भारत ने वर्ष 2026 से अपने कुकिंग गैस (LPG) आयात का लगभग 10% हिस्सा अमेरिका से लेने की योजना बनाई है। यह कदम वाशिंगटन के साथ व्यापार असंतुलन को कम करने और ऊर्जा क्षेत्र में साझेदारी को मजबूत करने के उद्देश्य से उठाया गया है। मामले से जुड़े चार रिफाइनिंग उद्योग के सूत्रों ने यह जानकारी दी है।
भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता है, अभी एलपीजी के लिए मुख्य रूप से मध्य-पूर्वी देशों पर निर्भर है। वर्ष 2024 में देश द्वारा आयात किए गए लगभग 20.5 मिलियन मीट्रिक टन एलपीजी में से 90% से अधिक हिस्सा मध्य-पूर्व से आया।
एलपीजी – जो प्रोपेन और ब्यूटेन का मिश्रण होती है – का उपयोग मुख्य रूप से खाना पकाने के ईंधन के रूप में होता है। इसे मुख्य रूप से सरकारी तेल कंपनियां – इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC), भारत पेट्रोलियम (BPCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम (HPCL) – आयात करती हैं और घरेलू उपयोग के लिए सब्सिडी पर बेचती हैं।
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क्यों बढ़ा अमेरिका की ओर झुकाव?
पिछले वर्षों में भारत ने उच्च शिपिंग लागत के कारण अमेरिका से एलपीजी नहीं मंगाई थी, लेकिन मई 2024 से स्थिति बदल गई जब चीन ने अमेरिका से प्रोपेन पर 10% टैरिफ लगा दिया। इससे भारत के लिए अमेरिकी एलपीजी खरीदना सस्ता हो गया।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत अमेरिकी प्रोपेन और ब्यूटेन पर आयात कर हटाने की तैयारी कर रहा है ताकि यह विकल्प और भी किफायती बन सके।
भारत पहले ही अमेरिका से कच्चे तेल (crude oil) का आयात दोगुना कर चुका है और अब एलपीजी में भी विविधता लाने पर काम कर रहा है। एक अधिकारी ने कहा, “हम अमेरिका को कच्चे तेल और एलपीजी दोनों के लिए एक भरोसेमंद स्रोत के रूप में देख रहे हैं।”
2026 तक एलपीजी की मांग कितनी बढ़ेगी?
राज्य तेल कंपनियों का अनुमान है कि एलपीजी की मांग हर साल 5-6% की दर से बढ़ रही है। 2026 तक आयात 22 से 23 मिलियन टन तक पहुंच सकता है।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) का अनुमान है कि 2024 से 2030 के बीच भारत में एलपीजी की मांग औसतन 2.5% की दर से बढ़ेगी और यह 1.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन यानी करीब 37.7 मिलियन टन तक पहुंचेगी।
भारत और अमेरिका फरवरी 2025 में $500 अरब का द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य तय कर चुके हैं, जिसमें ऊर्जा क्षेत्र पर विशेष फोकस रहेगा। भारत की ओर से अमेरिका से $10 से $25 अरब तक की ऊर्जा खरीदारी करने का वादा भी किया गया है।
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