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रटगर्स यूनिवर्सिटी भाग तीन: हिंदू धर्म और हिंदुत्व, एक सभ्यता की दो धाराएं

हिंदू पहचान को पश्चिमी द्विआधारी के लेंस के जरिए कई देशों में फिल्टर किया गया। जिसमें धर्म बनाम राजनीति, आस्था बनाम राष्ट्रवाद, आध्यात्मिकता बनाम विचारधारा जैसे एजेंडे प्रमुख रूप से शामिल हैं। रटगर्स यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में इसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

Representative Image / Pexels

हिंदू पहचान को खिलाफ लंबे समय से दोहरी सोच वाली मानसिकता का प्रयोग होता आया है। पश्चिमी शिक्षाविद और एक्टिविस्ट ने कई मौकों पर लगातार भारतीय मूल की सभ्यता को विकृत करने का प्रयास किया। लेकिन हिंदू और हिंदुत्व का मूल सनातन धर्म है, जो अपने मूल विचार की वजह से अडिग है। सनातन का विचार कहता है- "धर्म शाश्वत है उसे विभाजित नहीं किया जा सकता। धर्म का संचार होता है, इसका स्वीकार या फिर अस्वीकार किया जा सकता है, लेकिन यह कभी खंडित नहीं होता।"

हमारी श्रृंखला के इस भाग में, हम हिंदू और हिंदुत्व को लेकर पश्चिमी शिक्षाविदों में कथित द्वंद की पड़ताल के साथ यह बताएंगे कि हिंदू धर्म और हिंदुत्व कोई ताकतें नहीं हैं, बल्कि एक ही सभ्यतागत सनातन धर्म से जुड़ी अभिव्यक्ति स्वरूप दो शाखाएं हैं-

दरअसल, हिंदू पहचान को पश्चिमी में दोहरी मानसिकता के साथ देखा गया, जिसमें धर्म बनाम राजनीति, आस्था बनाम राष्ट्रवाद, आध्यात्मिकता बनाम विचारधारा जैसे एजेंडे प्रमुख रूप से शामिल हैं। रटगर्स यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में इसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। 

'रटगर्स रिपोर्ट बनावटी, गैर जिम्मेदाराना'
हिंदू और हिंदुत्व पर रटगर्स की रिपोर्ट पढ़ने पर स्पष्ट होता है कि यह सिर्फ धर्म विशेष को कमतर दिखाने के लिए है। दरअसल, रिपोर्ट में बुद्धिमत्ता का अभाव है और यह ऐसे कथित तथ्यों पर आधारित है, जो हकीकत से दूर हैं। रिपोर्ट में हिंदू धर्म को अराजनीतिक आस्था के रूप में और हिंदुत्व एक खतरनाक, जातीय-राष्ट्रवादी विचारधारा के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसके अलावा रिपोर्ट एक ऐसी सभ्यता के वास्तविक सामाजिक योगदान को अनदेखा करती है, जिसका पूरा स्ट्रक्चर ही आध्यात्मिक और सामाजिक को एकीकरण पर आधारित है। 

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हिंदू धर्म से गहराई से जुड़ी हैं हिंदुत्व की जड़ें 

लंबे समय से ही हिंदू धर्म को कमजोर के करने, अवैध ठहराने के प्रयासों के तहत पश्चिमी शिक्षाविद हिंदुत्व की हिंदू धर्म से अलग करके परिभाषा देते रहे हैं। भारत में औपनिवेशक काल से ही इस पर कुठाराघात किया जाता रहा है।लेकिन हिंदुत्व की जड़ें हिंदू धर्म से गहराई से जुड़ी हैं। इसे व्यापक रूप से स्वीकार भी किया गया है।

हिंदुत्व हिंदू संस्कृति का सभ्यतागत शब्द
हिंदुत्व को अक्सर धार्मिक अतिवाद के रूप में गलत तरीके से पेश किया गया। जबकि यह हिंदू लोगों की सांस्कृतिक और सभ्यतागत पहचान के रूप में स्थापित है। इस शब्द का प्रयोग 20वीं सदी की शुरुआत में विनायक दामोदर सावरकर द्वारा करने के बाद लोग भावनात्मक रूप से जुड़े। आर्थिक से लेकर संस्कृति की रक्षा तक के आंदोलनों में सनातन सभ्यता ने हमेशा पारदर्शी मानसिकता के साथ लोगों को जोड़ा। 

हिंदुत्व एक ऐतिहासिक चेतना
हिंदुत्व, शाब्दिक रूप से "हिंदूपन" यानी सामूहिक सांस्कृतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक चेतना को प्रदर्शित करता है। यह शब्द सभी हिंदुओं को एक सूत्र में पिरोने का कार्य भी करता है। जैसे यहूदी धर्म एक धर्म और सभ्यतागत लोकाचार दोनों को समाहित करता है, उसी तरह हिंदू धर्म भी है। हिंदू होने का मतलब सिर्फ कुछ आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन करना ही नहीं है, बल्कि धर्म, कर्म और मोक्ष के सनातनी सिद्धांतों पर आधारित एक जीवंत, विकसित सभ्यता में भाग लेना भी है। हिंदुत्व आधुनिक राष्ट्रवाद, लचीलेपन और सांस्कृतिक निरंतरता के संदर्भ में हिंदू पहचान की सभ्यतागत अभिव्यक्ति है।

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रटगर्स का नैरेटिव क्यों हुआ फेल?
रटगर्स रिपोर्ट, SASAC (साउथ एशिया स्कॉलर एक्टिविस्ट कलेक्टिव) जैसे समूहों के विचारों से प्रेरित है, जो हिंदू धर्म और हिंदुत्व के बीच अलगाव पर फोकस्ड है। ताकि हिंदुत्व को धर्म से अलग कर बदनाम किया जा सके। लेकिन हिंदू धर्म के मूल में निहित हिंदुत्व के इससे अलग किया जाना संभव नहीं है। उच्च शिक्षा संस्थान यानी रटगर्स यूनिवर्सिटी के तथाकथित शिक्षाविदों की यह रिपोर्ट बौद्धिक रूप से भ्रमित करने वाली है। 

हिंदुत्व पर पश्चिमी एक्पर्ट्स की रिपोर्ट का इतिहास हमेशा से चयनात्मक रहा है। ऐसे में लेखक पर निर्भरता इसकी विश्वसनीयता पर असर होता है। विडंबना यह है कि एक अरब से अधिक हिंदुओं के विश्वदृष्टिकोण नकराने के लिए ऐसी ही मनगढंत रिपोर्ट तैयार की जाती हैं, जिनका कोई मजबूत आधार नहीं होता। 

पश्चिमी धार्मिक ढांचे को चुनौती 
पश्चिमी धार्मिक परंपराएं अक्सर पवित्र को धर्मनिरपेक्ष से, निजी को सार्वजनिक से अलग करती हैं। यह द्विआधारी हिंदू धर्म जैसी प्राचीन धार्मिक परंपराओं पर लागू नहीं होता, जहां आध्यात्मिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन आपस में जुड़े हुए हैं। हिंदू धर्म को पश्चिमी ढांचे में जबरन ढालने के प्रयास इस जटिलता को मिटा देते हैं।

हिंदू पहचान की प्रामाणिक अभिव्यक्ति के रूप में हिंदुत्व को नकारना हिंदुओं को अन्य समुदायों को दी जाने वाली सभ्यतागत गरिमा से वंचित करना है। कोई भी यह मांग नहीं करता कि यहूदी अमेरिकी नागरिक जीवन में भाग लेने के लिए ज़ायोनीवाद को त्याग दें। कोई भी इस बात पर जोर नहीं देता कि कैथोलिक पहचान को राजनीतिक या सांस्कृतिक मूल्यों से अलग रखा जाए। न ही अश्वेत पहचान या स्वदेशी आध्यात्मिकता की अभिव्यक्ति को राजनीतिक अर्थ रखने के लिए बदनाम किया जाता है। फिर, हिंदुओं को एक खंडित पहचान क्यों स्वीकार करनी चाहिए?

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हिंदू धर्म एक सिर्फ एक आस्था नहीं जीवंत परंपरा
हिंदू धर्म एक प्राचीन परंपरा है, जो सहस्राब्दियों से विकसित है। यह अनगिनत भाषाओं, रीति-रिवाजों और दार्शनिक स्कूलों के माध्यम से खुद को आत्मसात, बहस, सुधार और अभिव्यक्त करती रही है। हिंदुत्व एक ऐसी ही एक अभिव्यक्ति है, जो औपनिवेशिक उन्मूलन, सभ्यतागत संकट और वास्तिविकता को प्रदर्शित करती है। 

हिंदुत्व को फासीवाद जैसी विचारधारा के रूप में प्रदर्शित करना विकृत मानसिकता का परिणाम है। दरअसल, हठधर्मिता या फिर राजनीतिक विचारधाराओं के विपरीत, हिंदुत्व सभ्यतागत आत्म-जागरूकता से प्रेरित है। हिंदुत्व को पूरी तरह से नकारना हिंदू धर्म की लचीलेपन को गलत समझना है। इसका मतलब यह है कि हिंदुओं को मंदिरों और धर्मग्रंथों तक ही सीमित रहना चाहिए, जबकि अन्य लोगों को समाज को आकार देने में पूरी भागीदारी की अनुमति है।

'हिंदुत्व को हिंदू धर्म से अलग देखना सभ्यता पर खतरा'
हिंदू धर्म को हिंदुत्व से अलग करने का प्रयास केवल अकादमिक बेईमानी नहीं है। यह एक सभ्यता पर खतरे का संकेत है। हालांकि यह धर्म उन लोगों की सेवा करता है जो हिंदू पहचान को खंडित करना चाहते हैं, हिंदू धर्म को अमान्य करना चाहते हैं और हिंदूओं के धर्म के विकृत करना चाहते हैं।

लेकिन हिंदुओं को आध्यात्मिक या राजनीतिक, पारंपरिक या आधुनिक, निजी या सार्वजनिक होने के बीच चयन करने की आवश्यकता नहीं है। इसे ऐसे समझा जा सकता है- हिंदू धर्म की नदी है, तो हिंदुत्व जीवन रूपी पृथ्वी पर बहने वाला प्रवाह। 

ऐसे में यह स्पष्ट है कि हिंदू धर्म और हिंदुत्व विरोधी नहीं हैं। यह एक अभिव्यक्ति है। एक शाश्वत सिद्धांत है, तो दूसरा उनकी समकालीन अभिव्यक्ति। यह स्थापित है कि सनातन धर्म को एक जीवित शक्ति है, जिसे भेद पाना पश्चिमी देशों के कथित विद्वानों के लिए भेद पाना संभव नहीं है। 

नोट: लेखक विषयों पर शोध और कंटेंट में सुधार के लिए ChatGPT का प्रयोग करते हैं।

(इस लेख में व्यक्त किए गए विचार और राय लेखक के अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे न्यू इंडिया अब्रॉड की आधिकारिक नीति या स्थिति को दर्शाते हों।)

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