सांकेतिक तस्वीर / Unsplash
भारत में विदेशी छात्रों का भूगोल तेजी से बदल रहा है। नीति आयोग के एक नए वर्किंग पेपर के मुताबिक पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य तेजी से अंतरराष्ट्रीय छात्रों के सबसे बड़े केंद्र बनकर उभर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे पुराने दिग्गज राज्यों की पकड़ ढीली पड़ रही है।
कर्नाटक का गिरना इस बदलाव का सबसे तीखा संकेत है। 2012-13 में राज्य में 13,182 विदेशी छात्र थे जो 2021-22 में घटकर सिर्फ 5,954 रह गए। यह लगभग 55% की गिरावट है। तमिलनाडु में भी विदेशी छात्रों की संख्या घटी है जबकि तेलंगाना और पश्चिम बंगाल तो अब शीर्ष सूची में कहीं दिखाई नहीं देते। रिपोर्ट इसके पीछे भीड़भाड़ वाले महानगर, बढ़ती लागत, संस्थानों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा और छात्रों का कम खर्च वाले विकल्पों की ओर झुकाव को मुख्य वजह मानती है।
पंजाब का उभार सबसे चौंकाने वाला
एक दशक पहले तक जो राज्य विदेशी छात्रों के नक्शे पर मुश्किल से दिखाई देता था, वही पंजाब अब एक बड़ी छलांग के साथ शीर्ष पर पहुंच रहा है। 2012-13 में 1,397 विदेशी छात्रों का आंकड़ा 2021-22 में बढ़कर 5,847 हो गया।
निजी विश्वविद्यालयों का आक्रामक मार्केटिंग, अंग्रेजी फ्रेंडली कैंपस, तेज एडमिशन प्रोसेस और कम खर्च ने नेपाल, नाइजीरिया, बांग्लादेश और जिम्बाब्वे के छात्रों को पंजाब की ओर आकर्षित किया है।
उत्तर प्रदेश - धीमी लेकिन निर्णायक चढ़ाई
उत्तर प्रदेश ने चुपचाप लेकिन मजबूती से अपनी जगह बनाई है। 2021-22 में 4,231 विदेशी छात्रों के साथ UP ने तमिलनाडु और दिल्ली दोनों को पीछे छोड़ दिया। नोएडा, गाजियाबाद और लखनऊ के निजी विश्वविद्यालय क्लस्टर कम फीस और लोकप्रिय प्रोफेशनल डिग्रियां देकर बड़ी संख्या में विदेशी छात्रों को खींच रहे हैं। NCR का आकर्षण और बेहतर उड़ान कनेक्टिविटी इस रुझान को और मजबूत बना रही है।
गुजरात - ब्रांडिंग और विस्तार का प्रभाव
गुजरात ने सिर्फ 555 छात्रों से बढ़कर 2021-22 में 3,422 विदेशी छात्रों का आंकड़ा छुआ है।
स्टडी इन गुजरात कैंपेन, GIFT City की अंतरराष्ट्रीय पहचान और नए निजी विश्वविद्यालयों ने अफ्रीकी और खाड़ी देशों के छात्रों को आकर्षित करने में बड़ी भूमिका निभाई है। राज्य के लंबे समय से चले आ रहे अफ्रीकी व्यापारिक संबंध अब शैक्षणिक भर्ती में भी फायदा दे रहे हैं।
आंध्र प्रदेश- फिर वापसी
बंटी हुई राज्य व्यवस्था के बाद आंध्र प्रदेश लगभग चर्चा से गायब था लेकिन अब 3,106 विदेशी छात्रों के साथ फिर शीर्ष समूह में लौट आया है। कम फीस, अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज और बांग्लादेश, नेपाल और ईस्ट अफ्रीका पर केंद्रित आउटरीच ने इसे दक्षिण के महंगे महानगरों का किफायती विकल्प बना दिया है।
दिल्ली और महाराष्ट्र अभी स्थिर हैं
दिल्ली 2,727 और महाराष्ट्र 4,818 विदेश छात्र के साथ अब भी बड़े खिलाड़ी हैं लेकिन विकास ठहर गया है। इन दोनों ही शहरों में महंगी जीवन-यापन लागत और सीमित संस्थागत विस्तार के कारण पड़ोसी राज्यों का आकर्षण बढ़ रहा है।
कौन आ रहा है भारत?
नेपाल अभी भी सबसे बड़ा स्रोत देश है लेकिन अफ्रीकी देशों खासकर नाइजीरिया, जिम्बाब्वे और तंजानिया के छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। बांग्लादेश और यूएई से भी बड़ी संख्या में छात्र भारत के इंजीनियरिंग, बिजनेस, फार्मेसी और IT कार्यक्रमों को चुन रहे हैं।
अधिकांश विदेशी छात्र छोटे, सुरक्षित और सस्ते शहरों को प्राथमिकता दे रहे हैं। इससे उन राज्यों को फायदा मिला है जहां नए निजी विश्वविद्यालय और इंटरनेशनल स्टूडेंट ऑफिस सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं।
राष्ट्रीय तस्वीर अब भी कमजोर
इन क्षेत्रीय सफलताओं के बावजूद भारत का कुल प्रदर्शन अभी भी निराशाजनक है। 2021-22 में पूरे देश में सिर्फ 46,878 विदेशी छात्र थे। यह कुल नामांकन का मात्र 0.10% है।
NITI पेपर साफ तौर पर भारत को एक सेमी-परिफेरल यानी सीमांत मेजबान कहता है। जबकि भारत से विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे देश में प्रतिभा और विदेशी मुद्रा दोनों का असंतुलन बढ़ रहा है।
कुछ राज्य तो तेजी से उभर रहे हैं लेकिन कुछ पीछे छूट रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर तस्वीर एक ही बात कहती है कि भारत को दुनिया के छात्रों को आकर्षित करने के लिए एक स्पष्ट, समन्वित राष्ट्रीय रणनीति की जरूरत है।
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