भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) के सदस्यों ने संकेत दिया है कि देश में मुद्रास्फीति के नरम पड़ते रुझान के चलते भविष्य में ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश बन रही है। यह जानकारी केंद्रीय बैंक की अक्टूबर बैठक के मिनट्स में सामने आई है। छह सदस्यीय समिति ने इस महीने की शुरुआत में रेपो दर को 5.50% पर स्थिर रखा था। इससे पहले 2025 में अब तक कुल 100 बेसिस प्वाइंट (1%) की कटौती की जा चुकी है। हालांकि समिति ने नीति रुख को न्यूट्रल बनाए रखा, लेकिन दो सदस्यों ने इसे अकॉमोडेटिव (ढील देने वाला रुख) करने की सिफारिश की।
आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मिनट्स में लिखा, मुख्य और कोर मुद्रास्फीति के अनुमानों में कमी आने से नीतिगत स्तर पर विकास को और समर्थन देने की गुंजाइश बनी है। उन्होंने कहा कि मौजूदा अनिश्चित वैश्विक माहौल और नीतिगत अस्पष्टता को देखते हुए, हर बैठक में मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेना उचित होगा। सितंबर में भारत की हेडलाइन इंफ्लेशन (महंगाई दर) गिरकर 1.54% पर पहुंच गई, जो पिछले आठ वर्षों में सबसे निचला स्तर है। यह गिरावट मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेज कमी की वजह से आई है।
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केंद्रीय बैंक ने 2025–26 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान घटाकर 2.6% कर दिया है (अगस्त में 3.1% और जून में 3.7% था)। वहीं, वित्त वर्ष 2025–26 के लिए जीडीपी ग्रोथ अनुमान को बढ़ाकर 6.8% कर दिया गया है, जो पहले 6.5% था।
बाहरी जोखिम और निवेश की सुस्ती
समिति के सदस्यों ने चेताया कि अमेरिकी टैरिफ नीतियों और भू-राजनीतिक तनावों जैसे बाहरी कारक भारत की विकास दर पर दबाव डाल सकते हैं। बाहरी सदस्य नागेश कुमार ने कहा, पहली तिमाही में तेज़ विकास निजी उपभोग और सरकारी पूंजीगत व्यय (Capex) के अग्रिम खर्च से प्रेरित रहा है, लेकिन निजी निवेश अभी भी सुस्त है, शायद व्यापार नीतियों की अनिश्चितता के कारण। कुमार और राम सिंह ने दरों को यथावत रखने के पक्ष में वोट किया, लेकिन साथ ही नीति रुख को अकॉमोडेटिव करने की सिफारिश की ताकि भविष्य में ब्याज दरों में कटौती के लिए संकेत दिया जा सके।
राम सिंह ने कहा, अगले दो तिमाहियों के लिए मुद्रास्फीति का रुझान नियंत्रण में है। वर्तमान मुद्रास्फीति दर बहुत कम है — यह न तो व्यवसायों के लिए अनुकूल है और न ही सार्वजनिक वित्त के लिए। वहीं, आरबीआई की डिप्टी गवर्नर पूनम गुप्ता और अन्य सदस्यों ने दरों को यथावत रखने का समर्थन किया, यह कहते हुए कि पहले किए गए कटौती के प्रभावों का मूल्यांकन अभी जरूरी है। गुप्ता ने लिखा,अभी दरों में कटौती की घोषणा करने से बहुत सीमित असर होगा।
सरकार ने विकास को प्रोत्साहित करने के लिए जीएसटी दरों के सरलीकरण और लोन नियमों में ढील जैसे कदम उठाए हैं। आरबीआई की अगली मौद्रिक नीति बैठक 3 से 5 दिसंबर को होगी, और अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि इस बार ब्याज दरों में कटौती पर विचार किया जा सकता है।
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