द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के साथ यूरोप में जहां लाखों लोगों की जिंदगी युद्ध और नाजियों की दहशत से तबाह हो रही थी, वहीं एक शख्स अपनी किस्मत के धागों से खिंचकर भारत आ पहुंचा। यह कहानी है फ्रेडरिक स्मेटाचेक की। उसने एडोल्फ हिटलर को मारने की साजिश रची, जब उसका भंडाफोड़ हो गया तो नाजियों की पकड़ से निकलकर हिमालय की गोद में जा पहुंचा और हमेशा के लिए वहीं बस गया। आज फ्रेडरिक का परिवार उत्तराखंड के खूबसूरत हिल स्टेशन नैनीताल में रहता है।
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हिटलर को मारने की साजिश रची
स्मेटाचेक परिवार मूल रूप से यूरोप में जंगलों और समुद्र से जुड़ा जीवन जी रहा था। लेकिन 1930 और 40 के दशक में हालात बदले। नाजियों का दबदबा बढ़ा और उस समय सुडिकी लैंड नामक इलाके में जर्मन आबादी पर हिटलर की नजरें टिक गईं। स्थानीय लोगों की आज़ादी छीनी जा रही थी, विरोध की आवाज़ कुचली जा रही थी। इसी माहौल में फ्रेडरिक और उनके साथियों ने हिटलर की यात्रा के दौरान उस पर हमला करने की योजना बनाई। लेकिन यह योजना सफल नहीं हो सकी। नाजी खुफिया तंत्र को भनक लग गई और कई साथी पकड़े गए। जान बचाने के लिए फ्रेडरिक ने भागने का फैसला किया।
भारत की धरती पर नई शुरुआत
1 सितंबर 1939 को जब द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हो रही थी, वह जर्मनी से जहाज पकड़कर कोलकाता पहुंचे। यहां उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों को पूरी कहानी सुनाई। अब उनके लिए यूरोप में लौटना संभव नहीं था। लिहाजा भारत ही उनकी नई कर्मभूमि बना। कोलकाता में उन्होंने चेक कंपनी बाटा में काम शुरू किया। धीरे-धीरे परिवार बसा और जिंदगी पटरी पर लौटने लगी। लेकिन उनके दिल में हमेशा पहाड़ों में बसने का सपना था।
नैनीताल की वादियों में ठिकाना
कुछ वर्षों बाद फ्रेडरिक परिवार के साथ उत्तराखंड की वादियों में पहुंचे। यहां उन्होंने नैनीताल के पास एक पुराना हंटिंग लॉज खरीदा और बाद में ब्रिटिश सरकार से जॉन लैंड नामक पहाड़ी भी अपने नाम कर ली। यही जगह आगे चलकर उनका स्थायी आशियाना बनी।
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