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ट्रम्प, ब्राउन परिवार और भारतीय-अमेरिकी भविष्य

मैं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को करीब तीस साल से जानता हूं। मैं कैलिफोर्निया के ब्राउन परिवार पैट, जेरी और कैथलीन के भी काफी नजदीक रहा हूं।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प। / Image : NIA

मैं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को करीब तीस साल से जानता हूं। मैं कैलिफोर्निया के ब्राउन परिवार पैट, जेरी और कैथलीन के भी काफी नजदीक रहा हूं। ये दो दुनिया कई बार अप्रत्याशित तौर पर एक-दूसरे से टकराईं और मैं कई मौकों पर इसका प्रत्यक्ष गवाह रहा। कैथलीन ब्राउन के गवर्नर अभियान में सलाहकार के रूप में मैं उस समय मौजूद था जब ट्रम्प ने उन्हें ट्रम्प टॉवर बुलाया था। यह निमंत्रण तब के न्यू जर्सी सीनेटर रॉबर्ट टॉरिसेली की पत्नी सुसान टॉरिसेली के जरिए आया था। बाद में मैं उनसे ओकलैंड में भी मिला जब वे कारोबारी कार्ल आइकान के साथ उस कैसिनो परियोजना को देखने आए जिसे शहर के पास नेटिव अमेरिकन जमीन पर बनाने की चर्चा थी। ट्रम्प ने गवर्नर जेरी ब्राउन को अटलांटिक सिटी भी बुलाया हां उन्होंने ताज महल होटल एंड कसीनो का दौरा कराया। ट्रम्प का कार्यालय मुझे हर विवरण से अवगत कराता रहा। यही उनका स्वभाव था ऊर्जावान, व्यवहारिक और लगातार सक्रिय।

कई सालों में मैंने देखा कि ट्रम्प के आसपास काम करने वाले लोग हमेशा बात करने के लिए तैयार रहते थे। सीनियर कैंपेन टीम हो या कानूनी सलाहकार जैसे स्यूजी वाइल्स, काश पटेल, हरमीत ढिल्लों और टॉड ब्लांश ये लोग नीति पर असहमति होने के बावजूद बातचीत के लिए खुले रहते थे। बाइडेन टीम के साथ मेरा अनुभव इससे बिल्कुल अलग रहा, जबकि 2020 में मैंने उन्हें पर्याप्त समर्थन दिया था। राष्ट्रपति बाइडेन के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ रॉन क्लेन मेरे कई परदे के पीछे वाले प्रयासों के साक्षी हैं। लेकिन सत्ता में आने के बाद दरवाजा जैसे बंद हो गया। मेरे फोन का जवाब नहीं मिला। रिश्ता एकतरफा हो गया।

मैं यह एक ऐसे व्यक्ति के रूप में कह रहा हूं जो चौदह साल की उम्र से डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए काम कर रहा है। हमारी राजनीति में कुछ बदल गया है। वह व्यक्ति जो कभी सांस्कृतिक विविधता को लेकर उत्सुक रहता था, साल 2016 में उनके परिवार ने मुझसे पूछा भी था कि उन्हें कौन-से हिंदू मंदिर देखने चाहिए। वह अब एक अलग ही स्वर में बोलता है। ईसाई समुदाय के कई मित्र बताते हैं कि उनका व्यवहार करुणा और विनम्रता से बिलकुल उलटा हो गया है। मैं धार्मिक शब्द नहीं इस्तेमाल करता लेकिन मैं उनकी चिंता समझता हूं। वह सहानुभूति जिसका एहसास पहले मिलता था आज कम हो गया है।

नीति इस बदलाव को और गहरा करती है। H-1B पर सख्ती और समग्र इमिग्रेशन नीति अमेरिका की प्रतिस्पर्धा को चोट पहुंचाती है। हम दुनिया के श्रेष्ठ इंजीनियर और वैज्ञानिक तैयार करते हैं, फिर उन्हें कहते हैं कि अपनी प्रतिभा कहीं और लेकर जाएं। भारतीय पेशेवरों के लिए ग्रीन कार्ड का इंतजार दशकों लंबा हो चुका हैपरिवार अधर में जीते हैं। दूसरी तरफ, बार-बार बदलती टैरिफ नीति खासतौर पर भारत और साझेदार देशों पर लगाए गए शुल्क सप्लाई चेन में अस्थिरता बढ़ाती है और लंबी अवधि की योजना को मुश्किल बनाती है। नवाचार और पूंजी दोनों को अनिश्चितता पसंद नहीं।

भारतीय-अमेरिकी समुदाय अपने अनुभव से यह समझता है कि हम केवल एक मुद्दे पर राजनीति नहीं करते। हां हमें इमिग्रेशन की चिंता है - उच्च कौशल वाले लोगों के लिए बेहतर मार्ग, परिवार का पुनर्मिलन, और जीवनसाथियों को व्यावहारिक काम की अनुमति। लेकिन हम शिक्षा, उद्यमिता, स्वच्छ ऊर्जा, सार्वजनिक सुरक्षा और ऐसी विदेश नीति की भी परवाह करते हैं, जो भारत को रणनीतिक साझेदार मानती हो, न कि सौदेबाजी का साधन। हम चाहते हैं कि अमेरिका और भारत मिलकर मजबूत और सुरक्षित तकनीकी सप्लाई चेन बनाएं - सेमीकंडक्टर्स से लेकर महत्वपूर्ण खनिजों और ऊर्जा भंडारण तक। हम ऐसी वीजा नीति चाहते हैं जो राष्ट्रीय हित से मेल खाती हो, न कि रेडियो शो की नाराजगी से।

 

कुछ भारतीय-अमेरिकियों ने, साथ ही अफ्रीकी-अमेरिकियों, लातीनी और महिला मतदाताओं की संख्या ने 2024 में अपनी निराशा के कारण ट्रम्प को बर्दाश्त किया। कुछ ने मतदान ही नहीं किया। लेकिन वह गठबंधन, जिसने इस सहनशीलता को संभव बनाया वह अब टूट रहा है। 2025 तक लोग नाराजगी की राजनीति से ज्यादा चाहते हैं। 2026 में वे देखेंगे कि कौन-सी पार्टी मूल्य स्थिरता, सुरक्षित समुदाय और कारोबार के लिए भरोसेमंद नियम दे सकती है। और 2028 तक, मुझे लगता है कि एक बड़ा बदलाव आएगा - एक व्यापक, बहु-जातीय प्रतिक्रिया, अव्यवस्था, तिरस्कार और सांस्कृतिक बहिष्कार के खिलाफ, चाहे शीर्ष पर कोई भी हो।

अगर यह बात किसी एक पक्ष को चेतावनी लग रही है तो ऐसा नहीं है। यह दोनों के लिए अवसर है। भारतीय-अमेरिकी समझाने से मान जाते हैं, लेकिन दिखावे से नहीं। हम दक्षता, स्पष्टता और सम्मान के प्रति जवाब देते हैं। यहां एक रचनात्मक एजेंडा है जिसे कोई भी पार्टी अपनाकर हमारे वोट और उससे भी ज्यादा अमेरिका का भविष्य मजबूत बना सकती है।

इसके लिए वे H-1B को आधुनिक बनाएं और बैकलॉग खत्म करें। उच्च कौशल वाले इमिग्रेशन को राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रतिस्पर्धा का हिस्सा मानें। अप्रयुक्त वीजा वापस लाएं, बच्चों को उम्र सीमा से बचाएं और मान्यता प्राप्त STEM प्रोग्राम से स्नातक हुए छात्रों के लिए तेज, सुरक्षित ग्रीन कार्ड मार्ग दें।

स्टार्टअप वीजा’ शुरू करें। निवास की अनुमति को असली पूंजी, नौकरी सृजन और थर्ड-पार्टी ऑडिट से जोड़ें। अमेरिका में नवाचार तब बढ़ता है जब संस्थापक अस्थिरता में नहीं, स्थिरता में काम कर सकें। भारत के साथ लक्ष्य-आधारित टैरिफ समाधान करें। उन क्षेत्रों पर ध्यान दें जहां दोनों को लाभ मिलता है - आईटी सेवाएं, ग्रीन टेक कंपोनेंट्स और एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग। असली सुरक्षा चिंताओं के लिए ताकत रखें लेकिन टैरिफ को टीवी बहस का शोर न बनाएं।

यूएस-इंडिया टैलेंट कॉरिडोर बनाएं। विश्वविद्यालय-उद्योग साझेदारी बढ़ाएं, काउंसुलर प्रक्रियाएं तेज करें और साफ रेकॉर्ड वाले नियोक्ताओं के लिए भरोसेमंद कार्यक्रम चलाएं। लक्ष्य सरल है - सबसे प्रतिभाशाली लोगों के लिए यहां पढ़ना, काम करना, कंपनियां बनाना और टैक्स देना आसान बनाना।

धार्मिक बहुलवाद और नागरिक अधिकारों को राष्ट्रीय मानक बनाएं। भारतीय-अमेरिकी अलग-अलग धर्मों से आते हैं - हिंदू, मुस्लिम, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और कई गैर-धार्मिक। हम उसी अमेरिका में फलते-फूलते हैं जहां विविधता का सम्मान किया जाता है। नेताओं को माहौल शांत करना होगा और हर तरह की नफरत - हिंदूफोबिया और एंटी-मुस्लिम भेदभाव को ठुकराना होगा।

गुस्से नहीं, किफायत पर प्रतिस्पर्धा करें। अक्सर इमिग्रेशन बहस आर्थिक योजनाओं की कमी को ढकती है। लेकिन हर परिवार किराया, गृह-ऋण, बच्चों की देखभाल और किराने का बोझ हर हफ्ते महसूस करता है। हमें जरूरत है ऐसी नीतियों की जो सप्लाई-साइड सुधारों, बेहतर निर्माण नीति और तेज परमिटिंग से खर्च कम करें ।

आधुनिक सुरक्षा के साथ संघवाद को फिर अपनाएं। राज्य नवाचार की प्रयोगशालाएं हो सकते हैं। कैलिफोर्निया ने यह जेरी ब्राउन के समय दिखाया था। छोटे और नवोन्मेषी व्यवसायों के लिए लक्षित कर-राहत और सरकारी खरीद कार्यक्रमों ने सिलिकॉन वैली बनने की नींव रखी। हम इस भावना को राष्ट्रीय स्तर पर दोहरा सकते हैं - बिना पक्षपात या सांठगांठ के।

 

मेरी अपनी यात्रा कैलिफोर्निया की व्यावहारिक प्रगतिशीलता और ट्रम्प-दुनिया के कठोर व्यवहारवाद के बीच ने मुझे दो सच सिखाए। पहलापहुंच’ नीति नहीं होती। किसी कमरे में सुने जाने का मतलब यह नहीं कि नियम करोड़ों परिवारों और व्यवसायों के लिए सही हों। दूसरा आवाज धीरे-धीरे नीति बन जाती है। अगर कोई आंदोलन प्रवासियों को ‘सजावट’ और विविधता को ‘खतरा’ मानने लगे तो नीतियां भी उसी तिरस्कार को दर्शाएंगी। आप दुनिया की सबसे अच्छी अर्थव्यवस्था नहीं बना सकते, जबकि दुनिया की सबसे अच्छी प्रतिभा को कह रहे हों कि वे यहां स्वागत योग्य नहीं हैं।

अमेरिका आज भी महत्वाकांक्षा के लिए दुनिया का सबसे शक्तिशाली चुंबक है। लेकिन चुंबक अपनी ताकत खो भी सकता है। अगर हम प्रवासन को बहसों का उपकरण बना दें, अगर हम टैरिफ को तालियों के लिए प्रयोग करें, अगर हम समझाने की जगह अपमान की राजनीति को जगह दें तो हम उन लोगों को दूर धकेल देंगे जो हमें असाधारण बनाते हैं। भारतीय-अमेरिकी यह बात इसलिए समझते हैं क्योंकि हमारे परिवारों ने इसे जिया है। हम यहां आएं, पढ़े, काम किया, कंपनियां बनाई, लोगों को नौकरी दी और अपने बच्चों को अमेरिकी बनाया।

साल 2016 में मैंने देखा था कि एक अभियान ने पूछा था कि वे कौन-से हिंदू मंदिर देखें, एक छोटा-सा कदम जिसने कहा हम आपको देखते हैं। आज मैं इससे बड़ा कदम ढूंढ रहा हूं। एक ऐसी नीति जो कहे हमें आपकी जरूरत है। यही फर्क होता है एक वोट मांगने और एक भविष्य कमाने में।

दोनों पार्टियों के लिए संदेश स्पष्ट है - इसे कमाएं। इमिग्रेशन को आधुनिक बनाएं। व्यापार को स्थिरता दें। लागतें ईमानदारी से घटाएं - ज्यादा और तेज निर्माण करके। और बहुलवाद को किसी राजनीतिक सौदे की चीज नहीं बल्कि साझा राष्ट्रीय पूंजी की तरह बचाएं। जब यह होगा तो आपको अंदाजा लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि भारतीय-अमेरिकी कैसे वोट करेंगे। आप जानेंगे क्योंकि तब हम अमेरिका के अगले अध्याय के साझेदार होंगे, किसी सांस्कृतिक युद्ध के मोहरे नहीं।

दिनेश एस. शास्त्री इल्यूमिनेंट कैपिटल होल्डिंग्स के फाउंडर एवं प्रेसिडेंट हैं और तीन दशक से तकनीक, मीडिया तथा सार्वजनिक नीति में सलाहकार की भूमिका निभाते रहे हैं। वे कैलिफोर्निया के ब्राउन परिवार के साथ काम कर चुके हैं और राजनीति के विभिन्न पक्षों से जुड़े नेताओं के साथ संवाद रखते रहे हैं।

(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। ये “न्यू इंडिया अब्रॉड” की आधिकारिक नीति या दृष्टिकोण को अनिवार्य रूप से प्रतिबिंबित नहीं करते। यह एक ओपिनियन लेख है।)

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