भारतीय मुद्रा / pexels
भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शिखर वार्ता में शुक्रवार को भारत और रूस ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक ले जाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को दोहराया। संयुक्त बयान में व्यापार को 'संतुलित और टिकाऊ' बनाने और भारतीय वस्तुओं की रूसी बाजार में पहुंच बढ़ाने की बात कही गई। लेकिन उत्साहपूर्ण शब्दों के पीछे एक असहज हकीकत छिपी है -रुपया–रूबल भुगतान प्रणाली की खामियां, जो आज दोनों देशों की व्यापारिक प्रगति की सबसे बड़ी रुकावट बन चुकी है। निर्यातकों का साफ कहना है कि बाधा बाज़ार, गुणवत्ता या मांग की नहीं, बल्कि समय पर, भरोसेमंद और बिना ‘प्रतिबंधीय घर्षण’ के भुगतान मिलने की है।
तेजी से बढ़ता व्यापार, लेकिन ठहरा हुआ निर्यात
वित्त वर्ष 2025 में भारत–रूस व्यापार लगभग 70 अरब डॉलर तक पहुँच गया है, लेकिन भारत का निर्यात सिर्फ 4.9 अरब डॉलर पर अटका हुआ है। इसके मुकाबले आयात, खासकर सस्ते रूसी कच्चे तेल, ने तेज़ उछाल लिया और 63.8 अरब डॉलर तक पहुंच गए, जिससे 58.9 अरब डॉलर का भारी व्यापार घाटा बना। कच्चे तेल का आयात ही 50.3 अरब डॉलर का रहा -जिससे यह रिश्ता एक तेल-आधारित व्यापारिक गलियारा बनकर रह गया है।
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रूस के 202.6 अरब डॉलर के कुल आयात बाजार में भारत की हिस्सेदारी मात्र 2.4% है, जबकि भारत दुनिया का बड़ा निर्यातक है -दवाइयों, टेक्सटाइल, प्रोसेस्ड फूड, इंजीनियरिंग गुड्स और वाहनों का।
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