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बॉलीवुड-हॉलीवुड का संगम: वैश्विक सिनेमा का नया सवेरा

भारतीय-अमेरिकियों की यह क्रिएटिव लहर न सिर्फ हॉलीवुड में जगह बना रही है, बल्कि वैश्विक सिनेमा के भविष्य को नए रंग, नई आवाज और नई दिशा दे रही है

ये कलाकार ‘मॉडल माइनॉरिटी’ जैसी मिथक को चुनौती देते हुए ऐसी कहानियां बना रहे हैं। / image provided

भारतीय-अमेरिकी कलाकारों का वैश्विक सिनेमा पर प्रभाव अब किसी छोटे दायरे की चर्चा नहीं रहा, बल्कि यह हॉलीवुड की कहानी, सौंदर्यशास्त्र और दृष्टिकोण को मूल रूप से बदलने वाला बड़ा सांस्कृतिक बदलाव है। एक समय था जब पश्चिमी फिल्मों में दक्षिण एशियाई किरदार केवल रूढ़ छवियों तक सीमित थे- टैक्सी ड्राइवर, किराने की दुकान वाला या मजाक का पात्र बना दिया गया डॉक्टर। इंडियाना जोन्स एंड द टेंपल ऑफ डूम जैसी फिल्मों ने भारत की गलत और सनसनीखेज छवि को और मजबूत किया। लेकिन यह दौर अब पीछे छूट रहा है।

रूढ़ियों से असलियत तक: आवाज़ों का उभार
अब एक ऐसी नई पीढ़ी उभर चुकी है जो अपनी सांस्कृतिक पहचान को मजबूती से सामने रखते हुए बहुआयामी और वास्तविक किरदार रच रही है। दिग्गज निर्देशक मीरा नायर हों या फिर माइंडी केलिंग, अजीज अंसारी, कुमैल नानजियानी और प्रियंका चोपड़ा जोनस जैसे लेखक, अभिनेता, निर्माता- इन सभी ने मिलकर अमेरिकी अनुभव की सीमित परिभाषाओं को तोड़ा है।

ये कलाकार ‘मॉडल माइनॉरिटी’ जैसी मिथक को चुनौती देते हुए ऐसी कहानियां बना रहे हैं जो न सिर्फ सांस्कृतिक रूप से सशक्त हैं बल्कि सार्वभौमिक भावनाओं से भी जुड़ती हैं।

माइंडी केलिंग ने दक्षिण एशियाई कलाकारों की बढ़ती मौजूदगी को लेकर कहा था, “दक्षिण एशियाई अभिनेताओं की वापसी शानदार है! अब हसन मिन्हाज, अजीज अंसारी, रिज़ अहमद जैसे कलाकार सिर्फ मज़ाकिया साइड रोल नहीं निभा रहे, वे हैंडसम लीड हीरो बन रहे हैं। यह खूबसूरत बदलाव है कि अब भारतीयों के लिए सफलता का एकमात्र रास्ता सिर्फ सौंदर्य प्रतियोगिता नहीं रहा—हम कॉमेडी और अन्य क्षेत्रों में भी शीर्ष पर पहुँच रहे हैं।”

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अजीज अंसारी ने HFPA को दिए एक इंटरव्यू में प्रतिनिधित्व के महत्व पर कहा, “टीवी पर जब भी कोई भूरे रंग की त्वचा वाला या मुस्लिम दिखता था तो उसे अक्सर खलनायक की तरह दिखाया जाता था। मैं इसे बदलने के लिए बस इतना कर सकता हूँ कि अपने शो में अपने मज़ेदार पिता को दिखाऊँ और यह कहूँ कि देखिए, ऐसे लोग भी होते हैं।”

सौंदर्य और कहानी में भारतीय प्रभाव
भारतीय-अमेरिकी समुदाय का असर सिर्फ कलाकारों या किरदारों तक सीमित नहीं है, बल्कि कहानी कहने की शैली, फिल्म की दृश्य भाषा और जॉनर-मिक्सिंग तक पहुंच चुका है।

संगीत का इस्तेमाल: बॉलीवुड की तरह कहानी में संगीत का सहज मिश्रण अब कई पश्चिमी फिल्मों को प्रेरित कर रहा है। La La Land या Baby Driver जैसी फिल्मों में संगीत के जरिए कहानी को आगे बढ़ाने की तकनीक इसी प्रभाव की झलक देती है।

रंग-संयोजन और दृश्य शैली: चमकीले रंग, विस्तृत पोशाकें, बड़े और भावुक दृश्य—ये सब अब मुख्यधारा की हॉलीवुड फिल्मों में भी दिखने लगे हैं।

परिवार और समुदाय: मल्टी-जनरेशनल कथाएँ, बड़े पारिवारिक इवेंट, रिश्तों की जटिलता—ये सभी भारतीय सिनेमा की मुख्य विशेषताएँ अब अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में दिखाई दे रही हैं।

नई पीढ़ी सिर्फ शामिल नहीं, पूरी व्यवस्था बदल रही
भारतीय-अमेरिकी कलाकारों के अनुभव अब वैश्विक सिनेमा के लिए एक नई रचनात्मक धारा बन चुके हैं। यह पीढ़ी सिर्फ “मौजूद” नहीं है, बल्कि हॉलीवुड और वैश्विक फिल्म इंडस्ट्री के नियम, सौंदर्यशास्त्र और कथानक संरचनाओं को नया रूप दे रही है।

अपनी सांस्कृतिक जड़ों और अंतरराष्ट्रीय पहचान के मेल से ये कलाकार उस वैश्विक दर्शक वर्ग के लिए नई भाषा गढ़ रहे हैं जो विविधता, प्रामाणिकता और भावनात्मक गहराई चाहता है।

 

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