हे प्रभु! यह दुनिया तुम्हारी रची है। इसकी रक्षा करना आपका कर्तव्य। जिस तरह आप अपनी संतानों को अपनी शरण में ले रहे हो वह कहीं से भी सुंदर नहीं। यह कोलाहल भयभीत करने वाला है… क्या आपके रचे इंसान एक साधारण जीवन जीते हुए साधारण सी मृत्यु नहीं ग्रहण कर सकते?
मेरा दिल जब-जब यह सोचता की कैसे एक साथ दो सौ से ज्यादा लोग एक ही पल में अंतिम गति को प्राप्त हुए तो बैठ जाता है। आंखें भर आती हैं। मैं उन मासूमों की तस्वीर देख कर कांप उठी जो आपने माता-पिता के साथ एक सुखी जीवन को आस में उड़ चले थें। मैं उस पल की कल्पना से भी सिहर रही हूं जब गिरते हुए प्लेन से उन्होंने मौत का डर महसूस किया होगा।
इतनी निराशा और दुख के बीच भी तुमने अपनी लीला नहीं छोड़ी। तुमने उन तमाम लोगों के बीच एक व्यक्ति को चुना जीवनदान के लिए। ओह परमात्मा! अपने ऊपर विश्वास बनाए रखने के लिए तुमने भी विश्वास कुमार को ही चुना।
इस दुख और विश्वास के बीच मेरा भटकता मन बार-बार 'रिल्के' की कविता के ध्यान में समा रहा है। कविता रिल्के ने कुछ ऐसे लिखी है जिसका भाव यह है कि भक्त के बिना
भगवान एकाकी और निरुपाय है।
वे लिखते हैं...
जब मेरा अस्तित्व नहीं रहेगा, प्रभु, तब तुम क्या करोगे?
जब मैं, तुम्हारा जलपात्र, टूटकर बिखर जाऊंगा
जब मैं तुम्हारी मदिरा सूख जाऊंगा या स्वादहीन हो जाऊंगा
मैं तुम्हारा वेश हूं, तुम्हारी वृत्ति हूं
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे।
मेरे बिना तुम गृहहीन निर्वासित होगे, स्वागत-विहीन
मैं तुम्हारी पादुका हूं, मेरे बिना तुम्हारे
चरणों में छाले पड़ जाएंगे, वे भटकेंगे लहूलुहान!
मेरे बिना तुम क्या करोगे?
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