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हैप्पीनेस इंडेक्स पर सवाल, श्री श्री रवि शंकर ने कहा- भारत की रैंकिंग असली तस्वीर नहीं 

आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने 2025 की वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में भारत की 118वीं रैंकिंग पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि गरीबी का खुशी से कोई सीधा संबंध नहीं है। रिपोर्ट की कार्यप्रणाली में खामियां हैं और भारत की रैंकिंग वास्तविकता से बहुत दूर है। 

आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर / Courtesy Photo

आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर का कहना है कि 2025 की वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग, देश की असली खुशी को नहीं दिखाती। उन्होंने कहा, 'गरीबी का खुशी या नाखुशी से कोई खास कनेक्शन नहीं है। आप देखेंगे, भारत की झुग्गियों में भी ऐसे लोग हैं जो बहुत खुश हैं।' उन्होंने कहा, 'वहां आपस में ज्यादा जुड़ाव है, स्वार्थ कम है। गरीब लोग अपने संसाधन अमीरों से कहीं ज्यादा बांटते हैं।'

20 मार्च को मीडिया से बात करते हुए उन्होंने भारत को 118वें नंबर पर देखकर हैरानी जताई। उनका कहना है कि देश में खुशी का पैमाना, इस ग्लोबल इंडेक्स में इस्तेमाल होने वाले पैमानों से बहुत अलग है। 

श्री श्री रविशंकर ने कहा, 'हालांकि मुझे भारत को 118वें नंबर को लेकर मतभेद है...। मुझे लगता है कि भारत इससे कहीं बेहतर है।' उन्होंने रैंकिंग के पीछे की मेथडोलॉजी पर भी सवाल उठाए।

हर साल संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय खुशी दिवस पर जारी होने वाली वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में 147 देशों को रैंक किया जाता है। ये रैंकिंग सोशल सपोर्ट, हेल्थ, आजादी, दूसरों की मदद करने की भावना (generosity), भ्रष्टाचार के प्रति नजरिया और GDP जैसे फैक्टर्स पर आधारित होती हैं। इस साल फिर से फिनलैंड आठवीं बार टॉप पर रहा, उसके बाद डेनमार्क, आइसलैंड, स्वीडन और नीदरलैंड्स हैं। भारत पिछले साल के 126वें नंबर से ऊपर जरूर आया है, लेकिन फिर भी रैंकिंग में बहुत नीचे है।

रविशंकर ने बताया कि पिछले दस सालों में भारत के स्कोर में सुधार हुआ है, खासकर सोशल सपोर्ट में। लेकिन उन्होंने कहा कि आजादी के मामले में भारत का रैंक बहुत खराब है। 'आजादी' से उनका मतलब है कि क्या लोगों को लगता है कि उन्हें समाज में अपनी पसंद का चुनाव करने की आजादी है। लेकिन उन्होंने तुरंत ही ये भी कहा कि भारत के मजबूत परिवार और सामदुयिक स्ट्रक्चर खुशी में बहुत बड़ा योगदान देते हैं, और रिपोर्ट में इस बात को कम आंका गया है। 

उन्होंने कहा, 'मैं पूरी दुनिया घूम चुका हूं। और मुझे लगता है कि भारत में इंसानी वैल्यू बहुत, बहुत ऊंचे हैं। दया, मेहमानों के साथ पेश आने का तरीका, लोगों का संसाधन बांटने का तरीका – ये सब वाकई कमाल की बात है। अगर आपके परिवार में कोई मुसीबत आती है, तो पूरा गांव मदद के लिए आ जाता है।'

ये पूछने पर कि क्या उन्हें लगता है कि पश्चिम और भारत में खुशी की समझ अलग है। उन्होंने कहा, 'खुशी तो हर जगह एक ही होती है।' लेकिन उन्होंने तर्क दिया कि मुंबई, दिल्ली या लखनऊ जैसे कुछ बड़े शहरों का सतही विश्लेषण ग्रामीण भारत में खुशी को तय करने वाली गहरी सामाजिक संरचनाओं को नहीं दिखा सकता।

रवि शंकर ने जोर देकर कहा कि एक मुख्य मुद्दा मानसिक स्वास्थ्य है। उन्होंने कहा कि सिर्फ आर्थिक तरक्की से खुशी नहीं मिलती। उन्होंने कहा, 'शांति के बिना खुश नहीं रहा जा सकता। तनाव में रहने वाला इंसान कभी खुश नहीं हो सकता।' मेडिटेशन लोगों को अकेलेपन से उबरने, आंतरिक शांति पाने में मदद करता है।' 

उन्होंने दूसरे देशों से तुलना करते हुए, रैंकिंग के तर्क पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, 'मेक्सिको 10वें नंबर पर है। मैं कहूँगा कि अगर मेक्सिको को 10 दिया गया है, तो भारत को कम से कम 9, शायद 8 या 5 मिलना चाहिए।' उन्होंने आगे कहा कि भले ही स्कैंडिनेवियाई देश ऊपर हैं, लेकिन उनकी खुशी की परिभाषा सुरक्षा और भविष्य की चिंता की कमी से बनती है।

रवि शंकर ने ये भी बताया कि भूटान को रैंकिंग से ही बाहर रखा गया है। उन्होंने कहा, 'मैं कहूंगा कि भूटान टॉप देशों में से एक है।'

उनके लिए, वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट से सीख ये है कि इसे फाइनल जजमेंट की बजाय समस्या पहचानने का एक तरीका के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा, 'अगर आपको ये नहीं पता कि आप में क्या गलत है, तो आप उसे ठीक नहीं कर सकते।' उन्होंने बताया कि अमेरिका जैसे समाजों में बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे, अकेलापन और बेचैनी के लिए तुरंत समाधान की जरूरत है। 

 

 

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