित कर देती है। यदा - कौन कहां का है और किस हद तक।

फिर भी, आज यह संवाद अलग लगता है। वह भारत, जिसे कई आप्रवासी दशकों पहले पीछे छोड़ गए थे, नाटकीय रूप से बदल गया है। यह अब एक विकासशील राष्ट्र नहीं रहा जिसे अपने प्रवासी समुदाय की विशेषज्ञता या धन की आवश्यकता हो। यह एक आत्मविश्वास से भरी, विस्तारित अर्थव्यवस्था है। डिजिटल रूप से जुड़ी हुई, तकनीक से प्रेरित और उपभोक्ता शक्ति से भरपूर। यह आधुनिक भारत अब अपने अमेरिकी रिश्तेदारों को प्रशंसा और ईर्ष्या के उसी मिश्रण से नहीं देखता। कुछ मायनों में, भावनात्मक समीकरण उलट गया है।

पर फिर भी, सांस्कृतिक असंगति बरकरार है। वैश्विक ब्रांडों, स्मार्टफोन और फर्राटा अंग्रेजी के बावजूद व्यवहार, लैंगिक भूमिकाओं और पारिवारिक कर्तव्यों के बारे में पारंपरिक अपेक्षाएं अभी भी गहरी जड़ें जमाए हुए हैं। अपने पुश्तैनी घरों में आने वाले युवा भारतीय-अमेरिकियों के लिए ये अनकहे नियम आज भी चुभ सकते हैं। उनके लहजे, राय और निजी पसंद उन्हें चुपचाप अलग कर देते हैं। उन्हें लग सकता है कि भारत की अर्थव्यवस्था उसके सामाजिक नजरिए से कहीं अधिक तेजी से वैश्वीकृत हुई है।

अलबत्ता, शायद यह दरार पहले जितनी गहरी नहीं है। भारत के बढ़ते आत्मविश्वास और प्रवासी भारतीयों के गहरे जुड़ाव के साथ, दोनों पक्ष पहचान को विभाजित नहीं, बल्कि बहुस्तरीय रूप में देखना सीख रहे हैं। आधुनिक भारतीय-अमेरिकी अब कैलिफोर्निया में दिवाली मना सकते हैं और चेन्नई में बिना किसी खेद के फिल्टर कॉफी की चुस्की ले सकते हैं। जो कभी विरोधाभास जैसा लगता था, वह धीरे-धीरे बातचीत का विषय बनता जा रहा है।

इन क्षणों में, युवा भारतीय-अमेरिकी खुद को दो संस्कृतियों के बीच झूलता हुआ पाते हैं। एक जो कभी उन्हें बहुत विदेशी कहती है, तो दूसरी जो उन्हें बहुत पश्चिमी कहती है। फिर भी, इस द्वंद्व में एक उभरती हुई समझ निहित है। कि पहचान का एकांगी या शुद्ध होना जरूरी नहीं है। ये विरोधाभास अब एक गहरी सच्चाई को उजागर करते हैं कि जुड़ाव का मतलब उम्मीदों पर खरा उतरना नहीं है, बल्कि हर उस परत को अपनाना है जो आपको संपूर्ण बनाती है।

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