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Rare Earth Deal: भारत के साथ म्यांमार के विद्रोही! चीन के प्रतिबंधों का सटीक तोड़

रेयर-अर्थ डील पर चीनी प्रतिबंधों के बाद भारत को अब नए बजार की तलाश है। / Reuters

रेयर- अर्थ डील एक अहम मुद्दा है। जिस पर चीनी प्रतिबंधों के बाद भारत अब नई संभावनाओं की तलाश कर रहा है। इस बीच पीएम मोदी और म्यांमार के विद्रोही गुट से मुलाकात इस दिशा में अहम मानी जा रही है।  

भारत एक शक्तिशाली विद्रोही समूह की सहायता से म्यांमार से दुर्लभ-पृथ्वी के नमूने प्राप्त करने के लिए काम कर रहा है। एक रिपोर्ट में ऐसा दावा किया गया है। दरअसल, यह बात नई या फिर किसी से छिपी नहीं है, कि भारत का रुख पिछले कुछ महीनों में चीन के साथ नरम जरूर रहा है, लेकिन कई मुद्दे ऐसे हैं, जो दोनों पड़ोसी देशों के लिए टकराव का कारण है। इसमें रेयर- अर्थ डील एक अहम मुद्दा है। 

इस मामले के जानकार लोगों के मुताबिक, भारत एक शक्तिशाली विद्रोही समूह की सहायता से म्यांमार से दुर्लभ-पृथ्वी के नमूने प्राप्त करने के लिए काम कर रहा है। चीन की ओर से  रणनीतिक संसाधनों पर नियंत्रण के बाद भारत की यह वैकल्पिक तलाश मानी जा रही है। 

रॉयटर्स ने एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा कि भारत के खान मंत्रालय ने सरकारी और निजी कंपनियों से पूर्वोत्तर म्यांमार की उन खदानों से नमूने एकत्र करने और परिवहन की संभावना तलाशने को कहा है जो काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी के नियंत्रण में हैं। इसके लिए सरकारी स्वामित्व वाली खनन कंपनी IREL और निजी कंपनी मिडवेस्ट एडवांस्ड मैटेरियल्स चर्चा में हैं। 

सूत्रों के अनुसार, भारत अपनी घरेलू प्रयोगशालाओं में नमूनों का परीक्षण करेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनमें भारी दुर्लभ मृदा तत्वों की पर्याप्त मात्रा मौजूद है या फिर नहीं। जिनका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक वाहनों और अन्य उन्नत उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले चुम्बकों में संसाधित किया जा सकता है।

रिपोर्ट में आगे कहा कि इसको लेकर भारत के खान मंत्रालय ने एक वर्चुअल मीटिंग भी की थी, जिसमें IREL, मिडवेस्ट के बड़े अधिकारियों और अन्य कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। 

वहीं दूसरी ओर KIA ने भारत के लिए रेयर-अर्थ के नमूने एकत्र करना शुरू कर दिया है। केआईए अधिकारी के अनुसार, म्यांमार के विद्रोही यह आकलन करने के लिए भी सहमत हुए हैं कि क्या भारत को थोक निर्यात संभव है। 

हालांकि रेयर- अर्थ डील को लेकर सवालों का भारत के विदेश विभाग और खनन मंत्रालय के अलावा  KIA ने भी कोई जवाब नहीं दिया। 

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दरअसल, भारत दुर्लभ-पृथ्वी तत्वों को उच्च शुद्धता स्तर के लिए औद्योगिक पैमाने पर सुविधाओं की कमी को भी दूर करने का प्रयास कर रहा है। रॉयटर्स ने पिछले महीने बताया था कि IREL ने दुर्लभ-पृथ्वी चुम्बकों का व्यावसायिक उत्पादन शुरू करने के लिए जापानी और कोरियाई कंपनियों के साथ साझेदारी की मांग की है।

चीनी नियंत्रण
खनिजों को चुम्बक में परिवर्तित करने वाली तकनीक पर चीन का लगभग पूर्ण नियंत्रण है। चीन ने इस वर्ष भारत जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को प्रसंस्कृत दुर्लभ मृदा खनिजों के निर्यात पर कड़ा प्रतिबंध लगा दिया है क्योंकि वह संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपने व्यापार युद्ध के बीच भू-राजनीतिक लाभ को बढ़ाना चाहता है।

ऐसे में भारत ने रेयर-अर्थ की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कदम उठाए हैं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 अगस्त को कहा कि उन्होंने चीन में म्यांमार की सैन्य टुकड़ी के प्रमुख मिन आंग ह्लाइंग के साथ एक बैठक के दौरान दुर्लभ-पृथ्वी खनन पर चर्चा की, जिनकी सेनाएं KIA से जूझ रही हैं। 

हालांकि रेयर- अर्थ डील को लेकर अब तक भारत या फिर म्यामार दोनों में से किसी देश की ओर से कोई बयान नहीं आया है। हालांकि पीएम मोदी का विद्रोहियों से मिलने के मायने अहम हैं।

 केआईए के साथ भारत की भागीदारी के बारे में रॉयटर्स द्वारा पूछे जाने पर, दिल्ली में विचार-विमर्श से परिचित एक भारतीय अधिकारी ने कहा कि महत्वपूर्ण खनिजों में देश की रुचि कोई रहस्य नहीं है। अधिकारी ने विद्रोही समूह के साथ सीधे संपर्क का उल्लेख किए बिना कहा, "हम स्वाभाविक रूप से वैश्विक स्तर पर उपलब्ध आपूर्तिकर्ताओं से दुर्लभ-पृथ्वी खनिजों को प्राप्त करने के लिए व्यापार-से-व्यापार के आधार पर वाणिज्यिक सहयोग को प्रोत्साहित करते हैं।"

म्यांमार में KIA की पॉवर
केआईए का गठन 1961 में म्यांमार के अल्पसंख्यक काचिन समुदाय की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए किया गया था और तब से यह देश के सबसे दुर्जेय सशस्त्र समूहों में से एक बन गया है। म्यांमार की सेना द्वारा 2021 में तख्तापलट के बाद निर्वाचित नागरिक सरकार को अपदस्थ कर देशव्यापी विद्रोह शुरू हो गया, जिसके बाद KIA चीन समर्थित जुंटा के खिलाफ प्रतिरोध की एक मजबूत ताकत के रूप में उभरा।

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