अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा BRICS देशों पर लगाए गए भारी टैरिफ का उद्देश्य था वैश्विक व्यापार पर अमेरिका की पकड़ मजबूत करना और इन देशों के बीच फूट डालना। लेकिन इसके नतीजे उल्टे साबित हो रहे हैं। ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका की सदस्यता वाले BRICS समूह में अब पहले से कहीं अधिक राजनीतिक और आर्थिक तालमेल देखने को मिल रहा है।
भारत पर सबसे बड़ा असर, लेकिन जवाब भी सख्त
भारत पर 25% मौजूदा टैरिफ के साथ 25% अतिरिक्त पेनल्टी भी लगाई गई, मुख्यतः रूस से तेल आयात जारी रखने के कारण। ब्राजील पर सीधे 50% का blanket टैरिफ लगा दिया गया, जबकि दक्षिण अफ्रीका को 'अनबैलेंस्ड मिनरल ट्रेड' के नाम पर निशाना बनाया गया। चीन पर पहले से ही टैरिफ युद्ध जारी है और अब अगर 12 अगस्त तक वार्ता विफल होती है तो और टैरिफ लगाए जाएंगे।
हालांकि अमेरिका का दावा है कि ये कदम 'अनुचित व्यापार प्रथाओं' के खिलाफ हैं, लेकिन इसके पीछे की भूराजनीतिक मंशा किसी से छुपी नहीं है। एक भारतीय राजनयिक ने इसे 'क्लासिक डिवाइड एंड रूल' बताया और कहा कि यह उन देशों को और करीब ला रहा है जिन्हें अमेरिका अलग-थलग करना चाहता था।
चीन का अप्रत्याशित समर्थन
चीन, जिसने हाल के वर्षों में भारत से सीमा विवाद झेला है, अब अप्रत्याशित रूप से भारत के समर्थन में सामने आया है। बीजिंग ने अमेरिकी टैरिफ को 'आर्थिक जबरदस्ती' बताया है और 'क्षेत्रीय एकजुटता' की बात कही है। चीनी विदेश मंत्रालय ने पश्चिमी मीडिया पर भी आरोप लगाया कि वे भारत-चीन के बीच कृत्रिम प्रतिद्वंद्विता बना रहे हैं।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में चीन का दौरा कर सकते हैं — यह 2020 के गलवान संघर्ष के बाद पहली चीन यात्रा होगी। भले ही ठोस समाधान की उम्मीद कम हो, लेकिन संकेत स्पष्ट हैं — भारत और चीन बातचीत की मेज पर हैं।
ब्राजील-भारत फ्रंट तैयार
ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा ने भी अमेरिका के टैरिफ के आगे झुकने से इनकार कर दिया है और ट्रम्प से सीधी बात करने की बजाय BRICS देशों के साथ सामूहिक जवाब देने की बात कही है। उन्होंने 2026 में भारत दौरे के लिए पीएम मोदी का निमंत्रण भी स्वीकार कर लिया है।
रूस-भारत संबंध और मजबूत
अमेरिका खुले तौर पर भारत के रूस से तेल आयात को लेकर असहज है। लेकिन भारत ने पीछे हटने के बजाय और मजबूत रुख अपनाया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल हाल ही में मास्को में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिले थे। पुतिन भी इसी महीने भारत दौरे पर आ सकते हैं।
BRICS अब प्रतीक नहीं, रणनीति बना
जहां BRICS को अब तक एक ढीले-ढाले समूह के तौर पर देखा जाता था, वहीं अब यह एक रणनीतिक मंच बनता जा रहा है। सदस्य देश अब डॉलर पर निर्भरता घटाकर स्थानीय मुद्राओं में व्यापार, BRICS भुगतान प्रणाली और एक वैकल्पिक रेटिंग एजेंसी की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।
यहां तक कि भारत और चीन भी अपनी आपसी समस्याओं को किनारे रखकर अमेरिका के दबाव के खिलाफ साझा रणनीति बनाने को तैयार दिखते हैं।
अमेरिका के लिए उल्टा असर
ट्रम्प की टैरिफ नीति घरेलू राजनीति में भले लोकप्रिय हो, लेकिन इससे अमेरिका के लिए दीर्घकालिक नुकसान की आशंका बढ़ गई है। BRICS देशों की एकता अब पश्चिमी वित्तीय संस्थानों और डॉलर आधारित व्यवस्था को चुनौती दे सकती है।
ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला के शब्दों में कहें तो, 'पश्चिमी आर्थिक हुक्म का समय अब खत्म हो रहा है।' ट्रम्प ने BRICS को बांटने की कोशिश की थी, लेकिन नतीजा यह हुआ कि उसने इस समूह को पहले से कहीं ज्यादा मजबूती दे दी।
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