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भारत की नई आर्थिक कूटनीति: अब दुनिया में बजेगा रुपये का डंका

यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब दुनिया में पिछले 50 वर्षों की सबसे बड़ी डीडॉलराइजेशन वेव चल रही है।

दिल्ली के पुराने इलाके में 500 रुपये का नोट थामे एक महिला। (25 सितंबर 2025 की तस्वीर) / REUTERS/Bhawika Chhabra

दुनिया धीरे-धीरे डॉलर पर अपनी निर्भरता घटा रही है  और भारत इसमें अगला बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर रहा है। मास्को से लेकर अबूधाबी और ब्राज़ील से लेकर बीजिंग तक देश अब अमेरिकी मुद्रा से परे जाकर अपने व्यापारिक रास्ते तय कर रहे हैं। इसी कड़ी में भारत भी रुपये को एक “विश्वसनीय वैकल्पिक मुद्रा” के रूप में पेश कर रहा है — डॉलर को हटाने के लिए नहीं, बल्कि बहुध्रुवीय वित्तीय व्यवस्था में अपनी जगह मजबूत करने के लिए।

वित्त मंत्रालय की सितंबर 2025 की मासिक आर्थिक समीक्षा में इस बदलाव की झलक साफ दिखती है। आंकड़ों के पीछे एक शांत लेकिन गहरी आर्थिक क्रांति चल रही है। रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण। सरकार और आरबीआई मिलकर रुपये को सीमाओं के पार व्यापार, निवेश और भुगतान के लिए उपयोगी और विश्वसनीय बना रहे हैं।

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डॉलर निर्भरता घटाने की मुहिम
यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब दुनिया में पिछले 50 वर्षों की सबसे बड़ी डीडॉलराइजेशन वेव चल रही है। डॉलर अभी भी लगभग 58% वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार में शामिल है, लेकिन दो दशक पहले यह हिस्सा 70% से अधिक था। रूस ऊर्जा व्यापार में रूबल और दिरहम, चीन युआन, और BRICS देश नई वैकल्पिक भुगतान प्रणाली पर काम कर रहे हैं। भारत के लिए यह बदलाव जरूरी इसलिए भी है क्योंकि देश का अधिकांश आयात, कर्ज और प्रवासी आय डॉलर पर निर्भर है।

डॉलर की मजबूती से आयात महंगा होता है, भुगतान प्रणाली प्रतिबंधों में फंस जाती है, और रुपया कमजोर होने पर देश की वित्तीय गणना प्रभावित होती है। ऐसे में रुपये-आधारित व्यापार और निवेश तंत्र भारत को इस जोखिम से बचा सकता है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह किसी विरोध का कदम नहीं है, यह वित्तीय स्वायत्तता की दिशा में एक रणनीतिक कदम है।

 

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