स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जब हर कोई अलग-अलग तरह की आजादियों पर सोच रहा था, भारतीय फिल्ममेकर अभिलाष शर्मा अपने काम से उन कहानियों को रोशनी में ला रहे हैं जो अक्सर अंधेरे में दब जाती हैं। एक छोटे कस्बे के सिनेमाघर से लेकर अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों तक की उनकी यात्रा इस विश्वास पर टिकी है कि असली कलात्मक आज़ादी डर को चुनौती देने, पूर्वाग्रह तोड़ने और अपनी भाषाओं, संस्कृतियों व परंपराओं को सहेजने में है।
न्यू इंडिया अब्रॉड ने उनसे बातचीत की। अभिलाष अपनी मगही भाषा की फिल्म स्वाहा के लिए जाने जाते हैं, जो ग्रामीण बिहार में मातृत्व, जाति और जीवटता की कहानी कहती है।
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बचपन से सिनेमा का असर
अभिलाष बताते हैं, कहानी कहने का फैसला मैंने बाद में लिया, लेकिन बचपन में सिनेमा ने मुझ पर गहरा असर डाला। पहली बार जब मैंने त्रिदेव फिल्म थिएटर में देखी, तो धमाकों, डायलॉग, गानों और डांस की दुनिया मुझे जादुई लगी। कॉलेज तक वो जुड़ाव बना रहा। दिल्ली आने के बाद मैंने फ्रिट्ज लैंग, फेलिनी, किआरोस्तामी और लार्स वॉन ट्रियर जैसे फिल्मकारों को देखा और समझा कि सिनेमा में कहानी कहने की कितनी ताकत है।
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