जब जुगल मालवानी पहली बार 1979 में अमेरिका आए, उनका प्रवास केवल तीन हफ्ते का ही था। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा-मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं आया। अजनबी खाना और अकेलापन भारी लगा। भारत लौटकर उन्होंने तय किया कि वे वहीं टिकेंगे। लेकिन उनकी पत्नी राज ने कहा, तुम्हें यहां जो कर रहे हो, उससे बेहतर कुछ करना होगा। इसी आग्रह और अमेरिका में उनके ससुराल वालों के निमंत्रण पर वह फिर लौटे। शुरू में अनिच्छुक यह कदम उनके जीवन का लक्ष्य बन गया।
इंजीनियर से उद्यमी तक
भारत में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मालवानी ने कई साल काम किया और 1980 के दशक की शुरुआत में ह्यूस्टन में अपने ससुराल में शामिल हुए। 17 साल स्थानीय औद्योगिक फर्म में काम करने के बाद उन्होंने 1997 में अपने बिजनेस की शुरुआत की। उन्होंने कहा, हमने बस दो लोगों के साथ शुरू किया- मैं और मेरा पार्टनर। धीरे-धीरे उनका व्यवसाय बढ़ा और अब यह कंपनी 150 कर्मचारियों के साथ $150 मिलियन राजस्व उत्पन्न करती है। समय के साथ उन्होंने छोटे-बड़े फर्मों का अधिग्रहण और व्यापार में विविधता भी लाई। आज यह व्यवसाय परिवार के हाथों में है। उनका बेटा 17 वर्षों से कंपनी में है और अब CEO है। जुगल मालवानी अब छोटे कारोबार में ही सक्रिय हैं और धीरे-धीरे रिटायरमेंट की ओर बढ़ रहे हैं।
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ह्यूस्टन का बदलता चेहरा
जब मालवानी अमेरिका आए, तब ह्यूस्टन की भारतीय आबादी बहुत कम थी। उन्होंने याद किया- 1979-80 में सिर्फ एक भारतीय रेस्टोरेंट ‘ताजमहल’ और शायद एक ‘बॉम्बे पैलेस’ था। अब ह्यूस्टन “मिनी इंडिया” जैसा दिखता है। हिलक्रॉफ्ट एवेन्यू, जिसे आधिकारिक तौर पर महात्मा गांधी डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, में ज्वैलरी शॉप्स, साड़ी बुटीक, स्वीट शॉप्स और शाकाहारी कैफे हैं। यहाँ 75 से अधिक मंदिर और 100 से ज्यादा कम्युनिटी संगठन हैं।
व्यापार, टैरिफ और भारत की भूमिका
मालवानी के व्यवसाय ने तेल उद्योग और औद्योगिक उपकरणों की आपूर्ति से शुरुआत की। ट्रम्प प्रशासन के दौरान लगाए गए टैरिफ ने उनके व्यापार को चुनौती दी। कुछ उत्पाद अमेरिका में आसानी से नहीं बन सकते। हमने समझौता किया—कुछ लागत सप्लायर, कुछ हम और कुछ ग्राहक साझा करते हैं। पहले 80% उत्पाद चीन से आते थे, लेकिन अब मालवानी ने भारत के फैक्ट्री नेटवर्क पर भरोसा बढ़ाया। “भारत अब चीन से मुकाबला कर सकता है। इसलिए हमने सोर्सिंग इंडिया में स्थानांतरित की।”
समाज को वापस देने का मकसद
मालवानी ने अपने मेंटर रामेश भुटाडा के उदाहरण से चैरिटी की प्रेरणा ली। आज वह कई संगठनों का समर्थन करते हैं—Ekal Vidyalaya, India House, Hindu American Charities, Magic Bus International और कई मंदिर। उन्होंने कहा- मुझे लगता है कि युवा पीढ़ी भी इसी को आगे बढ़ाएगी। मेरा बेटा और भतीजे अब अपने बच्चों को चिन्मया मिशन में भेजते हैं ताकि हमारी सांस्कृतिक विरासत समझें।
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