प्रतीकात्मक तस्वीर / CANVA
दस साल पहले अगर कोई कहता कि चुनावी कैंपेन Koffee With Karan के मसाले, TikTok डांस चैलेंज और ब्रुकलिन की स्ट्रीट पार्टी जैसा दिखेगा- तो लोग हंस देते। राजनीति तब नीरस, सख़्त और बेहद औपचारिक हुआ करती थी। लेकिन 2025 में तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। राजनीति अब सिर्फ दिलचस्प नहीं, बल्कि चर्चा के केंद्र में है- रंगीन, शोरगुल वाली, बेपरवाह और पूरी तरह Gen Z वाइब्स से भरी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है- ज़ोहरन ममदानी का न्यूयॉर्क सिटी मेयर अभियान।
अब राजनीति नहीं, एक ‘मूड’ है
एक वक्त था जब नेता पोडियम पर खड़े होकर बोरिंग भाषण पढ़ते थे और हर विज्ञापन इसी लाइन पर खत्म होता था—“I approve this message.” अब यह दौर खत्म हो चुका है। ममदानी और उनकी टीम ने पूरे न्यूयॉर्क को एक तरह का डांस फ्लोर बना दिया, जहां राजनीति चल नहीं रही थी—मेम बन रही थी, वाइब्स बन रही थीं, और नियम टूट रहे थे। यह किसी पुरानी पार्टी का चुनाव नहीं, बल्कि इंटरनेट संस्कृति का असली दुनिया में धमाकेदार त्योहार जैसा लग रहा था।
उनकी जीत की रात का माहौल इसका सबसे बड़ा सबूत था—कमरा जोश से भरा, समर्थक चिल्ला रहे थे, वॉलंटियर कूल-ट्रेंडी मर्च में थे और ममदानी ने भाषण देने की जगह सीधे “धूम मचाले” पर धमाकेदार डांस कर दिया। यह सिर्फ एक स्टंट नहीं था—बल्कि एक संदेश था कि राजनीति बदल चुकी है, अब वह अपने सबसे रंगीन, सबसे क्रिएटिव और सबसे ज़िंदा दौर में पहुंच गई है।
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भारतीय-अमेरिकी युवाओं के लिए यह बदलाव क्यों खास है?
नई पीढ़ी के भारतीय-अमेरिकी युवाओं को सख्त भाषणों और रटे-रटाए वादों में कोई दिलचस्पी नहीं। वे रियलनेस चाहते हैं, पर्सनैलिटी चाहते हैं, और ऐसी राजनीति चाहते हैं जो उन्हें रिप्रेज़ेंट करे। जब ममदानी ने बॉलीवुड गाना बजाकर जश्न मनाया, तो उन्होंने हर ब्राउन बच्चे को यह बताया, “तुम्हारी पहचान यहां भी वैलिड है। तुम अब साइडलाइन पर नहीं हो।”
आखिर राजनीति अचानक इतनी रंगीन क्यों हो गई?
कारण कई हैं। तीसरी पीढ़ी के भारतीय-अमेरिकी युवा मुद्दों को सिर्फ किताबों में नहीं देखते-वे उन्हें जीते हैं। जैसे- जलवायु परिवर्तन, इमिग्रेशन अधिकार, गन वायलेंस, बढ़ती महंगाई और रेंट। ये सब उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं। वे ऐसे नेता चाहते हैं जो उनसे आंख मिलाकर कह सके “हाँ, रेंट बहुत महंगा है, हाँ, ग्रॉसरी डिग्री से ज्यादा की पड़ रही है, और हां- ये सब बदलना जरूरी है।”
नई राजनीतिक शैली activism और community hangout का मिश्रण है। नेता ज़रूरी मुद्दों पर बात भी करते हैं और स्नीकर्स में मंच पर भी आते हैं। मतलब- गंभीर विषयों को गंभीर अंदाज़ में ही पेश करना ज़रूरी नहीं। कनेक्शन रियल होना चाहिए, बोरिंग नहीं।
लेकिन सबको यह बदलाव पसंद नहीं
पहली और दूसरी पीढ़ी के भारतीय-अमेरिकी ये सवाल पूछ रहे हैं- “क्या हम अच्छे नेताओं को चुन रहे हैं या वायरल कंटेंट को?” राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं, जज्बात और क्रिएटिविटी असल मुद्दों की जगह नहीं ले रही, बल्कि लोगों को मुद्दों तक पहुंचाने का रास्ता बना रही है।
एक मीम, एक छोटा वीडियो, एक मजेदार डांस
ये सब पहली बार वोट देने वालों को चुनाव की ओर खींच रहे हैं और अलग-अलग समुदायों को एक साथ ला रहे हैं- क्वीयर मतदाता, देसी आंटियां, थके हुए कॉलेज स्टूडेंट, रिटेल कर्मचारी, बोडेगा मालिक, सबवे यात्री सब एक ही डिजिटल छतरी के नीचे।
नतीजा? घर-घर में राजनीति
अगर 90 साल की दादी और 16 साल का ‘सब जानता हूं’ टाइप टीनेजर भी थैंक्सगिविंग टेबल पर राजनीति पर चर्चा कर रहे हैं- तो लोकतंत्र मजबूत हो रहा है, कमजोर नहीं।
राजनीति में ‘ग्लैम’ क्यों ज़रूरी था?
क्योंकि लोकतंत्र कभी चुपचाप बैठकर देखने की चीज़ नहीं था। वह जीने और मनाने की चीज़ है और कभी-कभी उसे जीना कुछ ऐसा भी दिख सकता है। “धूम मचाले” पर अपने समुदाय के साथ नाचते हुए, जब आपने अभी-अभी बैलेट बॉक्स पर अपनी आवाज़ दर्ज की हो।
राजनीति की यह नई चमकदार दुनिया, जरा शोर वाली है, जरा रंगीन है, लेकिन सबसे बढ़कर युवाओं से जुड़ी हुई है।
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