अमेरिका समेत कई देशों में बसे भारतीय प्रवासी, खासतौर पर महिलाएं, जब वैवाहिक जीवन में तनाव या हिंसा का सामना करती हैं, तो उनके लिए यह संघर्ष सिर्फ भावनात्मक नहीं होता — बल्कि यह कानूनी धमकियों, इमिग्रेशन की अनिश्चितता और सांस्कृतिक अपराधबोध से भी जुड़ा होता है।
“अगर छोड़ा तो डिपोर्ट कर देंगे”, “बच्चे से कभी नहीं मिल पाओगी”, “समझौता करो, वरना लोग क्या कहेंगे” — ये शब्द हैं उन लोगों के, जो न केवल घरेलू हिंसा के शिकार हुए, बल्कि झूठी जानकारी और डर के माहौल में जीने को मजबूर हो गए।
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