viewComments Indian-origin US professor Shrinivas Kulkarni awarded 2024 Shaw Prize in Astronomy

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भारतीय मूल के श्रीनिवास कुलकर्णी को खगोल विज्ञान में योगदान के लिए मिला यह पुरस्कार

इस पुरस्कार में 12 लाख डॉलर (लगभग 9 करोड़ रुपये) की राशि दी जाती है। पुरस्कार समारोह 12 नवंबर को हांगकांग में आयोजित किया जाएगा। पुरस्कार देने वाली संस्था का कहना है कि कुलकर्णी ने टाइम-डोमेन एस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया है।

2024 के शॉ पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष स्कॉट ट्रेमाइन ने कहा कि कुलकर्णी की खगोल विज्ञान को लोकतांत्रिक बनाने के उनके प्रयासों के लिए भी प्रशंसा की जानी चाहिए। / X/@OptimusWikiBot and @CornellCAS

भारतीय मूल के अमेरिकी प्रोफेसर श्रीनिवास आर. कुलकर्णी को एस्ट्र्रोनॉमी में 2024 का शॉ पुरस्कार (Shaw Prize) दिया जाएगा। इस पुरस्कार की घोषणा 21 मई को हांगकांग में की गई। कुलकर्णी कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में जॉर्ज एलरी हेल प्रोफेसर ऑफ एस्ट्रोनॉमी एंड प्लेनेटरी साइंस में पढ़ाते हैं। उन्हें मिली सेकंड पल्सर, गामा-रे विस्फोट, सुपरनोवा और अन्य परिवर्तनशील या क्षणिक खगोलीय पिंडों पर उनके काम की वजह से इस पुरस्कार के लिए चुना गया है।

इस पुरस्कार में 12 लाख डॉलर (लगभग 9 करोड़ रुपये) की राशि दी जाती है। पुरस्कार समारोह 12 नवंबर को हांगकांग में आयोजित किया जाएगा। पुरस्कार देने वाली संस्था का कहना है कि कुलकर्णी ने टाइम-डोमेन एस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया है।

बयान में कहा गया है कि टाइम-डोमेन एस्ट्रोनॉमी में होने वाली अचानक घटनाओं को खोजना और उनका विश्लेषण करना बहुत ही मुश्किल काम है। इसके लिए विशाल डेटाबेस को खंगालना पड़ता है। असामान्य घटनाओं की पहचान करनी होती है। पृथ्वी से जुड़ी घटनाओं और अन्य सोर्स से मिलने वाले गलत संकेतों को अलग करना होता है। इसके बाद कुछ ही मिनटों के भीतर पूरी दुनिया के इस क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों को इसकी सूचना देनी होती है, ताकि वे भी इसका अध्ययन कर सकें।

जब कुलकर्णी जी एक स्टूडेंट थे तब उन्होंने और उनके साथियों ने सबसे पहला मिलीसेकंड पल्सर खोज निकाला था। यह एक तेजी से घूमता हुआ न्यूट्रॉन तारा होता है जो एक सेकंड में 600 से अधिक बार सटीक अंतराल पर प्रकाश की किरणें छोड़ता है। पल्सर ब्रह्मांड की सबसे सटीक खगोलीय घड़ियां हैं। इनका उपयोग आइंस्टीन के रिलेटिविटी के सिद्धांत का परीक्षण करने और विशाल ब्लैक होल के विलय से गुरुत्वाकर्षण तरंगों को खोजने के लिए किया जाता है।

1997 में कुलकर्णी और उनके साथियों ने एक गामा-रे विस्फोट की दूरी का पता लगाकर एक महत्वपूर्ण खोज की। उन्होंने दिखाया कि यह विस्फोट हमारी अपनी आकाशगंगा से बहुत दूर सुदूर ब्रह्मांड में उत्पन्न हुआ था। इसलिए यह एक अत्यंत ऊर्जावान विस्फोट रही होगी। अब हम जानते हैं कि अधिकांश गामा-रे विस्फोट समान दूरियों से आते हैं।

कुलकर्णी का जन्म भारत में महाराष्ट्र के कुरुंदवाड नामक एक छोटे से शहर में हुआ था। उनका पालन-पोषण हुबली, कर्नाटक में हुआ। IIT दिल्ली से अपनी MS पूरी करने के बाद कुलकर्णी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से अपनी PhD पूरी करने के लिए अमेरिका आ गए। खगोल विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं देने के साथ-साथ उन्होंने 2006 से 2018 तक कैलटेक ऑप्टिकल ऑब्जर्वेटरी के निदेशक के रूप में भी काम किया।

2024 के शॉ पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष स्कॉट ट्रेमाइन ने कहा कि कुलकर्णी की खगोल विज्ञान को लोकतांत्रिक बनाने के उनके प्रयासों के लिए भी प्रशंसा की जानी चाहिए। वो दुनिया भर के खगोल वैज्ञानिकों को अपने टेलिस्कोप से प्राप्त आंकड़े आसानी से उपलब्ध कराते हैं। शॉ पुरस्कार को 'पूर्व का नोबेल पुरस्कार' भी कहा जाता है। यह पुरस्कार शॉ प्राइज फाउंडेशन की तरफ से 2004 से हर साल प्रदान किया जाता है। इस फाउंडेशन की स्थापना हांगकांग के प्रसिद्ध फिल्म और टेलीविजन हस्ती और समाजसेवी रन रन शॉ ने की थी।

 

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