राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प। / Image : NIA
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में 5 नवंबर को शुरू हो रही एक अहम सुनवाई न सिर्फ अमेरिका की कानूनी सीमाओं को परखेगी, बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था की दिशा भी तय कर सकती है। मामला Learning Resources, Inc. बनाम डोनाल्ड ट्रम्प से जुड़ा है, जो यह तय करेगा कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति बिना कांग्रेस की मंजूरी, आपातकालीन शक्तियों के तहत आयात शुल्क (टैरिफ) लगा सकते हैं।
इस फैसले पर भारत की गहरी नजर है, क्योंकि अमेरिका को भारत का वार्षिक निर्यात लगभग 120 अरब डॉलर का है। ट्रम्प द्वारा लगाए गए तथाकथित “लिबरेशन डे टैरिफ” ने भारत के कई क्षेत्रों — जैसे वस्त्र, रसायन और इंजीनियरिंग सामान को प्रभावित किया है। इस वजह से नई दिल्ली में अमेरिकी व्यापार नीति की अनिश्चितता पर गंभीर चर्चा चल रही है।
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विवाद क्या है?
ट्रम्प प्रशासन ने 2 अप्रैल 2025 को अमेरिका के व्यापार घाटे को “राष्ट्रीय आपातकाल” घोषित करते हुए, International Emergency Economic Powers Act (IEEPA) 1977 का सहारा लेकर सभी आयातों पर 10% तक शुल्क लगाया था। कुछ देशों के लिए यह दर 50% तक बढ़ाई गई।
सरकार का तर्क था कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा और अमेरिकी उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए आवश्यक है। दूसरी तरफ आलोचकों का कहना है कि IEEPA का दायरा इतना व्यापक नहीं है। अमेरिकी संवैधानिक विशेषज्ञ प्रो. सितल कलांतरी ने कहा, IEEPA का उद्देश्य टैरिफ नीति नहीं था। अगर कोर्ट ने ट्रम्प का कदम सही ठहराया, तो भविष्य में राष्ट्रपति को लगभग पूर्ण व्यापारिक अधिकार मिल जाएंगे।
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