स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक भारतीय-अमेरिकी शिक्षाविद को उम्मीद है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के बीच आगामी बैठक स्वास्थ्य सेवा में दोनों देशों के सहयोग को प्रोत्साहित और विस्तारित करेगी।
स्टैनफोर्ड बायर्स सेंटर फॉर बायोडिजाइन में मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर और ग्लोबल आउटरीच प्रोग्राम के निदेशक डॉ. अनुराग मैराल ने कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं है कि स्वास्थ्य सेवा एजेंडे का एक प्रमुख हिस्सा होगी लेकिन आशा है कि इसे दोनों नेताओं के बीच चर्चा में शामिल किया जाएगा।
मैराल ने एक इंटरव्यू में 5WH को बताया कि मुझे उम्मीद है कि यह दोनों प्रशासनों के बीच बातचीत में इस तरह से शामिल हो जाएगा जिससे स्वास्थ्य सेवा में अमेरिका-भारत साझेदारी को प्रोत्साहित, समर्थन और बढ़ावा मिलेगा।
मैराल ने कहा कि नए अमेरिकी स्वास्थ्य और मानव सेवा सचिव कम लागत, उच्च प्रभाव वाले समाधानों सहित स्वास्थ्य देखभाल के लिए नए दृष्टिकोण के अवसर पैदा कर सकते हैं। उनका मानना है कि भारत और इसका बढ़ता स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी क्षेत्र इन प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इससे दोनों देश लाभ की स्थिति में होंगे।
मोदी-ट्रम्प की द्विपक्षीय वार्ता
ट्रम्प के निमंत्रण पर मोदी 12-13 फरवरी को संयुक्त राज्य अमेरिका का दौरा करने वाले हैं। 20 जनवरी को ट्रम्प के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद से यह उनकी पहली बैठक होगी। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा के बाद मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रम्प के साथ द्विपक्षीय बैठक करने वाले पहले विश्व नेताओं में से हैं।
ट्रम्प से मुलाकात से पहले मोदी 11 फरवरी को जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला से मिलने वाले हैं। इसी बीच मैराल ने अमेरिकी-भारत के बीच मजबूत संबंधों की निरंतरता को लेकर आशावाद व्यक्त किया।
मौराल ने कहा कि पिछले दशक में अमेरिका-भारत साझेदारी वास्तव में मजबूत रही है। इस साझेदारी को कई प्रशासनों में आधार मिला है। राष्ट्रपति ट्रम्प के पहले कार्यकाल में हमारी साझेदारी काफी बढ़ी और यह राष्ट्रपति बाइडन के तहत जारी रही। मुझे उम्मीद है कि यह दूसरा कार्यकाल इसे अगले स्तर पर ले जाएगा।
स्वास्थ्य देखभाल में भारत की उभरती भूमिका
मैराल ने 17 वर्षों से अधिक समय तक वैश्विक स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी नवाचार में काम किया है इसीलिए उन्होंने स्वास्थ्य देखभाल समाधानों में भारत के बढ़ते प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवा के मामले में अमेरिकी उद्योग की ग्लोबल साउथ में कोई बड़ी उपस्थिति नहीं है। इसका एक कारण यह है कि हमारे वित्तीय मॉडल हमें उन बाजारों के लिए समाधान विकसित करने की अनुमति नहीं देते।
मैराल ने कहा हालांकि, भारत स्वास्थ्य सेवा में दुनिया के शीर्ष नवाचार केंद्रों में से एक के रूप में उभरा है और ऐसी प्रौद्योगिकियां विकसित कर रहा है जो न केवल भारत को बल्कि व्यापक वैश्विक दक्षिण को भी लाभान्वित कर सकती हैं।
उन्होंने कहा कि अगर अमेरिकी कंपनियां भारतीय स्वास्थ्य तकनीक फर्मों के साथ साझेदारी करती हैं तो यह एक अच्छा चक्र बना सकता है। ये प्रौद्योगिकियां बड़े पैमाने पर होंगी और ग्लोबल साउथ और अमेरिकी दोनों कंपनियों के लिए अहमियत पैदा करेंगी।
स्वास्थ्य देखभाल पर फिर सोचने की दरकार
मैराल ने वर्तमान अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह कल्याण को बढ़ावा देने के बजाय बीमारी के इलाज की ओर स्थानांतरित हो गई है। उन्होंने कहा कि हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली एक बीमार देखभाल प्रणाली बन गई है। हमें स्वास्थ्य देखभाल पर पुनर्विचार करने और अधिक प्राथमिक देखभाल-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
मैराल 'रीइमेजिनिंग हेल्थ' नामक अपनी नई किताब लिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत के पास अधिक सुलभ स्वास्थ्य सेवा मॉडल बनाने का अवसर है। उन्होंने इस संबंध में आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन जैसी पहल की ओर इशारा किया।
उन्होंने कहा कि यह दृष्टिकोण न केवल भारत के लिए फायदेमंद है बल्कि यह एक ऐसा मॉडल है जो संयुक्त राज्य अमेरिका और बाकी दुनिया के लिए भी काम कर सकता है। मैराल ने कहा कि डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफार्मों और एआई-संचालित समाधानों का उपयोग करके भारत डॉक्टरों की अनुपस्थिति में भी ग्रामीण क्षेत्रों तक स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच बढ़ा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर यह मॉडल भारत में काम करता है तो अमेरिका और उसके बाहर भी काम कर सकता है।
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