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भारतीय मुसलमानों का जिक्र करने वाली रिपोर्ट पर अमेरिका ने कही ये बात

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि दुनिया भर में हर धर्म या विश्वास के लिए स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करने को लेकर हम प्रतिबद्ध हैं। हम इसे बढ़ावा देना चाहते हैं। हमने भारत समेत कई देशों से इस मसले पर बातचीत की है।

अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर का यह बयान अमेरिकी अखबार में छपी एक रिपोर्ट के बाद आया है। / Screengrab/@StateDept YouTube

अमेरिका ने भारत में मुस्लिम समुदाय पर प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट का जिक्र करते हुए धार्मिक स्वतंत्रता के लिए सम्मान को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई। अमेरिका ने कहा कि वह इस मामले पर भारत सहित दुनियाभर के देशों के साथ बातचीत कर रहा है।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि दुनिया भर में हर धर्म या विश्वास के लिए स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करने को लेकर हम प्रतिबद्ध हैं। हम इसे बढ़ावा देना चाहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि हमने भारत समेत कई देशों से बातचीत की है कि हर धर्म के लोगों के साथ समान व्यवहार होना बहुत जरूरी है।

उनका यह बयान न्यूयॉर्क टाइम्स की 'स्ट्रेंजर्स इन देयर ओन लैंड: बीइंग मुस्लिम इन मोदीज इंडिया' शीर्षक वाली रिपोर्ट के बाद आया है। इस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'धर्मनिरपेक्ष ढांचे और मजबूत लोकतंत्र को कमजोर किया है। यह ढांचा लंबे समय से भारत को एकजुट रखता आया है।' लेख में आगे दावा किया गया है कि भारत 'एक ऐसा देश बन गया है जो मुसलमानों की पहचान से जुड़े उनके कपड़े पहनने के तरीके, उनके खाने के तरीके, यहां तक कि उनकी भारतीयता पर भी सवाल उठाता है।

दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों से पता चला है कि 1950-2015 के बीच भारत में मुस्लिम आबादी 9.84 प्रतिशत से बढ़कर 15.09 प्रतिशत हो गई। जबकि इसी अवधि में हिंदू आबादी 84.68 प्रतिशत से घटकर 78.06 प्रतिशत रह गई है। EAC-PM की रिपोर्ट में सिख, ईसाई और बौद्ध आबादी में बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि जैन और पारसी आबादी में गिरावट आई है।

पीएम मोदी ने EAC-PM की रिपोर्ट को संबोधित करते हुए कहा था कि 'अल्पसंख्यक खतरे में है' यह कहानी झूठी है। प्रधानमंत्री ने एक भारतीय समाचार चैनल को बताया कि गलत कहानी का पर्दाफाश हो रहा है। इससे जो भी मतलब निकालना है, वे निकाल सकते हैं।

1 मई को अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) ने सिफारिश की थी कि स्टेट डिपार्टमेंट अफगानिस्तान, अजरबैजान, भारत, नाइजीरिया और वियतनाम को 'विशेष चिंता के देश' (CPCs) के रूप में नामित करें। क्योंकि वे धार्मिक स्वतंत्रता उल्लंघनों में शामिल हैं या उन्हें सहन करते हैं। इससे अलगे दिन 2 मई को भारत के विदेश मंत्रालय ने USCIRF को 'राजनीतिक एजेंडा वाले पक्षपाती संगठन' कहकर करारा जवाब दिया था।

दिसंबर 2023 में USCIRF ने पहले ही बारह देशों को CPCs के रूप में नामित किया था। इनमें बर्मा, चीन, क्यूबा, इरिट्रिया, ईरान, निकारागुआ, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, रूस, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान शामिल है । तब, USCIRF ने निराशा व्यक्त की थी कि भारत और नाइजीरिया को सीपीसी के रूप में नामित नहीं किया गया था।

बता दें कि फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा (FIIDS) के नीति और रणनीति प्रमुख खांडेराव कंद ने अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) में सामुदायिक प्रतिनिधित्व को लेकर इसकी आलोचना की है। New India Abroad से बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया था कि दुनिया में इतनी बड़ी हिंदू आबादी होने के बावजूद USCIRF में कोई हिंदू सदस्य नहीं है। इस कारण USCIRF भारत और हिंदुओं के बारे में गलत और एकतरफा रिपोर्ट प्रकाशित करता रहा है। खांडेराव ने कहा कि दुनिया की आबादी में छठे हिस्से के लोग हिंदू धर्म मानने वाले हैं। फिर भी आयोग में कोई हिंदू सदस्य नहीं है।

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