बीती 7 मई से भारत ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ अपना पहला 'युद्ध' छेड़ दिया है क्योंकि पिछले कुछ दशकों से दहशत के दंश ने जम्मू कश्मीर की शांति को नष्ट करना शुरू कर दिया है। भारत का ऑपरेशन सिंदूर पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी शिविरों को निशाना बनाकर किए गए सटीक हमलों का एक सिलसिला है। यह नई दिल्ली द्वारा शुरू किया गया पहला बड़ा अभियान है और भारत पाकिस्तान की हर तरह की जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार है।
उस जवाबी कार्रवाई का नतीजा क्या होगा और इस टकराव का अंत क्या होगा यह अभी तक अटकलों का विषय है। पाकिस्तान अपनी धरती पर मौजूद आतंकी समूहों की मौजूदगी के सबूतों से बेपरवाह है। पाकिस्तान ने इस बात से इनकार किया है कि उसने कभी उन्हें प्रोत्साहित किया है या संरक्षण दिया है।
यह टकराव दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर चल रहा है। भारत की तरफ, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्र दूसरी तरफ से ड्रोन और मिसाइल हमलों का खामियाजा भुगत रहे हैं। भारतीयों द्वारा की गई जवाबी कार्रवाई में लाहौर के रक्षा ढांचे को निशाना बनाया गया है। कई बड़े शहरों और कस्बों को भी निशाने पर लिया गया है।
जम्मू-कश्मीर में नागरिक हताहतों की संख्या बढ़ रही है। सीमावर्ती कस्बों के निवासी लगातार तोपखाने की गोलाबारी और कामिकेज ड्रोन हमलों में मारे जा रहे हैं। मिसाल के तौर पर पुंछ जैसे कई शहरों के लोग सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं। सीमावर्ती राज्य पहले से ही परिवारों के रहने के लिए शरणार्थी शिविर तैयार कर रहे हैं।
अभियान का नेतृत्व कर रहे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबे समय तक मोर्चा संभालने के लिए तैयारी करने का फैसला किया है। उन्होंने सरकार से समन्वित तरीके से आपात स्थितियों से निपटने के लिए निर्बाध बदलाव करने को कहा है। इसका मतलब है प्रभावित राज्यों में पर्याप्त खाद्य भंडार और चिकित्सा आपूर्ति रखना और वितरित करना, अस्पतालों, परिवहन और सुरक्षा की व्यवस्था करना। अंदरूनी राज्यों को सलाह दी गई है कि वे किसी भी स्थिति का सामना करने की व्यवस्था करें। अगर संघर्ष दूसरे, अधिक खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है तो।
ऑपरेशन सिंदूर पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों द्वारा किए गए हमलों के लिए भारत की जवाबी कार्रवाई की एक लंबी श्रृंखला में नवीनतम है। भारत ने पहली बार पाकिस्तान में घुसकर 2016 में उरी हत्याकांड के बाद हमला किया था। उसके बाद 2019 में पुलवामा हत्याकांड के बाद और भी शक्तिशाली हमला किया गया। हाल ही में किया गया हमला अब तक का सबसे शक्तिशाली अभियान है। पिछले उदाहरणों के विपरीत भारत किसी भी स्थिति के लिए खुद को तैयार करता हुआ दिखाई देता है, तब तक जब तक कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय आतंकवाद के खतरे का वास्तविक संज्ञान ले।
टकराव को अभी एक सप्ताह नहीं हुआ है। अभी तक दोनों पक्षों की ओर से वास्तविक पैटर्न और हालात में बढ़ोतरी की सीमा का पता नहीं चला है। फिलहाल, पाकिस्तान ने खुद को गोलाबारी और ड्रोन निगरानी तक सीमित कर लिया है। भारत की प्रतिक्रिया में जवाबी गोलीबारी, सीमावर्ती कस्बों में ब्लैकआउट और पाकिस्तान के कस्बों को निशाना बनाना शामिल है। पाकिस्तान की गोलाबारी कश्मीर घाटी में नई आतंकवादी घुसपैठ के लिए एक आड़ भी हो सकती है। अगर ऐसा हुआ तो एक और मोर्चा खुल जाएगा।
यह अभी भी एक संघर्ष है। किसी भी पक्ष ने औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा नहीं की है (उन्होंने 1947-48 में अपने पहले संघर्ष के बाद से ऐसा कभी नहीं किया है), लेकिन यह सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए युद्ध है। कूटनीति और वार्ता की जगह सैन्य सक्रियता ने ले ली है। संयुक्त राष्ट्र तक पहुंचने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। हालांकि भारत ने दुनिया को यह बताने के लिए बड़े पैमाने पर कार्यक्रम चलाया है कि वह ऐसा क्यों और क्या कर रहा है। इस प्रकरण में संयुक्त राज्य अमेरिका रहस्य-कारक बन गया है।
अमेरिका ने मिश्रित संदेश दिए हैं। विदेश मंत्री मार्को रुबियो लगातार प्रधानमंत्री मोदी और शहबाज शरीफ से संपर्क में हैं और उनसे तनाव कम करने के लिए कह रहे हैं। इसके विपरीत, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने जोर देकर कहा कि यह अमेरिका का काम नहीं है। और राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने दोनों पक्षों से मामले को जल्दी से जल्दी निपटाने के लिए कहने के अलावा नीतिगत पहल जैसा कुछ भी नहीं किया है। दूसरी ओर, पाकिस्तान को चीन का समर्थन प्राप्त है, जिसने भारत के हमलों को खेदजनक बताया है। यह इस्लामाबाद के पक्ष में उसके पूर्वाग्रह को दर्शाता है। दोनों लड़ते पड़ोसियों के इर्द-गिर्द भू-राजनीति कैसे विकसित होती है, यह निकट भविष्य के लिए छोड़ दिया गया है।
हालांकि, एक बात पक्की है कि ऑपरेशन सिंदूर की धमक से विचलित पाकिस्तान को देर से ही सही यह अहसास हो जाएगा कि भारत ने अपना लक्ष्य बदल दिया है। विवाद अब कश्मीर के बारे में नहीं है, जिसका पाकिस्तान 1947 से ही एक पक्ष रहा है और हमेशा भारत को कश्मीरियों की आजादी की पीड़ा को खत्म करने वाले खलनायक के रूप में चित्रित करने की कोशिश करता रहा है। अलबत्ता, मोदी सरकार का दावा है कि उसने कुछ हद तक कश्मीरियों का विश्वास फिर से हासिल कर लिया है। ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद की घटनाओं ने इसे आतंकवाद से जोड़ दिया है, जो पाकिस्तान के अंदर सुरक्षित रूप से स्थापित है और पाकिस्तानी राजनीतिक और सैन्य प्रतिष्ठानों द्वारा पोषित किया जा रहा है। और जिसका एकमात्र उद्देश्य कश्मीर को नष्ट करके भारत को अस्थिर करना है।
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